Permanand Maharaj: मंदिर में जाने को लेकर प्रेमानंद जी कह दी ऐसी बात, आपको भी सुनना चाहिए

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार सच्ची भक्ति मंदिर जाने से नहीं, बल्कि मन की शुद्धता और आचरण की पवित्रता से होती है।

Permanand Maharaj
Permanand Maharaj - फोटो : social media

Permanand Maharaj Story: आज के व्यस्त जीवन में जहां लोग धर्म के प्रति संवेदनशील तो हैं, परंतु उलझन में रहते हैं — वहीं प्रेमानंद जी महाराज जैसे आध्यात्मिक संत समाज को सरल भाषा में गूढ़ सत्यों से परिचित कराते हैं। उनकी बातों में कोई बनावट नहीं होती, कोई पाखंड नहीं — वे सीधे हृदय से संवाद करते हैं और यही कारण है कि उनके विचार सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं। देश ही नहीं, विदेशों तक उनके प्रवचनों की गूंज है।

क्या रोज मंदिर जाना जरूरी है? महाराज जी का स्पष्ट उत्तर

जब एक भक्त ने प्रेमानंद जी महाराज से यह प्रश्न किया — “क्या रोज मंदिर जाना ज़रूरी है?” — तो उनका उत्तर सुनने लायक था। उन्होंने कहा कि जब आपका मन साफ हो, किसी के लिए बुरा न सोचें, झूठ न बोलें, किसी का दिल न दुखाएं — तब आप घर पर रहकर भी भगवान के पास हैं। लेकिन अगर आप मंदिर जाकर भी बाहर आकर गलत काम करते हैं, तो ऐसा जाना किसी काम का नहीं।इस उत्तर ने उस भक्त की ही नहीं, लाखों श्रोताओं की सोच बदल दी। प्रेमानंद जी का यह विचार एक गहरा संकेत है कि धर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्ममंथन और शुद्ध आचरण का नाम है।

मन का मंदिर: आंतरिक शुद्धता की शक्ति

प्रेमानंद जी महाराज मानते हैं कि ईश्वर को खुश करने के लिए मन का मंदिर साफ होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति केवल पूजा-पाठ करे लेकिन उसका मन द्वेष, ईर्ष्या और झूठ से भरा हो, तो वह भक्ति नहीं कहलाती।वे कहते हैं सच्ची पूजा तब मानी जाती है जब इंसान अंदर से साफ हो और किसी के लिए बुरा न चाहे। उनके अनुसार, अगर व्यक्ति की सोच सकारात्मक है, वह दूसरों की सेवा करता है, और सच्चाई के मार्ग पर चलता है — तो वह खुद ही चलते-फिरते मंदिर बन जाता है।

घर में भक्ति: सेवा से बड़ा कोई पूजन नहीं

जो लोग रोज मंदिर नहीं जा सकते, उनके लिए प्रेमानंद जी महाराज ने संदेश दिया है। वे कहते हैं कि  अगर आप घर पर माता-पिता, बुज़ुर्गों या ज़रूरतमंदों की सेवा करते हैं, तो वह भी किसी मंदिर जाने से कम नहीं है। बुज़ुर्गों का आशीर्वाद ही सबसे बड़ी पूजा है। यह विचार खासतौर पर उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो व्यस्तता या परिस्थितियों के कारण धार्मिक स्थलों पर नहीं जा पाते। महाराज जी के अनुसार, भक्ति कोई स्थान विशेष से नहीं जुड़ी होती, बल्कि व्यक्ति के कर्म और नीयत से जुड़ी होती है।