मांझी -चिराग की भिड़ंत से एनडीए को होगा भारी नुकसान! विधानसभा चुनाव में मगध- शाहाबाद की सीटों पर पुरानी रंजिश से बड़ा खामियाजा, दलित भी बंटेंगे
जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच भिड़ंत के संकेतों ने बिहार विधानसभा चुनाव के पहले एनडीए की मुश्किलें बढ़ाने का संकेत दिया है जिससे दलितों के बीच एक असंतोषजनक स्थिति बन सकती है.

Bihar Vidhansabha Election: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले एनडीए के दो दलित नेताओं में सिर फुटौव्वल जारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के हालिया समय में कई ऐसे बयान या संकेत आए हैं जिससे दोनों नेताओं में तनातनी के संकेत मिलते हैं. लोजपा (रा) प्रमुख चिराग पासवान के हालिया मगध- शाहाबाद दौरे में आई भीड़ को भाड़े की भीड़ बताने के हम प्रमुख जीतन राम मांझी के बयान को बिहार के दलित नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई की ही एक बानगी के रूप में ही देखा जा रहा है. बिहार से जुड़े एनडीए के घटक दलों में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच रिश्तों को लेकर कई किस्म के सवाल उठते रहे हैं. लेकिन अब जो बयान आ रहे हैं उससे सीधे तौर पर विधानसभा चुनाव में एनडीए को बड़ा नुकसान भी हो सकता है.
इमामगंज नहीं गए थे चिराग पासवान
नवंबर 2024 में हुए बिहार में चार सीटों के विधानसभा उपचुनाव में इमामगंज सीट पर जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी हम की उम्मीदवार थी. एनडीए समर्थित दीपा के चुनाव प्रचार के लिए चिराग पासवान इमामगंज नहीं गए थे. तब इसे लेकर सवाल उठे कि आखिर वे दीपा के प्रचार में क्यों नहीं गए. इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में 24000 के आसपास पासवान जाति के मतदाता थे. लेकिन वहां चिराग ने दीपा के पक्ष में प्रचार नहीं किया. तब से ही जीतन राम मांझी और चिराग पासवान के बीच दलित वोटों पर वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है. वहीं इमामगंज से प्रशांत किशोर के जनसुराज से प्रत्याशी जितेन्द्र पासवान को 37 हजार 103 वोट मिले थे. माना गया कि अगर चिराग वहां प्रचार को जाते तो पासवान का वोट मांझी की बहू को बड़े स्तर पर मिल सकता था. सियासी जानकारों का मानना है कि चिराग का इमामगंज नहीं जाना जीतन राम मांझी को रास नहीं आया. इसलिए दोनों की बीच आजतक 'तनाव' बना है.
मगध-शाहाबाद में होगा नुकसान
लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को मगध और शाहाबाद की संसदीय सीटों पर बड़ा नुकसान हुआ. गया लोकसभा सीट के अतिरिक्त पाटलिपुत्र, आरा, जहानाबाद, बक्सर, सासाराम और औरंगाबाद में एनडीए उम्मीदवारों की हार हुई. एनडीए की हार का बड़ा कारण इन क्षेत्रों में दलित वोटों का छिटकना माना गया. ऐसे में चिराग और जीतन राम मांझी के बीच जुबानी जंग का असर इस बार के विधानसभा चुनाव में भी पड़ सकता है. दोनों ही नेता क्रमशः पासवान और मुसहर समुदाय के प्रतिनिधित्व चेहरे हैं. ऐसे में अगर दोनों के बीच अंसतोष रहा तो उनकी जाति के वोटर एनडीए को झटका दे सकते हैं.
11 सीट आरक्षित
मगध-शाहाबाद में कुल 11 विधानसभा की ऐसी सीटें हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. विधानसभा चुनाव 2020 में भी इनमें से अधिकांश सीटें एनडीए के खाते में नहीं आई थी. पाटलिपुत्र में फुलवारीशरीफ और मसौढ़ी, गया में बाराचट्टी और बोधगया, औरंगाबाद में कुटुम्बा और इमामगंज, सासाराम में मोहनिया और चेनारी, बक्सर में राजपुर, आरा में अगिआंव और जहानाबाद में मखदमपुर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.
पासवान और मुसहर की आबादी
बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर 2022 को जातिगत सर्वे का आंकड़ा जारी किया. अनुसूचित जाति (एससी) की 22 जातियों की आबादी 2.56 करोड़ से ऊपर है और आबादी में हिस्सेदारी 19.65 परसेंट है. यादव जाति बिहार में सर्वाधिक आबादी वाली जाति है जबकि उसके बाद बिहार में पासवान दूसरे नम्बर पर हैं जो कुल आबादी के 5.311 फीसदी हैं. पासवान यानी दुसाध जाति के लोगों की संख्या 69 लाख 43 हजार है. जाति आधारित गणना रिपोर्ट-2022 में मुसहरों की आबादी 3.08 फीसद बताई गई है जो 40 लाख 35 हजार 787 हैं. वहीं भुईयां की आबादी 11 लाख 74 हजार, 460 है और इसे भी मुसहर की उपजाति के रूप में ही जाना जाता है. हालांकि सियासी प्रतिनिधित्व के तौर पर मुसहर की तुलना में पासवान जाति के ज्यादा प्रतिनिधि दिखते हैं. इन दोनों जातियों के अलावा दलितों में चमार यानी रविदास जाति के लोग 68 लाख 69 हजार 664 हैं.
कितना होगा नुकसान
सियासी जानकारों का मानना है कि एनडीए के घटक दल एकजुट होकर ही चुनाव में उतरेंगे. लेकिन चिराग और मांझी के बीच अगर तनातनी बनी रही तो इससे दलित वर्ग में मुसहर और पासवान के वोटरों में बिखराव आएगा. वहीं चमार वर्ग के वोटरों का कोई प्रतिनिधित्व चेहरा नहीं होने से एनडीए को इनसे भी झटका लग सकता है. सासाराम के कांग्रेस सांसद भी इसी वर्ग से आते हैं. ऐसे में दलित वर्गों का वोट अगर बंटेगा तो यह एनडीए को बड़ा नुकसान दे सकता है. जैसे लोकसभा चुनाव में मगध-शाहाबाद में छह सीटों पर एनडीए को झटका लगा वैसे ही दलित वोटों से विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर नुकसान की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.