Sri RamCharit Manas Katha: कैसे हुए हनुमान जी अमर?जानिए, कलियुग मे कहां रहते हैं अजर अमर बजरंगबली

Sri RamCharit Manas Katha: जब हनुमान जी लंका पहुंचे और माता सीता से मिले, तो उन्होंने उन्हें प्रभु श्रीराम का संदेश दिया। इस दौरान माता सीता ने उनकी भक्ति देखकर उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। ...

Sri RamCharit Manas Katha
कैसे हुए हनुमान जी अमर?- फोटो : Hiresh Kumar

Sri RamCharit Manas Katha: हनुमान जी को अमरता का वरदान माता सीता ने दिया था। यह कथा श्री रामचरित मानस में वर्णित है, जिसमें बताया गया है कि जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका पहुंचे, तब उन्होंने उन्हें प्रभु श्रीराम की अंगूठी दी। माता सीता उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें अमर होने का वरदान देती हैं ताकि वे हमेशा भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा कर सकें.हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है । माता सीता हनुमानजी को आशीष देते हुए कहती हैं—

अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना । निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ।। (श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)

 जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, तब भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि वे पृथ्वी पर अपने भक्तों की सहायता के लिए हनुमान के रूप में अवतरित होना चाहते हैं। शिव जी ने यह भी देखा कि भविष्य में जब राम धरती पर नहीं होंगे, तब उनके भक्तों को किसी ऐसे सेवक की आवश्यकता होगी जो उनकी रक्षा कर सके.

जब हनुमान जी लंका पहुंचे और माता सीता से मिले, तो उन्होंने उन्हें प्रभु श्रीराम का संदेश दिया। इस दौरान माता सीता ने उनकी भक्ति देखकर उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। यह वरदान इसलिए दिया गया ताकि हनुमान जी हर युग में राम भक्तों की रक्षा कर सकें.

 जब प्रभु श्रीराम ने अयोध्या लौटने का निर्णय लिया और अपने भक्तों से विदा ली, तब हनुमान जी बहुत दुखी हुए। उन्होंने माता सीता से कहा कि यदि उनके प्रभु राम धरती पर नहीं होंगे, तो वे यहाँ क्या करेंगे? इस पर माता सीता ने प्रभु राम को बुलाया। राम जी ने हनुमान को समझाया कि उनका अमरत्व इसलिए है ताकि वे हमेशा राम नाम लेने वालों की सहायता कर सकें.भगवान श्रीरामजी जब अपनी मानव लीला को संवरण कर साकेत जाने लगे, उस समय उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा— ‘हे हनुमान ! अब मैं अपने लोक को प्रस्थान कर रहा हूँ । देवी सीता तुम्हें अमरत्व का वर पहले ही दे चुकी हैं, इसलिए अब तुम भूलोक में रहकर शान्ति, प्रेम, ज्ञान तथा भक्ति का प्रचार करो । 

तुम्हें संसार में कभी कोई कष्ट नहीं होगा, इसके अतिरिक्त अपने भक्तों का कष्ट दूर करने की सामर्थ्य भी तुम्हें प्राप्त होगी । जिस स्थान पर मेरा मन्दिर बनेगा और जहां मेरी पूजा होगी, वहां तुम्हारी मूर्ति भी रहेगी और लोग तुम्हारी पूजा भी करेंगे । 

भगवान राम ने कहा कि वास्तव में तुम रुद्र के अवतार होने के कारण हम-तुम अभिन्न हैं । सेवक-स्वामी के अनन्य प्रेम-भाव को विश्व में उजागर करने के लिए ही हमने अब तक की सभी लीलाएं की हैं । जो लोग भक्ति और श्रद्धापूर्वक मेरा तथा तुम्हारा स्मरण करेंगे, वे समस्त संकटों से छूट कर मनोवांछित फल प्राप्त करते रहेंगे । लोक में जब तक मेरी कथा रहेगी, तब तक तुम्हारी सुकीर्ति भी जीवित बनी रहेगी । तुमने मेरे पर जो-जो उपकार किए हैं, उनका बदला मैं कभी नहीं चुका सकता ।मेरे वियोग का दु:ख तुम्हें नहीं होना चाहिए, क्योंकि मैं अदृश्य रूप में सदैव तुम्हारे पास ही बना रहूंगा  तथा तुम्हारा हृदय ही मेरा निवास-स्थान होगा । द्वापर युग में जब मैं अवतार धारण करुंगा तब मेरी तुमसे फिर भेंट होगी । जहां भी मेरी कथा तथा कीर्तन हो तुम वहां निरन्तर उपस्थित रहना तथा मेरे भक्तों की सहायता करते रहना।

 हनुमान जी को भगवान ने बताया  कि उनका जीवन केवल अपनी भक्ति के लिए नहीं है, बल्कि वे सभी राम भक्तों के संकट दूर करने के लिए भी हैं। इस प्रकार, उन्होंने अपने अमरत्व को स्वीकार किया और आज भी धरती पर सशरीर उपस्थित हैं.


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