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उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां आज भी बगैर बिजली और मोबाइल के रहते हैं लोग, शांति की तलाश में दूर-दूर से आते हैं लोग यहां

उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव जहां आज भी बगैर बिजली और मोबाइल के रहते हैं लोग,  शांति की तलाश में दूर-दूर से आते हैं लोग यहां

DESK : आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में सोचिए अगर आपसे बिजली और मोबाइल छीन लिया जाए तो आप क्या करेंगे.. दुनिया अब बिजली और पानी जैसी बुनियादी जरूरत से बहुत ऊपर उठ चुकी है। अब हम AI युग में प्रवेश कर चुके हैं एक उंगलियों से हम पूरी दुनिया से जुड़ सकते हैं। आज के इस दौर में इंसान फोन के बिना एक पल भी नहीं रह सकता है.... अब तो बगैर मोबाइल फोन के इंसान अधूरा है या यूं कहें इंसान की दुनिया अब मोबाइल ही है। इस भागती दौड़ती भरी जिंदगी में आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश में एक ऐसी जगह है जहां आज भी लोग बिजली मोबाइल और तकनीकी चीजों से कोसों दूर है इस भागती-दौड़ती दुनिया से बिल्कुल अलग इस जगह पर ना तो शोर है ना ही भीड़-भाड़ है।

 जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के वृंदावन के टटिया गांव की... वृंदावन के टटिया गांव में ठाकुर जी विराजमान है यहां पर अलग ही शांति है इस जगह पर लोग शांति और सुकून की तलाश में आते हैं टटिया गांव में प्राकृतिक से निकटता दिव्यता और आध्यामिकता का एहसास होता है। हैरान करने वाली बात यह है कि टटिया गांव में किसी भी तरह के यंत्र का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यहां पर किसी भी तरह बिजली का प्रयोग भी नहीं किया जाता है। यहां मशीन या बिजली तो दूर मोबाइल फोन और बल्ब का इस्तेमाल भी नहीं होता है। इस जगह पर पंखा तक का इस्तेमाल नहीं होता है।

  

आप हैरान मत होइए यह बिल्कुल सच है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज के दौर में ऐसा कोई गांव सच में है क्या? जी बिल्कुल है।  इस स्थान पर जाकर व्यक्ति को लगता है कि वह कई शताब्दी पीछे आ चुका है> यहां आरती के समय बिहारी जी का पंखा पुराने समय की तरह डोरी से चलता है। उत्तर प्रदेश में स्थित वृंदावन शहर धार्मिक स्थल के रूप में मशहूर है। वृंदावन का छोटा सा टटिया गांव सुकून और शांति का अहसास कराता है। इस गांव के लोग शोर-शराबे, तकनीक, मशीन और बिजली के उपयोग से बिल्कुल दूर हैं। यहां बिजली नहीं है और न ही गांव के लोग फोन व एसी का उपयोग करते हैं। ये जानकर हैरानी होगी कि जहां घर-घर में पंखे और एसी मिल जाते हैं, वहीं इस गांव के किसी भी घर में पंखे और बल्ब तक नहीं लगे हैं। यहां ठाकुर जी का एक मंदिर है, जिसमें भगवान को हवा देने के लिए पुराने जमाने के डोरी वाले पंखे का उपयोग होता है। 

रोचक है गांव का इतिहास

गांव से जुड़ा इतिहास काफी रोचक है। सातवें आचार्य स्वामी ललित किशोरी देव जी निधिवन छोड़कर एक निर्जल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाने का फैसला लिया। आचार्य जी के लिए इस जगह को सुरक्षित बनाने के लिए बांस के डंडे का उपयोग करते हुए पूरे इलाके को घेर लिया गया। स्थानीय भाषा में बांस की छड़ियों को टटिया कहते हैं। ऐसे में गांव का नाम टटिया पड़ा। इसी स्थान पर साधु-संत संसार से अलग होकर ठाकुर जी की आराधना में लीन होने के लिए आते हैं। इस गांव में आकर लगेगा कि कई शताब्दियों पीछे चले गए हैं, जहां बाहरी दुनिया से कोई मोह या संपर्क नहीं होता।

REPORT - MD. ASIF KHAN

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