नीरज चोपड़ा ने फिर दिखाया कमाल ,अस्सी किलो वजनी नीरज ने कभी नहीं सोचा था कि स्वर्ण पदक जीतकर रचेगा इतिहास

नीरज चोपड़ा ने फिर दिखाया कमाल ,अस्सी किलो वजनी नीरज ने कभी नहीं सोचा था कि स्वर्ण पदक जीतकर रचेगा इतिहास

DELHI :- जैवलिन थ्रो में ओलंपिक चैंपियन भारत के नीरज चोपड़ा ने अब वर्ल्ड चैंपियनशिप को भी अपने नाम कर लिया है.अब भारत को दुनिया में सबसे सधा भाला फेंकने वाला नीरज चोपड़ा भी मिल गया है. टोक्यो ओलंपिक में एथलेटिक्स में पहला सोने का तमगा दिलाने वाले नीरज ने फिर इतिहास रचा है. अब रविवार को हंगरी में आयोजित वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सोना जीता है.नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था.वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 88.17 मीटर की थ्रो के साथ नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीता.

 पिछले साल विश्व स्पर्धा में नीरज ने रजत जीता था. दुनिया की सभी मुख्य स्पर्धाओं में वह स्वर्ण पदक जीत चुका है. सबसे खास बात यह है कि नीरज कभी हार नहीं मानते और अपनी उपलब्धि को अंतिम मानकर संतुष्ट नहीं होते. यही वजह है कि उन्होंने अपने ओलंपिक रिकॉर्ड से ज्यादा दूर भाला फेंककर सोने का तमगा जीता है.

गोल्ड मेडल जीतने के बाद नीरज चोपड़ा ने कहा, “मैं सोच रहा था कि लंबा जाऊंगा. पहली थ्रो के साथ, लेकिन इस प्रयास में कुछ तकनीकी दिक्क़तें रहीं. पहला थ्रो ख़राब रहा, ऐसा होता है. लेकिन मैंने और ज़ोर लगाया. मैं अपनी चोट के बारे में भी सोच रहा था. मैं सावधानी बरत रहा था और मेरी गति सौ प्रतिशत नहीं थी. जब मेरी रफ़्तार मेरे साथ नहीं होती है तो मैं गिरावट महसूस करता हूँ और मेरे लिए 100 प्रतिशत फिट होना ही प्राथमिकता है.”

 यह उनके श्रेष्ठ प्रदर्शनों में शामिल नहीं है, देश के लिये सबसे बड़ी खुशखबरी यह भी है कि नीरज ने नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को भी प्रेरित किया है, यही वजह है कि पहली बार विश्व स्पर्धा के फाइनल में नीरज समेत तीन खिलाड़ी पहुंचे, जिसमें कृष्णा जेना और डीपी मोनू भी शामिल रहे. नीरज जब मैदान में उतरते हैं, आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं.

नीरज चोपड़ा कई चोटों से उबरे और फिर अपना सर्वश्रेष्ठ देते चले गये. उनके जीवन की सहजता उनकी ऊर्जा है. जीतने के बाद बोले- ‘मेरा वर्ल्ड चैंपियन होना बताता है कि हम भारतीय कुछ भी कर सकते हैं, जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में.’ उनके आत्मविश्वास का ये आलम है कि वे जब भी मैदान में उतरते हैं तो उनके प्रशंसक मानकर चलते हैं कि वे सोना ही लाएंगे. इसकी मूल वजह उनके हर बार बेहतर प्रदर्शन की ललक और हर प्रतियोगिता में बेहतर करने का जुनून। बहरहाल, वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में वर्ष 2003 में अंजू जॉर्ज ने कांस्य पदक जीतकर जो शुरुआत की थी, उसे सोने में बदलने में करीब दो दशक लगे, जिसे नीरज ने संभव बनाया.

नीरज चोपड़ा राष्ट्रीय हीरो हैं. कड़े अभ्यास और मेहनत से आज नीरज के खाते में अंडर-20, एशियन गेम्स, राष्ट्रमंडल खेल, डायमंड लीग और ओलंपिक के सुनहरे तमगे हैं और अब निगाहें पेरिस ओलंपिक पर हैं. जिस तरह उन्होंने अपने प्रदर्शन में हर बार लगातार सुधार किया, उससे उम्मीदें बढ़ी हैं.

पानीपत के एक गांव से जीवन की शुरुआत करने वाले नीरज ने कभी नहीं सोचा था कि वह दुनिया का नंबर एक भाला फेंकने वाला बनेगा. कभी कुर्ता-पायजामा पहने अस्सी किलो वजनी नीरज को मित्रमंडली सरपंच जी कहकर संबोधित करती थी. फिर फिटनेस की फिक्र हुई. तब पानीपत के स्टेडियम जाने का सिलसिला शुरू हुआ। पहले वॉलीबाल खेलना शुरू किया. 

 धीरे-धीरे देश के चोटी के खिलाड़ियों से सीखने को मिला और प्रतिस्पर्धा भी शुरू हई। अच्छी सुविधाएं मिलने लगीं. अच्छी गुणवत्ता वाला जैवलियन रास आने लगा। भाले की धार की मार दूर तक होने लगी। साल 2016 आते-आते पता चलने लगा कि भारत के एथलेक्टिस के आकाश में एक ध्रुव तारे का उदय होने वाला है.

हर जीत के बाद चोपड़ा महानता की तरफ़ बढ़ रहे हैं. नीरज चोपड़ा की एक और ख़ास बात ये है कि वो अपने किसी भी प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं होते हैं और बेहतर करने का प्रयास करते रहते हैं.


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