Health News: तीन भाइयों की रहस्यमयी बीमारी जिसने दुनिया के साइंस को हिला दिया, क्या है सोलर किड्स सिंड्रोम, जान लीजिए
सूरज ढलते ही इन बच्चों का पूरा जिस्म लकवाग्रस्त हो जाता, जबकि दिन की रोशनी में वे बिल्कुल सामान्य दिखाई देते थे। डॉक्टरों और साइंटिस्ट्स ने पहली बार इस केस को देखा तो अलार्म बज उठा क्योंकि दुनिया के इतिहास में इससे मिलता-जुलता कोई केस दर्ज नहीं थी..
Health News: बीमारी इतनी नई थी कि सूरज ढलते ही इन बच्चों का पूरा जिस्म लकवाग्रस्त हो जाता, जबकि दिन की रोशनी में वे बिल्कुल सामान्य दिखाई देते थे। डॉक्टरों और साइंटिस्ट्स ने पहली बार इस केस को देखा तो मानो अलार्म बज उठा क्योंकि दुनिया के इतिहास में इससे मिलता-जुलता कोई केस दर्ज नहीं था। कई वर्षों की मेडिकल रिसर्च के बाद इसे मैसेथेमिया सिंड्रोम का नाम दिया गया। पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में रहने वाले तीन भाई जिन्हें दुनिया “सोलर किड्स” के नाम से जानने लगी एक ऐसी दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित थे, जिसने मेडिकल साइंस को हैरत में डाल दिया।
दिन की रौशनी इनके लिए सिर्फ उजाला नहीं, बल्कि एक तरह का फिज़ियोलॉजिकल फ्यूल थी एक ऐसी कुदरती बिजली, जिससे उनकी मांसपेशियाँ एक्टिव रहती थीं। सूरज की किरणें इनके शरीर में एक फोटोवोल्टिक-नुमा प्रभाव पैदा करती थीं, मानो जैसे सोलर पैनल सूरज से एनर्जी लेकर बिजली पैदा करते हैं। लेकिन जैसे ही सूरज ढलता, यह "नेचुरल चार्ज" खत्म हो जाता और शरीर की मांसपेशियाँ बेजान पड़ जातीं।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंस के वीसी डॉ. जावेद अकरम के अनुसार, इन बच्चों के न्यूरो-ट्रांसमिटर्स सही तरह से फंक्शन नहीं कर रहे थे, यानी दिमाग से मांसपेशियों तक जाने वाले सिग्नल रात में बाधित हो जाते थे। साथ ही एक गंभीर एंज़ाइम-डिफिशियंसी भी पाई गई, जो सामान्य लोगों में ऊर्जा उत्पादन को संतुलित रखती है। पाँच भाइयों में से दो की मौत इसी बीमारी की जकड़ में हुई।
विशेषज्ञों को शक है कि इसका मूल कारण आनुवंशिक विकार है जिसे कज़िन मैरेज वाले परिवारों में ज़्यादा देखा जाता है। आईजीआईएमएस के डॉ. रोहित उपाध्याय के अनुसार, पारिवारिक जीन पूल में समानता होने की वजह से ऐसे रेयर डिसऑर्डर पैदा हो सकते हैं।
सालों की कड़ी रिसर्च के बाद एक्सपर्ट्स ने एक खास दवा विकसित की, जिसमें डोपामाइन-सप्लीमेंटेशन और एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी शामिल है। यही गोली उनके शरीर की कमी को पूरा करती है और सूरज की गैर-मौजूदगी में भी उन्हें चलने-फिरने की ताकत देती है। फिलहाल यह बीमारी दुर्लभ तो है पर आंशिक रूप से इलाज योग्य मानी जा रही है, बशर्ते समय पर डायग्नोसिस और जेनेटिक काउंसलिंग की जाए।
यह केस सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के न्यूरोलॉजी और जेनेटिक्स साइंस के लिए एक रहस्य, एक चुनौती और एक नई मेडिकल समझ बनकर सामने आया है।