Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीमांचल की सियासत में दोस्ती का रंग, 30 साल से एक छत, एक पहनावा, अब चुनावी मैदान में आफताब-कंचन की अनोखी जोड़ी

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीमांचल की सियासत अक्सर सांप्रदायिक तनाव, ध्रुवीकरण और तीखी जुबानों के लिए जानी जाती है, मगर इसी गर्म आग के बीच एक ऐसी ठंडी, खूबसूरत मिसाल खड़ी है जिसे देखकर राजनीति भी शर्माए और समाज मुस्कुराए।

Bihar Vidhansabha Chunav 2025:
सीमांचल की सियासत में दोस्ती का रंग- फोटो : reporter

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीमांचल की सियासत अक्सर सांप्रदायिक तनाव, ध्रुवीकरण और तीखी जुबानों के लिए जानी जाती है, मगर इसी गर्म आग के बीच एक ऐसी ठंडी, खूबसूरत मिसाल खड़ी है जिसे देखकर राजनीति भी शर्माए और समाज मुस्कुराए। आफताब आलम और कंचन दास दो नाम, दो मज़हब, मगर एक जैसी पोशाक, एक छत और 30 साल पुरानी दोस्ती।

कहानी बिलकुल फिल्मी लगती है, लेकिन यह हकीकत है। अगर आफताब नीली पोशाक पहनता है, तो कंचन भी उसी रंग का कपड़ा पहनता है। कंचन गुलाबी कुर्ता पहन ले, तो आफताब भी उसी रंग का कुर्ता-पजामा पहनकर नजर आता है। यह कोई चुनावी नाटक या मीडिया का शोर नहीं तीन दशक से चली आ रही दोस्ती की रूहानी पहचान है।

दोनों सिर्फ दोस्त नहीं दोनों परिवार समेत एक ही छत के नीचे रहते हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव, मज़हबी भीड़ का दबाव, समाज की तंज़ और राजनीति की आँधी सब कुछ साथ झेलते हुए दोनों आज भी एक-दूसरे के भरोसे का नाम हैं।

अब तस्वीर चुनावी हो चुकी है। प्राणपुर विधानसभा सीट से एआईएमआईएम के उम्मीदवार आफताब आलम मैदान में हैं, और कंचन दास सिर्फ समर्थक नहीं स्टार कैंपेनर बनकर कदम-कदम पर दोस्त का हाथ थामे हुए हैं। पोस्टर से लेकर जनसभा तक, हर जगह लोग इस जोड़ी को पहचानते हैं,साझा कपड़े, साझा घर और साझा संघर्ष।

प्राणपुर में लोग कहते हैं यह जोड़ी चुनावी मौसम की बनावटी दोस्ती नहीं, बल्कि तीन दशक की सच्चाई है। जहां सियासत वोट के नाम पर इंसान को बांटती है, वहीं आफताब-कंचन का रिश्ता यह साबित करता है कि मोहब्बत और भरोसा किसी धर्म, जात या झंडे का मोहताज नहीं होता।

सीमांचल की यह जोड़ी राजनीति को इंसानियत का रंग दे रही है और शायद यही वजह है कि जनता भी इन दोनों को सिर्फ नेता या कार्यकर्ता नहीं, बल्कि संदेश मानकर देख रही है।

आफताब और कंचन… रंग अलग हो सकते हैं, धर्म अलग हो सकता है, लेकिन दोस्ती का रंग हमेशा एक जैसा।

रिपोर्ट- श्याम कुमार सिंह