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70 विधायक , 34 एमएलसी और 15 सांसद ,फिर भी खाली मैदान, क्यों????

PATNA : कहा जाता है कि सियासत के बिसात पर तस्वीरों के सहारे तकदीर और तदबीर बनाये भी जाते हैं और बिगाड़े भी जाते हैं।तस्वीर से आपके इकबाल के तासीर का अनुमान बखूबी लगाया जाता है। पटना के गांधी मैदान में आहूत जदयू के कार्यकर्ता सम्मेलन ,जिसके दावे काफी बड़े बड़े थे, वह अपने ही मुखिया के सामने बौना साबित हो रहा था।किसी भी नेता के लिये सामने बैठी भीड़ की संख्या   काफी परेशान करने वाली थी। कार्यकर्ता सम्मेलन के दावे गांधी मैदान में सिर के बल खड़ा होकर संगठनकर्ताओं की असफलता की कहानी कह रहे थे। बड़ा सवाल यह है कि क्या कार्यकर्ता सम्मेलन अर्थात शक्ति प्रदर्शन का यह मौका बुरी तरह चूक जाने का जिम्मेदार कौन है? 

जदयू के कार्यकर्ता सम्मेलन के बहाने शक्ति प्रदर्शन के मुजायरा का गांधी मैदान में पेट के बल गिर जाना असफलता का द्योतक भी है और आश्चर्यजनक भी ।पिछले 15 सालों से सत्ता के शीर्ष पर बैठे नीतिश कुमार को यह दृश्य हैरान भी कर रहा होगा और परेशान भी। भला जिस सत्ताधारी पार्टी के पास सुशासन का एजेंडा, 70 विधायक ,34 एमएलसी और 15 सांसद का मजबूत कुनबा हो वह दल गांधी मैदान के एक कोने का कायनात भी न भर पाए यह काफी शर्मनाक है। इतना ही नहीं यह तस्वीर तीर वाली पार्टी के लक्ष्य पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करने के मौकों को मुहैया कराती है।तस्वीर को देखकर विपक्षी पार्टियों ने अपने तरकश से ने दनादन व्यंग्य बाण के तीर चला ही दिए हैं। बड़ा सवाल है कि इन परिस्थितियों का जिम्मेदार कौन है? 

जदयू क्या कहती है? 

गांधी मैदान से परेशान करने वाली उठ रही तस्वीरों पर पार्टी के नेताओं ने अपने अपने तर्क दिए हैं। मसलन यह सक्रिय कार्यकर्ता सम्मेलन था। धूप की वजह से लोग किनारे में चले गए थे।भीड़ आयी थी लेकिन लोग पटना घूमने लगे। मतलब कोई भी तर्क तार्किक नहीं दिखता . सवाल यह है दल के बड़े नेताओं के द्वारा किये गए उन दावों का क्या हुआ जिन्होंने कहा था कि 2 से ढाई लाख कार्यकर्ता जुटेंगे। क्या यह संगठनकर्ताओं के अति आत्मविश्वास की वजह तो नहीं। सवाल यह भी है कि अगर कार्यकर्ता सम्मेलन ही करना था तो फिर गांधी मैदान का चुनाव क्यों?गांधी मैदान की क्षमता से तो जदयू के वरिष्ठ नेता भी वाकिफ थे,फिर यह ब्लंडर कैसे हुआ? 

इस तस्वीर का जिम्मेवार कौन? 

इस विफलता को राजनीति के चौसर पर वक्तव्यों के सहारे रचनात्मकता का रंग देकर स्वान्तः सुखाय का स्वांग करना मजबूरी हो सकती है लेकिन सच को झुठलाया नहीं जा सकता। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि एनडीए गठबंधन में अपने कद को कार्यकर्ता सम्मेलन के बहाने शक्ति प्रदर्शन कर कायदे से ऊंचा करने का मिशन कहीं न कहीं मिस कर गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके जिम्मेदार जदयू नेताओं का अति आत्मविश्वास है। नेताओं का एक दूसरे पर भीड़ जुटा लेने  वाले भरोसे ने पार्टी और मुखिया की भदद पिटवा दी। बड़े दावों का हवा यूं निकल जाने की समीक्षा जरूर की जाएगी लेकिन यह तय है कि मंत्री ,विधायको और सांसदों ने इस सम्मेलन के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाई। यह सारे लोगों के लिये नहीं कहा जा सकता लेकिन जनप्रतिनिधीयों की एक बड़ी संख्या सक्रिय नहीं रही।

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