AURANGABAD : किसानों की समस्याओं को लेकर राज्य और केंद्र सरकार की ओर से कई तरह के दावे किये जाते हैं. उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात की जाती है. उन्हें बाज़ार उपलब्ध कराने के दावे किये जाते हैं. लेकिन उनकी समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही है. ऐसी ही स्थिति फिलहाल औरंगाबाद के किसानों की देखने को मिल रही है.
यहाँ किसान सात माह से कोरोना को लेकर घर मे दुबके रहने पर मजबूर थे. इसके बावजूद उन्होंने जिंदगी और मौत से जंग लड़ते हुये अपने खेतों में खरीफ फसल लगाया था और चार माह की कड़ी मेहनत के बाद आज खेतों में धान की बाली झूमने लगा है. फिर भी किसानों के चेहरे पर मायूसी देखी जा रही है.
जब इस बिंदु पर किसानों से बात किया गया तो उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत कर के धान का फसल तो जरूर हमलोगों ने जरुर तैयार कर लिया. लेकिन धान का खरीदार कहीं भी नहीं दिख रहा है. बिचौलिया तो आज धान का दर महज हजार रुपये किवंटल बता रहे हैं.
वही अगर बिहार सरकार की बात किया जाये तो किसानों के प्रति हर वक़्त उदासीनता देखी गई है. चाहे जिसकी भी सरकार रही है. लेकिन किसी ने भी किसानों की सुधि नही लिया है. जिसको लेकर आज किसान मायूस होते दिख रहे है. अब यह देखना लाजमी होगा कि क्या बिहार में आने वाली नई सरकार किसानों की सुधि ले पाती है या फिर किसान अपने दुर्दिन पर रोना रोते ही रहेंगे.
औरंगाबाद से दीनानाथ मौआर की रिपोर्ट