Chhath puja 2025:मगध- सूर्योपासना की जननी और वैदिक,वैज्ञानिक चेतना का उद्गम स्थल, जानिए छठ पूजा की कब और कैसे हुई शुरुआत

Chhath puja 2025: भारतीय सभ्यता के गौरवशाली इतिहास में मगध वह भूभाग है जहाँ आस्था, विज्ञान और धर्म ने एक साथ स्वर प्राप्त किया।

Chhath puja 2025:मगध- सूर्योपासना की जननी और वैदिक,वैज्ञानिक
मगध- सूर्योपासना की जननी और वैदिक,वैज्ञानिक चेतना का उद्गम स्थल- फोटो : reporter

Chhath puja 2025: भारतीय सभ्यता के गौरवशाली इतिहास में मगध वह भूभाग है जहाँ आस्था, विज्ञान और धर्म ने एक साथ स्वर प्राप्त किया। आज जिस छठ पर्व को लोकआस्था का सबसे प्रखर प्रतीक माना जाता है, उसकी जड़ें इसी मगध की भूमि में पाई जाती हैं। यह क्षेत्र न केवल सूर्योपासना की परंपरा का जन्मस्थान है, बल्कि वैदिक दर्शन के लोक रूपांतरण की प्रयोगशाला भी रहा है।

 कर्क रेखा के समीप मगध: भौगोलिक स्थिति और सूर्य का विज्ञान

भूगोल की दृष्टि से देखें तो मगध कर्क रेखा के समीप स्थित है—वह रेखा जहाँ सूर्य की किरणें वर्ष के मध्य में सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं। इसी कारण इस क्षेत्र में सूर्य का प्रभाव सबसे अधिक देखा जाता है—चाहे वह जलवायु हो, कृषि हो या सांस्कृतिक जीवन। यह तथ्य इस बात को पुष्ट करता है कि सूर्य की उपासना यहाँ केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि प्राकृतिक विज्ञान का अनुभवजन्य निष्कर्ष थी।

मगध के चारों ओर आज भी प्राचीन सूर्य मंदिरों की उपस्थिति इसका प्रमाण है—देव (औरंगाबाद), औंगारी, गया, दाउदनगर, और रोहतास से लेकर देवघर तक यह परंपरा फैली हुई है। यह संयोग नहीं, बल्कि इस भूमि की सूर्य–आधारित जीवन पद्धति का स्वाभाविक परिणाम है।

‘मगध’ शब्द का प्रतीकात्मक अर्थ: सूर्य की ओर गमन का भाव

विद्वानों के मतानुसार मगध शब्द स्वयं अपने भीतर सूर्य की प्रतीकात्मकता समेटे है।

‘म’ का अर्थ है मकर—जो सूर्य का एक नाम है।

‘ग’ का अर्थ है गमन—अर्थात् आगे बढ़ना, प्रगति करना।

‘ध’ का अर्थ है धारण करना या ध्वज।

इस प्रकार मगध वह भूमि है जिसके लोग सूर्य की ओर ध्वज लेकर गमन करते हैं—अर्थात् जो प्रकाश, ऊर्जा और ज्ञान के प्रति अनवरत अग्रसर हैं। यही कारण है कि मगध के प्राचीन राजवंशों—बिम्बिसार, अजातशत्रु, शिशुनाग, मौर्य और गुप्त—ने अपनी विजय पताकाओं पर सूर्य के प्रतीक अंकित रखे। उनके विस्तार का दिशा-क्रम भी उल्लेखनीय है—सभी ने अपने राज्य का प्रसार दक्षिण दिशा में किया, जो स्वयं सूर्य की गति की दिशा है।

धर्मारण्य: आस्था, यज्ञ और मोक्ष की भूमि

मगध को धर्मारण्य भी कहा गया है। प्राचीन बिहार चार प्रमुख क्षेत्रों में विभक्त था—

चंपारण्य (हिमालय की तराई में),

सारण (मध्यवर्ती क्षेत्र),

धर्मारण्य (मगध क्षेत्र), और

झारखंड (दक्षिणी वन प्रदेश)।

धर्मारण्य नाम की व्याख्या के पीछे गयासुर की कथा जुड़ी है। असुर कुल में जन्मे गयासुर धर्मपरायण और जनकल्याणकारी थे। उन्हें वरदान प्राप्त था कि जो उनका दर्शन करेगा, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। जब स्वर्ग में असंतुलन उत्पन्न हुआ, तो देवताओं ने उन्हें यज्ञ के लिए अपना शरीर समर्पित करने को कहा। विष्णु उनके वक्षस्थल पर स्थित होकर यज्ञ संपन्न करते हैं—वही स्थान आज गया कहलाता है। इसी प्रसंग से पिंडदान की परंपरा प्रारंभ हुई, जिसके अनुसार मृतात्माओं को इस धरती पर आमंत्रित कर मोक्ष की प्राप्ति कराई जाती है। यह वैदिक दर्शन के कर्म और मोक्ष सिद्धांत का सजीव लोक रूप है।

 झारखंड: औषधियों और वैद्यनाथ का प्रदेश

मगध के दक्षिण में फैला हुआ प्रदेश झारखंड कहलाया—अर्थात् झाड़-जंगल से युक्त भूमि। यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियों के कारण प्रसिद्ध था। यही कारण है कि यहाँ के रक्षक देवता शिव वैद्यनाथ कहे गए, जो औषधि और चिकित्सा के प्रतीक हैं। इस प्रकार मगध और झारखंड दोनों ही भूभाग सूर्य और शिव—ऊर्जा और औषधि—के द्वैत संतुलन को व्यक्त करते हैं।

‘मग’ शब्द का वैश्विक संदर्भ: ज्योतिष, ज्ञान और जादू का प्रतीक

‘मग’ शब्द केवल भारतीय नहीं, बल्कि विश्व के भाषिक इतिहास में भी गहरा अर्थ रखता है।

फ़ारसी में “मग” (Magus) शब्द का अर्थ होता है—पुजारी, ज्योतिषी या जादूगर। यही शब्द यूनानी भाषा में मागोस के रूप में मिलता है, जो खगोलशास्त्र, ज्योतिष और रहस्यमय ज्ञान के अभ्यासियों के लिए प्रयुक्त होता था।

“मगुपत” शब्द मगों के प्रमुख पुरोहित के अर्थ में प्रयुक्त होता था, जो पारसी धार्मिक परंपरा का वंशानुगत भाग था।आधुनिक अंग्रेज़ी का शब्द “Magic” (मैजिक) भी इसी “मग” मूल से निकला है।

यह भाषाई समानता संकेत करती है कि मगध की सूर्य–पूजा और ज्योतिषीय परंपरा का प्रभाव विश्व की प्राचीन सभ्यताओं तक फैला हुआ था। सूर्य, खगोल और यज्ञ—इन तीनों के सम्मिलन से जो ज्ञान-संस्कृति विकसित हुई, वही वैदिक विज्ञान का वैश्विक रूप बना।

मगध से छठ तक: विज्ञान और लोक के संगम की परंपरा

इस प्रकार मगध की भूमि न केवल राजनीतिक दृष्टि से भारत की धुरी रही, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी यह सूर्योपासना की जननी रही है। छठ पर्व इसी वैदिक–मगधी परंपरा का लोकरूप है, जहाँ प्रकृति, ऊर्जा, जल और अग्नि के संयोग से मानव कृतज्ञता का उत्सव मनाता है।मगध की यह भूमि बताती है कि धर्म और विज्ञान विरोधी नहीं, बल्कि एक ही सूर्य की दो किरणें हैं—एक आस्था की, दूसरी अनुभव की। 

रिपोर्ट- धीरज कुमार