Bihar School News: विद्यालय या तबेला? टीन के शेड में तले तपते भविष्य की तस्वीर, शिक्षा का मंदिर या मजबूरी का घर?
Bihar School News: स्कूल की तस्वीर न केवल बच्चों का भविष्य झुलसा रही है, बल्कि सरकार और शिक्षा विभाग के दावों पर भी सवाल खड़े कर रही है।

Bihar School News: स्कूल की हालत देखकर कोई भी यही कहेगा—"यह विद्यालय है या तबेला?" बीते 10 वर्षों से अधिक समय से यह विद्यालय पक्के भवन के अभाव में टीन के शेड के नीचे संचालित हो रहा है, जो न केवल सरकारी उदासीनता का प्रतीक है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गंभीर विफलता को भी उजागर करता है।बिहार के कटिहार जिले के शहरी क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालय न्यू कॉलोनी गौशाला, सिरसा की स्थिति तबेले के समान हीं कहीं जा सकती है।
विद्यालय में कुल 135 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए सात शिक्षिकाएं नियुक्त हैं। बावजूद इसके विद्यालय में न तो भवन है, न ही बिजली की व्यवस्था। गर्मी के इस प्रचंड दौर में टीन के शेड के नीचे बच्चे तपकर पढ़ने को मजबूर हैं। कक्षा एक और दो को एक शेड में और कक्षा तीन से पांच तक के विद्यार्थियों को दूसरे टीन शेड में बिठाकर पढ़ाया जाता है।
प्रभारी प्रधानाध्यापिका के अनुसार, विद्यालय की जमीन से जुड़े लाल कार्ड (भूमि विवाद) के कारण भवन निर्माण की प्रक्रिया वर्षों से लंबित है। उनका कहना है कि संबंधित विभाग से लगातार पत्राचार और अनुरोध किए जा रहे हैं, मगर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
बता दें बिहार सरकार स्कूलों के आधुनिकीकरण को लेकर कई घोषणाएं कर चुकी है—जहां स्मार्ट क्लास, डिजिटल बोर्ड और हाईटेक सुविधाओं से लैस विद्यालयों की तस्वीरें प्रचारित की जाती हैं। मगर कटिहार का यह स्कूल उन सभी दावों की पोल खोलता है, जहां बच्चे टीन के नीचे बैठकर तपते धूप में ज्ञान अर्जित कर रहे हैं।
विद्यालय की छात्राएं अब सरकार से सीधे स्कूल की स्थिति सुधारने की गुहार लगा रही हैं। उनका कहना है कि टीन शेड में गर्मी, बारिश और शोरगुल के बीच पढ़ाई करना मुश्किल हो गया है। कई बार बच्चों की तबीयत भी बिगड़ जाती है, मगर कोई सुनवाई नहीं होती।
यह मामला सिर्फ एक स्कूल का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का प्रतीक है जहां शिक्षा को योजनाओं में तो प्राथमिकता दी जाती है, मगर जमीनी हकीकत में वो प्राथमिकता नजर नहीं आती। न्यू कॉलोनी गौशाला स्कूल की यह तस्वीर न केवल बच्चों का भविष्य झुलसा रही है, बल्कि सरकार और शिक्षा विभाग के दावों पर भी सवाल खड़े कर रही है।
अब सवाल यह है कि कब मिलेगा इन बच्चों को एक ‘असल विद्यालय’?
रिपोर्ट- श्याम कुमार सिंह