NEW DEHLI : मैरिटल रेप को अपराध मानने का केंद्र सरकार ने विरोध किया है। इस संबंध में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दिया। केंद्र ने कहा कि यौन संबंध पति-पत्नी के बीच संबंधों के कई पहलुओं में से एक है, जिस पर उनके विवाह की नींव टिकी होती है। इसलिए इसे अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता है।
सरकार ने कहा कि यह मुद्दा कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक है। इसके बावजूद अगर इसे अपराध घोषित करना ही है, तो यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। सरकार ने यह भी कहा कि सभी स्टेकहोल्डर्स से चर्चा किए बिना इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है। सरकार ने यह भी कहा इस संबंध में पहले से ही कानून में कई प्रावधान किए गए हैं।
केंद्र ने कहा- संसद ने पहले ही विवाह के अंदर शादीशुदा महिला की सहमति की सुरक्षा करने के कई उपाय किए हैं। इसमें IPC के सेक्शन 498A के तहत शादीशुदा महिला से क्रूरता, महिला की अस्मिता का उल्लंघन करने के खिलाफ कानून और घरेलू हिंसा से बचाव, 2005 का कानून शामिल है।
केंद्र ने यह स्वीकार किया कि शादी के बाद भी महिला की सहमति का महत्व खत्म नहीं हो जाता है और महिला की गरिमा के किसी भी तरह के उल्लंघन पर आरोपी को सजा दी जानी चाहिए। साथ ही केंद्र ने यह भी कहा कि शादी के रिश्ते के बाहर इस तरह की घटना होती है, तो उसका नतीजा शादी के रिश्ते में होने वाले उल्लंघन अलग होता है।
केंद्र ने कहा कि विवाह में पति-पत्नी को एक-दूसरे से सेक्शुअल रिलेशन बनाने की उम्मीद रहती है, हालांकि ऐसी उम्मीदों के चलते पति को यह अधिकार नहीं मिलता कि वह पत्नी के साथ जबरदस्ती करे। किसी पति को एंटी-रेप कानून के तहत सजा देना गैरजरूरी कार्रवाई हो सकती है।