Bihar Kendriya Vidyalaya: बिहार को 19 केंद्रीय विद्यालयों की सौगात, इन जिलों में खुलेगें नए स्कूल, मोदी सरकार ने दी मंजूरी
Bihar Kendriya Vidyalaya: पीएम मोदी जी की अध्यक्षता में हुई बैठक ने बिहार समेत पूरे मुल्क के लिए एक बड़ा संदेश दिया। बैठक में देशभर में 57 नए केंद्रीय विद्यालय खोलने की मंज़ूरी दी गई, जिनमें से 19 विद्यालय बिहार को मिले हैं।

Bihar Kendriya Vidyalaya: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक ने बिहार समेत पूरे मुल्क के लिए एक बड़ा संदेश दिया। बैठक में देशभर में 57 नए केंद्रीय विद्यालय खोलने की मंज़ूरी दी गई, जिनमें से 19 विद्यालय बिहार को मिले हैं। यह फ़ैसला केवल शिक्षा की दुनिया में नई तहरीक नहीं है, बल्कि राजनीतिक नज़रिए से भी इसे एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
बिहार के जिन ज़िलों को इस सौग़ात का फायदा मिलेगा, उनमें मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, कटिहार, मधेपुरा, भागलपुर, मुंगेर और बोधगया शामिल हैं। इन इलाक़ों में लंबे अरसे से बेहतर तालीम की कमी महसूस की जा रही थी। अब केंद्रीय विद्यालयों के क़याम से नई नस्ल को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतरीन तालीमी माहौल हासिल होगा।
जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने इस फ़ैसले को “बिहार के लिए ऐतिहासिक सौग़ात” क़रार दिया। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर उन्होंने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की साझी पहल से बिहार की तालीमी तस्वीर बदलने जा रही है।
राजनीतिक गलियारों में इस एलान को “तालीम के ज़रिए तामीर” का नारा दिया जा रहा है। एक तरफ़ भाजपा इसे प्रधानमंत्री मोदी के विकास एजेंडा का हिस्सा बता रही है, तो वहीं जेडीयू इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोग और दृष्टि से जोड़ रही है। दरअसल, बिहार की सियासत में शिक्षा हमेशा से बड़ा मुद्दा रही है, और अब इतने बड़े पैमाने पर केंद्रीय विद्यालयों की सौग़ात को दोनों दल मिलकर अपने-अपने तरीक़े से भुनाने की कोशिश करेंगे।
राज्य सरकार पहले ही इन विद्यालयों के लिए भूमि चयन का प्रस्ताव केंद्र को भेज चुकी है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि ज़मीनी स्तर पर काम तेज़ी से शुरू होगा और नए विद्यालय जल्द ही छात्रों का स्वागत करेंगे।
इस पहल को विपक्ष किस नज़र से देखेगा, यह आगे की राजनीति तय करेगी, मगर इसमें कोई शक नहीं कि यह क़दम बिहार में शिक्षा और रोज़गार की ज़मीन को मज़बूत करेगा। और सियासी तौर पर इसे “मोदी-नीतीश की साझा जीत” की तरह पेश किया जाएगा।