Sohum Shah crazy Movie Review: अगर आपको 93 मिनट की एक ऐसी फिल्म देखने को मिले जिसमें सिर्फ एक ही एक्टर हो, और आप 93 मिनट तक पलक भी न झपकाएं, तो समझ लीजिए यह एक कमाल का सिनेमा है। सोहम शाह को अब तक लोग 'तुम्बाड' के लिए जानते थे, लेकिन इस फिल्म के बाद उनकी पहचान और भी मजबूत हो गई है।
गिरीश कोहली के बेहतरीन लेखन और निर्देशन में बनी इस फिल्म ने साबित किया कि अच्छी राइटिंग और दमदार एक्टिंग एक फिल्म को खास बना सकती है। इस फिल्म की कहानी, निर्देशन, म्यूजिक, और सोहम शाह की अदाकारी के बारे में आइए विस्तार से जानते हैं।
कहानी
कहानी एक डॉक्टर की है, जिसे किसी को 5 करोड़ रुपये देने हैं, जो उसकी जिंदगी के लिए जरूरी है। अचानक उसे एक फोन कॉल आता है कि उसकी बेटी का किडनैप हो गया है और किडनैपर को 5 करोड़ रुपये चाहिए।डॉक्टर और उसकी बेटी के बीच रिश्ते खराब हैं। तलाकशुदा पत्नी और बेटी के बीच दूरी क्यों है? क्या बेटी सच में किडनैप हुई है? किडनैपर कौन है? और क्या डॉक्टर इन 93 मिनटों में अपनी बेटी को बचा पाएगा? ये सारे सवाल आपको थिएटर तक खींच लाएंगे।
कैसी है फिल्म?
यह फिल्म कमाल की है। बेहतरीन लेखन, दमदार अदाकारी, अच्छा म्यूजिक और फिल्म का ट्रीटमेंट इसे एक यादगार फिल्म बनाते हैं। फिल्म की शुरुआत से ही आप इसके साथ बंधे रहेंगे। आखिरी के 20-25 मिनट इतने जबरदस्त हैं कि आप हैरान रह जाएंगे। कई ऐसे दृश्य भी हैं, जहां आपकी आंखें बंद करने का मन करेगा।
पूरी फिल्म में सिर्फ एक ही एक्टर है, लेकिन आपको यह महसूस नहीं होगा, क्योंकि पटकथा और ट्विस्ट इतने जबरदस्त हैं कि आप अंदाजा नहीं लगा पाएंगे कि आगे क्या होने वाला है। और जब फिल्म खत्म होती है, तो यह आपको इमोशनल कर देती है।
एक्टिंग
इस फिल्म में सिर्फ एक ही एक्टर है और वो हैं सोहम शाह। उन्होंने हर सीन में दमदार प्रदर्शन किया है। बेटी के लिए इमोशंस दिखाना हो, एक्स वाइफ से बात करना हो, किडनैपर से बातचीत हो या सर्जरी के निर्देश देना, हर फ्रेम में सोहम ने बेहतरीन काम किया है। बिना किसी शर्टलेस सीन या सिक्स पैक दिखाए, उन्होंने दर्शकों को 93 मिनट तक स्क्रीन से बांधकर रखा है। 'तुम्बाड' के बाद यह उनकी एक और यादगार परफॉर्मेंस है। सोहम शाह ने यह साबित किया है कि असली एक्टिंग कैसे की जाती है। कई एक्टर्स को उनसे सीखना चाहिए।
डायरेक्शन
गिरीश कोहली ने इस फिल्म को लिखा भी है और डायरेक्ट भी किया है। उन्होंने पहले भी 'मॉम', 'हिट: द फर्स्ट केस' और 'केसरी' जैसी फिल्मों के लिए लेखन किया है। इस फिल्म में उनका लेखन और निर्देशन दोनों कमाल के हैं।
उन्होंने फिल्म को 93 मिनट तक सीमित रखा, जो कहानी के हिसाब से एकदम सही है। गिरीश को पता था कि फिल्म में सिर्फ एक कैरेक्टर है, इसलिए उन्होंने इसे सटीक और टाइट रखा है। उनकी लेखन शैली और निर्देशन से यह सीखने को मिलता है कि कैसे एक छोटी लेकिन प्रभावशाली फिल्म बनाई जा सकती है।
म्यूजिक
फिल्म का म्यूजिक भी उतना ही खास है। गुलजार साहब के लिखे गाने और विशाल भारद्वाज के संगीत ने फिल्म को और खास बना दिया है। फिल्म में गानों के लिए ज्यादा जगह नहीं थी, लेकिन जब गाने आते हैं, तो वे अपनी जगह बखूबी बना लेते हैं। खासकर क्रेडिट रोल के दौरान गाना चलता रहता है, जो आपको फिल्म खत्म होने के बाद भी थिएटर में बांधे रखता है। यह फिल्म बेहतरीन लेखन, दमदार एक्टिंग और सटीक निर्देशन का एक शानदार उदाहरण है। सोहम शाह की परफॉर्मेंस ने इसे और खास बना दिया है। अगर आप अच्छे सिनेमा के शौकीन हैं, तो इस फिल्म को थिएटर में जरूर देखें।