10 और 11 अक्टूबर: रेखा का हुस्न, अमिताभ का व्यक्तित्व — सिनेमा का सुनहरा संगम जहां जन्म 12 घंटे बाद रिश्तों में सदियों की दूरी

Rekha- Amitabh Bachchan: रेखा वो नाम जो ख़ूबसूरती की तश्बीह है। और, अमिताभ बच्चन वो नाम जो भारतीय सिनेमा में सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, एक युग की पहचान बन चुका है। रेखा की अदाओं में वो नज़ाकत है जो ग़ज़लों के मिसरे याद दिला दे। रेखा की आँखों में जैसे शबनमी ख़्वाब तैरते हैं। गहराई ऐसी कि देखने वाला अपना आप भूल जाए। उनके होंठों पर मुस्कान नहीं, एक नर्म-सा इज़हार-ए-मोहब्बत ठहरता है। वहीं अमिताभ जो सब्र, अनुशासन और जज़्बे की झलक हैं। उनकी आवाज़ में वो गरज है जो किसी को अपनी ओर जोड़ दे, और उनके अंदाज़ में वो ठहराव जो सागर की गहराई जैसा है।
ऊपर वाले ने शायद कुछ सोच कर ही इन दो मित्रों का जन्म एक दिन के आगे पीछे दिया होगा। 10 अक्टूबर को रेखा और 11 अक्टूबर को अभिताभ बच्चन का जन्मदिन है। दोनों के जन्मदिन में महज 12 घंटे का अंतर है लेकिन रिश्तों का उलझनों भरा फासला है।
रेखा को देखिए तो उनका चलना किसी ख़ामोश नज़्म की रवानी जैसा है, बेआवाज़ मगर असरदार। ज़ुल्फ़ों की लहरों में शाम की ठंडक है, और चेहरे की रौनक में सुबह की रौशनी। रेखा की हर अदाकारी में एक तहज़ीब, एक सलीक़ा, और एक तिलिस्म है जो दिलों को अपनी गिरफ़्त में ले लेता है। वो सिर्फ़ हुस्न नहीं, एक एहसास हैं जो देख लेने के बाद आँखों में ठहर जाता है। उनकी बातों में नर्म लहजा, आवाज़ में मीठी खनक, और नज़रों में वो कशिश है जो शेरों में बयान करना भी मुश्किल हो जाए।
और अमिताभ "एंग्री यंग मैन" के रूप में उन्होंने आम आदमी की तकलीफ़ों को पर्दे पर इस क़दर जिया कि पूरा देश उन्हें अपना प्रतिनिधि मान बैठा। उनके संवाद, उनके हाव-भाव और उनकी नज़र का एक इशारा सिनेमा के इतिहास में अमर हो गया। सफलता उनके लिए कभी मंज़िल नहीं रही वो तो उनका सफ़र है, जो आज भी जारी है।
रेखा को देख कर यक़ीन होता है कि ख़ूबसूरती सिर्फ़ चेहरे की नहीं, अदाओं की भी होती है। वो एक मुकम्मल शेर हैं — जिसमें हर हरकत, हर मुस्कराहट, और हर नज़र एक मिसरा है। वहीं अमिताभ के व्यक्तित्व में पुरुषार्थ की वो परिभाषा झलकती है जो संघर्ष से निखरती है, और विनम्रता से चमकती है।
एक टीवी शो के दौरान रेखा ने कहा था की “इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह शादीशुदा थे। गुलाब तो गुलाब ही होता है। इंसान दिलचस्प होता है, बस। मैं इस इंसान के साथ जुड़ने का सम्मान पाना चाहती हूं, तो मुझे कौन रोक रहा है? मैं यहां उनका घर तोड़ने नहीं आई हूं। मैं यहां उन कमजोर लोगों में से एक बनने आई हूं जो उनकी एक झलक पाकर खुश हो सकें'।
ऐसे दो दोस्तों को जन्मदिन मुबारक ...