Madhepura Assembly Seat: मधेपुरा में सियासी जंग का बिगुल, क्या मंडल फैक्टर से ध्वस्त होगा राजद का 'अभेद्य' किला?

Madhepura Assembly Seat: एनडीए की एकजुटता के साथ-साथ, राजद के पारंपरिक वोट बैंक में भी दरार पड़ने की आशंका है. राजद के कुछ समर्थक भी यह कहने लगे हैं कि इस बार 'दल नहीं, बीपी मंडल जी के नाम पर वोट डालना है.

Madhepura Assembly Seat
मधेपुरा में सियासी जंग का बिगुल- फोटो : Hiresh Kumar

Madhepura Assembly Seat: मधेपुरा विधानसभा, जो कभी सहरसा का एक अनुमंडल था और अब कोसी अंचल का जिला बन चुका है, एक बार फिर से चुनावी रणभूमि के लिए तैयार है. यह क्षेत्र न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, बल्कि अपनी विशिष्ट 'यादव राजनीति' के लिए भी जाना जाता है. मधेपुरा की माटी, जो ऋषि श्रृंग और सिंहेश्वर स्थान के धार्मिक महत्व से जुड़ी है, राजनीतिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रही है. 1957 से लेकर अब तक के 17 विधानसभा चुनावों में यादव समुदाय का वर्चस्व रहा है, जिसने इसे 'यादव गढ़' की उपाधि दी है.

मधेपुरा की सियासत ने कई दिग्गज नेताओं को जन्म दिया है, भले ही उनका मूल संबंध इस धरती से न रहा हो. बीपी मंडल, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और पप्पू यादव जैसे बड़े नाम इस क्षेत्र की राजनीति में हमेशा चर्चा का विषय रहे हैं. लालू प्रसाद यादव ने शरद यादव को इस सियासी दंगल में उतारा, लेकिन दोनों की अदावत ने 1999 के लोकसभा चुनाव में एक ऐसा सियासी तूफान खड़ा किया, जिसमें शरद यादव ने लालू को शिकस्त देकर सबको चौंका दिया. पप्पू यादव, जिनकी छवि एक समय बाहुबली नेता की थी, ने भी यहां अपनी पैठ बनाई, लेकिन यादव मतदाताओं का ध्रुवीकरण किसी एक नेता को स्थायी जनाधार नहीं दे सका.

वर्तमान में, यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास है और चंद्रशेखर यादव ने लगातार तीन बार 2010, 2015 , 2020 चुनाव जीत दर्ज कर अपनी सियासी पकड़ को मजबूत किया है. राजद की इस मजबूती का एक बड़ा कारण एल्पस्टॉम लोकोमोटिव फैक्ट्री को भी माना जाता है, जिसका प्रस्ताव लालू यादव ने 2007 में रखा था.

लेकिन 2025 का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि राजद के सामने कई चुनौतियां हैं. एक तरफ, पप्पू यादव की सक्रियता से यादव वोटों में सेंधमारी का खतरा मंडरा रहा है, तो दूसरी तरफ, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन, बीपी मंडल के पोते निखिल मंडल पर दांव खेलने की रणनीति बना रहा है. निखिल मंडल की सभाओं और बैठकों में "बीपी मंडल अमर रहे" के नारे गूंज रहे हैं, जो एक नए समीकरण का संकेत है.

एनडीए की एकजुटता के साथ-साथ, राजद के पारंपरिक वोट बैंक में भी दरार पड़ने की आशंका है. राजद के कुछ समर्थक भी यह कहने लगे हैं कि इस बार 'दल नहीं, बीपी मंडल जी के नाम पर वोट डालना है.' निखिल मंडल के जदयू से चुनाव लड़ने की सूरत में, वर्तमान विधायक चंद्रशेखर यादव की मुश्किलें बढ़ना तय है. मधेपुरा का यह चुनावी रण, जिसे अब तक राजद का अभेद्य किला माना जाता था, क्या मंडल फैक्टर से ध्वस्त हो जाएगा, यह तो 2025 का चुनावी परिणाम ही बताएगा.