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बिहार के इस शहर से अभिनेता संजय दत्त के परिवार का अनोखा रिश्ता, आज भी मौजूद है जद्दन बाई का महल....

बिहार के इस शहर से अभिनेता संजय दत्त के परिवार का अनोखा रिश्ता, आज भी मौजूद है जद्दन बाई का महल....

GAYA: बिहार के गया से देश की प्रसिद्ध नर्तकी-गायिका रही जद्दन बाई का गहरा संबंध रहा है। जद्दन बाई फिल्म अभिनेता संजय दत्त की नानी थी। आज भी गया में जद्दन बाई के नाम की हवेली मौजूद है। कहा जाता है, कि इस हवेली में रईसों की महफिल सजती थी और जद्दन बाई के ठुमरी गायन और नृत्य के एक से बढ़कर एक कद्रदान आते थे। जद्दन बाई के इसी महल के पास जफर नवाब का महल था, जो अब जमींंदोज हो चुका है, लेकिन जद्दन बाई को दी गई हवेली आज भी मौजूद है।

जद्दन बाई संजय दत्त की नानी और नरगिस की मां थी। जानकार बताते हैं कि जद्दन बाई की मां दलीपबाई तवायफ थी। जद्दन बाई को विरासत में संगीत नृत्य मिला था। जद्दन बाई जब ठुुमरी गायन करती थी, तो राजा रजवाड़े, रईस मंत्र मुग्ध हो जाते थे। जानकार बताते हैं, कि जद्दन बाई की तीन शादियां थी। उस समय दौलत बाग राजवाड़ा था, जो आज का गया का शहर का पंचायती अखाड़ा है। तब दौलत बाग के नवाब जफर उद्दीन हुआ करते थे। जफर नवाब जद्दन भाई के ठुमरी से इतने प्रभावित हुए कि इन्होंने अपने महल में ही जद्दन बाई को एक हवेली दी थी।

जद्दन बाई का एक महल आज भी गया शहर में मौजूद है। पंचायती अखाड़ा में डायट परिसर में मौजूद यह महल जीर्ण शीर्ण हालत में आता जा रहा है। किंतु इस महल की यादें जद्दन बाई के नाम से ही चमक उठती है। देश की प्रसिद्ध ठुमरी गायिका जद्दन बाई के इस महल में आने वाले यहां आकर मन्नत मांगते हैं। इस तरह आज भी लोगों के लिए यह महल एक जिंदा स्वरूप है, लोग यह भी बताते हैं कि इस महल के सामने खङे  होकर मांगी गई मन्नत भी पूरी होती है। इस तरह से जद्दन बाई का महल आज मन्नत पूरी करने वाली एक स्थली के रूप में भी जाना जाने लगा है।

जद्दन बाई का लगाव बनारस- कोलकाता के साथ-साथ गया से भी रहा, हालांकि जद्दन बाई के इतिहास को गया से जुड़े उनके तथ्यों को गंभीरता से अब तक रेखांकित नहीं किया गया है, लेकिन जानकार कई तथ्यों को उजागर करते हैं। बताते हैं, कि जद्दन भाई का रिश्ता बनारस और कोलकाता से है ही, साथ ही साथ गया से भी बड़ा रिश्ता रहा है। उस समय बनारस, कोलकाता के अलावे गया भी नृत्य संगीत का बड़ा केंद्र होता था। गया में जद्दन बाई को संगीत के जो गुरु मिले, वहीं मुंबई में इनके संगीत की हर प्रतिभा संगीत प्रेमियों के सर चढ़कर बोलने लगी और यह सफलता का मुकाम चूमने लगी थी। इसका प्रमाण गया शहर में स्थित जद्दन बाई का महल है। जद्दन बाई गया घराना से भी जुड़ी थी। उसके ठुमरी गायन, नृत्य के कद्र करने वाले रईस, प्रसिद्ध राजा राजवाड़े के वंशज भी थे। कई प्रसिद्ध राजाओं के वंशज जद्दन बाई के महल में ठुमरी गायन और नृत्य देखने आते थे। गया में जद्दन बाई के कई साल बीते। हालांकि, समय बीतने के साथ जद्दन बाई प्रसिद्ध भारतीय गायिका और अभिनेत्री भी बनी।

समय-समय पर गया में आने वाले प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता संजय दत्त कहते भी रहे हैं, कि गया से हमारा गहरा नाता है। गया हमारा ननिहाल है। इसका बड़ा उदाहरण जद्दन बाई का महल है, जो आज भी मौजूद है। इसकी देख-देख उनकी पुत्री नरगिस ने काफी समय तक की, लेकिन फिर अब देखरेख के अभाव में यह बड़ी विरासत अब अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खोने लगी है। जद्दन बाई का महल जीर्ण शीर्ण हो चला है।  हालांकि ऐसे धरोहरों को कहीं न कहीं संजो कर रखने की जरूरत है, क्योंकि इस महल को बनाने में अद्भुत कला दिखाई गई, जो धीरे-धीरे आप ढहती जा रही है। गया में गया घराने से जुड़े पंडित राजेंद्र सिजुआर शास्त्रीय उप शास्त्रीय गायकी से जुड़े हुए हैं। ये जद्दन बाई के संबंध में काफी कुछ जानकारी रखते हैं। पुराने इतिहास की चीजों पर उनकी अच्छी पकड़ है। गया घराने से जुड़े पंडित राजेंद्र सिजुुआर बताते हैं कि जद्दन बाई को जफर नवाब से प्रश्रय मिला। जफर नवाब बड़े संगीत प्रेमी थे। यहीं वजह है जफर नवाब की हवेलियों के बीच में जद्दन बाई की हवेली आज भी मौजूद है, जो कि उनके द्वारा जद्दन बाई को दी गई थी।

बताते हैं कि गया में पंडित स्वर्गीय माधव लाल कटारिया के सान्निध्य में गायकी संगीत में जद्दन बाई का निखार आया। इसके बाद कोलकाता मुंबई की राह खुली। बताते हैं, कि जद्दन बाई की मां तवायफ थी। पहले संगीत तो वाइफ़ों के पास रहते थे। उस जमाने में ठप्पा ठुमरी की कदर करने वाले होते थे। संगीत तो तवायफों के घराने से विकसित हुआ है। गया इसका केंद्र रहा है जद्दन बाई यहां कई सालों तक रही है। कई दफा तो छह-छह महीने तक गया में रह जाया करती थी। पंडित राजेंद्र सिजुुआर बताते हैं कि पहले के जमाने में टावर चौक के पास में जिसे सराय रोड बोला जाता है, बहुत सी नर्तकियां रहा करती थी। तब इस पेशे की काफी कद्र हुआ करती थी, लेकिन अब यह गुम हुआ है। गायकी, नर्तकी करने वालों के कद्र करने वाले भी कम हो गए हैं। समय के साथ सब कुछ बदलाव हुआ है और यही वजह है कि अब वह संगीत घराना नहीं मिलता है। इसका स्वरूप भी कहीं है, तो वह फूहङ हो गया है। 

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