Bihar Exit Poll : जन सुराज की सियासी सुरों में खामोशी, एनडीए का तराज़ू हुआ मतों से भारी , बिहार की सियासत में एग्ज़िट पोल ने छेड़ी नई बहस!

Bihar Exit Poll चुनावी रणनीतिकार से सियासतदान बने प्रशांत किशोर ने बड़ी उम्मीदों के साथ खड़ा किया था। लेकिन एग्ज़िट पोल के नतीजों ने जन सुराज पार्टी को तक़रीबन हाशिए पर धकेल दिया है।...

Bihar Exit Poll
जन सुराज की सियासी सुरों में खामोशी, एनडीए का तराज़ू हुआ मतों से भारी- फोटो : social Media

Bihar Exit Poll : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण का मतदान ख़त्म होते ही सियासी फिज़ा में एग्ज़िट पोल का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ है। जैसे ही सर्वे के शुरुआती आंकड़े सामने आए, सूबे की सियासत में हलचल मच गई। सभी की नज़रें उस तीसरे मोर्चे पर थीं, जिसे चुनावी रणनीतिकार से सियासतदान बने प्रशांत किशोर ने बड़ी उम्मीदों के साथ खड़ा किया था। लेकिन एग्ज़िट पोल के नतीजों ने जन सुराज पार्टी को तक़रीबन हाशिए पर धकेल दिया है।

प्रशांत किशोर, जिन्होंने पिछले दो वर्षों में पूरे बिहार की खाक छानी, गांव–गांव जाकर जन संवाद किया, उन्होंने दावा किया था कि बिहार अब पारंपरिक राजनीति से ऊब चुका है और एक तीसरे रास्ते की तलाश में है। लेकिन एग्ज़िट पोल की तस्वीर कुछ और ही बयान कर रही है। अधिकतर सर्वेक्षणों में जन सुराज पार्टी को शून्य से चार सीटों के बीच सीमित दिखाया गया है। यानी अर्श की तरफ़ बढ़ने का सपना, फ़िलहाल फ़र्श पर अटका नज़र आ रहा है।

मैट्रिज, पीपुल्स इनसाइट, पीपुल्स पल्स, जेवीसी और पी–मार्क जैसे छह बड़े सर्वेक्षणों ने अपनी भविष्यवाणी रखी है। इनमें पीपुल्स पल्स ने जन सुराज को 0 से 5 सीटों के बीच की उम्मीद जताई  यही उसके लिए सबसे बेहतर अनुमान है। बाक़ी सर्वेक्षणों ने 0 से 2 सीटों तक का आंकड़ा बताया है। यानी अगर एग्ज़िट पोल के रुझान सही साबित होते हैं, तो जन सुराज पार्टी के लिए यह चुनाव “राजनीतिक दीक्षा” से ज़्यादा “कठोर परीक्षा” बन सकता है।

दूसरी तरफ़, एनडीए के पक्ष में हवा बहती दिखाई दे रही है। बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन को इन सर्वेक्षणों में साफ़ बढ़त दी गई है। नीतीश कुमार का प्रशासनिक अनुभव और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्तर की लोकप्रियता ने मिलकर बिहार में स्थिरता और विकास की छवि को मज़बूती दी है।कहा जा रहा है कि एनडीए ने अपने कोर वोट बैंक  यानी महिलाओं, पिछड़े वर्गों और नए मतदाताओं  को एकजुट रखने में सफलता पाई है। सरकारी योजनाओं की पहुंच, जनसंपर्क का मजबूत नेटवर्क और सत्ता की प्रशासनिक पकड़ ने भी इस समीकरण को और मज़बूत किया।

वहीं, राजद और कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन पिछड़ता नज़र आ रहा है। 2020 में जहां गठबंधन 110 सीटों तक पहुंचा था, इस बार अनुमान है कि यह आंकड़ा 90 के पार नहीं जाएगा। तेजस्वी यादव ने बेरोज़गारी, सरकारी नौकरियों और युवाओं के भविष्य को लेकर गूंजदार अभियान चलाया था। उनकी रैलियों में भीड़ तो दिखी, लेकिन एग्ज़िट पोल के मुताबिक़ वह भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो पाई।विश्लेषकों का कहना है कि महागठबंधन ने भावनात्मक अपील तो की, पर संगठनात्मक मजबूती नहीं दिखा पाया। कई सीटों पर टिकट बंटवारे और उम्मीदवारों के चयन ने भी अंदरूनी असंतोष को जन्म दिया, जिसका फ़ायदा एनडीए को मिला।

प्रशांत किशोर की राजनीतिक प्रयोगशाला ने इस चुनाव में तक़रीबन हर विधानसभा सीट पर उम्मीदवार उतारे। उनका मक़सद था कि “कम से कम संघर्ष से अधिकतम संभावना” बनाई जाए। मगर एग्ज़िट पोल ने साफ़ संकेत दे दिया है कि जन सुराज पार्टी को अभी बिहार की ज़मीन पर जड़ें जमाने में वक़्त लगेगा।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किशोर का जन संवाद मॉडल सैद्धांतिक रूप से आकर्षक था, लेकिन चुनावी धरातल पर संगठन, संसाधन और निष्ठावान कार्यकर्ता वर्ग की कमी ने पार्टी को पीछे धकेला।

फिर भी, सियासत के जानकार यह भी याद दिला रहे हैं कि एग्ज़िट पोल हक़ीक़त नहीं, महज़ इशारा होते हैं। बिहार की राजनीति में पहले भी कई बार ऐसे मौक़े आए हैं जब एग्ज़िट पोल की धार पूरी तरह उलट गई। 2015 और 2020 दोनों चुनावों में यह देखा गया था कि ज़मीनी हकीकत ने सर्वेक्षणों की भविष्यवाणी को पलट कर रख दिया।इसलिए सियासी गलियारों में अब भी चर्चा जारी है क्या जन सुराज पार्टी को वास्तव में फर्श पर देखना जल्दबाज़ी होगी, या फिर यह बिहार की सियासत में नई शुरुआत से पहले की ठंडी ख़ामोशी है? 14 नवंबर को जब ईवीएम का पेट खुल जाएगा, तब तय होगा कि यह एग्ज़िट पोल सियासी अटकल था या सटीक निशाना।