संसद के विशेष सत्र की घोषणा: केंद्र ने एक तीर से साधा कई निशाना ,वन नेशन वन इलेक्शन केअलावा भी है बड़ी वजह

संसद के विशेष सत्र की घोषणा: केंद्र ने एक तीर से साधा कई निशाना ,वन नेशन वन इलेक्शन केअलावा भी है बड़ी वजह

दिल्ली- संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की सूचना के बाद राजनीतिक कयासों का दौर जारी है.केंद्र सरकार ने संसद का यह विशेष सत्र पांच दिनों के लिये 18 से 22 सितंबर के बीच बुलाया है. वैसे तो कई बार विशेष सत्र बुलाए गए हैं लेकिन जब इस साल पांच राज्यों में विधानसभा और अगले साल कुछ राज्यों की विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव होने हैं, तो इस विशेष सत्र को लेकर संभावनाओं का बाजार गर्म है.सद के विशेष सत्र के ऐलान के साथ ही 'वन नेशन- वन इलेक्शन' की चर्चा तेज हो चुकी है। जबकि विपक्ष विशेष सत्र की घोषणा के समय और तरीके को लेकर सवाल खड़ा कर रहा है.

वहीं कयास है कि केंद्र सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ के एजेंडे पर आगे बढ़ सकती है,हालाकि विशेष सत्र के एजेंडे के बारे में अभी पुख्ता जानकारी नहीं हैं, लेकिन संसद के विशेष सत्र की घोषणा के बाद ‘एक देश एक चुनाव’ पर एक समिति बनाये जाने से इन चर्चाओं को बल मिला है.केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता का उद्देश्य धर्मों, रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को धर्म, जाति, पंथ, यौन अभिविन्यास और लिंग के बावजूद सभी के लिए एक समान कानून बनाने पर बात करती रही है. उम्मीद है कि स'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के साथ समान नागरिक संहिता और महिला आरक्षण बिल का प्रस्ताव भी सत्र के दौरान सदन के पटल पर लाया जा सकता है.

नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिये एक समिति गठित की है. संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहना है कि समिति इस मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार करेगी, उस पर बातचीत होगी, संसद में चर्चा होगी.

1967 तक देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, मौजूदा दौर में इस मुद्दे पर चर्चा तो होनी चाहिए.पहले  भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश, एक चुनाव के मुद्दे पर चर्चा करते रहे हैं. इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई थी. राष्ट्रपति रहते हुए भी रामनाथ कोविंद ने कहा था कि देश की ऊर्जा और धन की बचत के लिये एक साथ चुनाव होने चाहिए. बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास की प्रक्रिया बाधित होती है.

सवाल है कि क्या विपक्ष को विश्वास में लिये बिना राजग सरकार इतना बड़ा कदम उठा सकती है? क्या ये संविधान सम्मत है? क्या इस बड़े बदलाव के लिये संसद में राजग के पास जरूरी बहुमत है?  यह सत्र संसद को पुरानी इमारत से नई इमारत में शिफ्ट करने के इरादे से बुलाया जा रहा होगा. संभव है कि कोई अन्य महत्वपूर्ण बिल सरकार पारित करवाना चाहती होगी. दूसरी ओर विपक्षी नेता आरोप लगाते हैं कि सरकार यह कदम ऐसे समय में उठा रही है जब मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल समाप्ति की ओर है. राजग राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव परिदृश्य को लेकर चिंतित है. नया मुद्दा राजग को राजनीतिक रूप से लाभ देगा, पार्टी इस सोच के साथ आगे बढ़ रही है. कुछ लोग मानते हैं कि राज्यों में विधानसभा चुनावों को केंद्र आम चुनाव के साथ आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. वहीं विशेष सत्र में अमृतकाल के दौरान सार्थक चर्चा की बात राजग नेता करते हैं. कयास हैं कि इस दौरान जी-20 शिखर सम्मेलन की उपलब्धि को लेकर भी चर्चा हो सकती है और सरकार इस दौरान महिला आरक्षण बिल भी ला सकती है. बहुत संभव है सरकार घरेलू राजनीति को प्रभावित करने वाले मुद्दों को इस सत्र में ला सकती है. विपक्षी नेता कहते हैं कि मुंबई में चल रही विपक्षी गठबंधन की एकता बैठक की खबरों को प्रभावित करने के लिये विशेष सत्र का मुद्दा उछाला गया है. 

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