Patna High Court Decision:पटना हाई कोर्ट का बीपीएससी पर तगड़ा प्रहार, दृष्टिहीन शिक्षक की जीत,20 लाख मुआवजा और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश!
Patna High Court Decision:हाईकोर्ट ने व्याख्याता के 26 रिक्त पदों पर चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति को रद्द कर दिया है।

Patna High Court Decision:पटना हाई कोर्ट ने बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की भर्ती प्रक्रिया में गंभीर अनियमितता को उजागर करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने वोकल म्यूजिक (फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स) विषय में व्याख्याता के 26 रिक्त पदों पर चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति को रद्द कर दिया, क्योंकि चयनित अभ्यर्थी का अस्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र आवेदन की अंतिम तिथि 22 जून 2016 को अवैध पाया गया। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता दुर्गेश कुमार, जो स्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र धारक और दृष्टिहीन हैं, का प्रमाणपत्र पूरी तरह वैध था। इस फैसले ने न केवल बीपीएससी की भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए, बल्कि विकलांग अभ्यर्थियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मिसाल भी कायम की।
न्यायाधीश पूर्णेन्दु सिंह की एकल पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि "आवेदन की अंतिम तिथि तक सभी शैक्षणिक और चिकित्सीय प्रमाणपत्र वैध होने अनिवार्य हैं। यदि ऐसा नहीं है, तो आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।" कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि भर्ती विज्ञापन में निर्धारित मापदंडों में कोई छूट नहीं दी जा सकती, जब तक कि नियम या विज्ञापन स्वयं ऐसी छूट की अनुमति न दे। इस सख्त रुख ने भर्ती प्रक्रिया में मनमानी और लापरवाही को बर्दाश्त न करने का स्पष्ट संदेश दिया।
कोर्ट ने बीपीएससी को आदेश दिया कि वह आठ सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता दुर्गेश कुमार को वोकल म्यूजिक के व्याख्याता पद पर नियुक्ति पत्र जारी करे। इसके साथ ही, उन्हें 21 जुलाई 2020 से वेतन, सेवा अवधि और अन्य सभी लाभ प्रदान किए जाएं। इतना ही नहीं, कोर्ट ने बीपीएससी को दुर्गेश कुमार को 20 लाख रुपये का मुआवजा और 20 हजार रुपये याचिका व्यय के रूप में भुगतान करने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि "भर्ती प्रक्रिया में हुई मनमानी के कारण एक दृष्टिहीन अभ्यर्थी को चार साल तक अन्याय का सामना करना पड़ा।"
इसके अलावा, न्यायालय ने बीपीएससी के अध्यक्ष को दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और उन्हें व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराने का निर्देश दिया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि ऐसी कार्रवाई भविष्य में आयोग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए जरूरी है। यह कदम न केवल बीपीएससी के लिए सबक है, बल्कि अन्य भर्ती संस्थानों को भी नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगा।
न्यायालय ने अपने फैसले में विकलांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के मर्म को भी रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य केवल आरक्षण प्रदान करना नहीं है, बल्कि विकलांग व्यक्तियों को संवैधानिक गरिमा, समान अवसर और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना भी है। यह फैसला दुर्गेश कुमार के लिए एक बड़ी जीत है, जिन्होंने चार साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी और अंततः अपने हक को हासिल किया।
यह निर्णय बिहार की भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को और मजबूत करता है। साथ ही, यह विकलांग अभ्यर्थियों के लिए एक प्रेरणा है कि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं। अब सवाल यह है कि क्या बीपीएससी कोर्ट के निर्देशों का समय पर पालन करेगा और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई कर अपनी साख को बहाल कर पाएगा।