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सारण विकास मंच की ओर से बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव का हुआ आयोजन, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया उद्घाटन

सारण विकास मंच की ओर से बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव का हुआ आयोजन, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया उद्घाटन

CHAPRA : सारण विकास मंच द्वारा 23 अप्रैल, रविवार को छपरा के प्रेक्षा गृह सह आर्ट गैलरी में बाबू वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव मनाया गया। विजयोत्सव समारोह का उद्घाटन राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने किया। मुख्य अतिथि ने भोजपुरी में संबोधन से शुरुआत करते हुए हरिवंश ने कहा कि बाबू वीर कुंवर सिंह के कारण हमें अपने इतिहास पर फ़ख्र करने का दिन आज मिला है। उस शानदार इतिहास को याद करने का अवसर सारण विकास मंच ने कराया है। इतिहास में दर्ज है कि नौ महीनों में 15 भीषण युद्ध की अगुवाई 80 वर्ष में किया। जीवन मे कुछ करना चाहते हैं तो कुंवर सिंह से सीखिए। उनकी रणनीति और दूरदृष्टि अद्भुत थी। विजयोत्सव इसलिए मानते हैं कि स्वतंत्र आरा में अपने अधिकारी नियुक्त किया। वो अधिकारी किसी एक जाति या धर्म के नहीं थे। 

हरिवंश ने कहा कि बाबू कुंवर सिंह को एक कौम का नायक न बनाएं। कुंवर सिंह के साथ हर जाति के लोग थे। कुंवर सिंह जब गंगा पार कर रहे थे। तब अंग्रेजों ने सारी नावें हटा ली थीं। लेकिन कुंवर को पार करने नावों की भीड़ आ गई थी। उन्होंने कहा कि आज समाज में नैतिकता का अभाव है जो बाबू कुंवर सिंह की ताकत थी। अगर हमें अपने समाज में और भी कुंवर सिंह चाहिए तो हमें भी कुंवर सिंह जैसी नैतिकता का पालन करना होगा। सारण, भोजपुर, शाहाबाद की धरती नैतिकता की धरती है।हरिवंश ने कहा कि समाज को अलग हटकर यह सोच लानी होगी जिसमें कुंवर सिंह पर लिखी पुस्तकों की लाइब्रेरी बनाएं। ताकि कुंवर सिंह के बारे में आने वाली पीढ़ी जान सके। क्योंकि किताबें समाज को बनाती हैं। जब हम कमजोर होते हैं तो बल और ऊर्जा देती हैं। अतीत से प्रेरणा लेकर सुनहरे भविष्य का निर्माण हो सकता है। लेकिन रस्म अदायगी से बाहर निकलने की जरूरत है। 

इस दौरान सारण विकास मंच के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि 1857 की क्रांति के आइने में देखें तो कुंवर सिंह इकलौती हस्ती हैं जिनके संघर्ष का फलक व्यापक है। 1857 में कई रियासतों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया। लेकिन, एक या दो लड़ाई के बाद टूट गए। कुंवर सिंह लगातार नौ महीने तक चलते रहे। लड़ते रहे। यह लड़ाइयां उस जमीन पर लड़ी गईं जो उनकी अपनी नहीं थीं लेकिन नारा अपना था। ... और वह नारा था... जहां कुंवर सिंह, वही जगदीशपुर। उन्होंने जहां भी लड़ाई लड़ी, उस जमीन को अपना जगदीशपुर मान कर लड़ा। कुंवर सिंह के संघर्ष को समकालीन किसी दूसरे नायक का संपूर्ण साथ अंतिम दम तक नहीं मिला। मिला होता तो इतिहास कुछ और होता। शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि बाबू साहब हिन्दु-मुस्लिम भाईचारे के झंडाबरदार थे। उन्होंने मस्जिदें बनवाईं, पीर-फकीरों को दान दिया, जगदीशपुर में पठान टोला बसाया। ड्योढ़ी से ताजिया निकालने की परिपाटी शुरू की। 27 जुलाई 1857 को जब आरा में आजाद सरकार बनीं तो तुराब अली और खादिम अली शहर कोतवाल बने। गुलाम याहिया, शहर के मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए। बाद के दिनों में इन सबकों फांसी की सजा हुई। कुंवर सिंह की सरकार में सभी जातियों-ब्राह्मण, ग्वाला, माली, मुसलमान, कायस्थ, राजपूत आदि जाति के लोग थे।

उन्होंने कहा कि कुंवर सिंह ने आजीवन किसी के भरोसे का कत्ल नहीं किया, बल्कि कई मौकों पर लोगों ने उनके भरोसे की हत्या की। नायक वही होता है जो भरोसे पर खरा उतारता है। भरोसे से खेलता नहीं है। वैसे विडंबना ये है कि बाबू कुंवर सिंह हमारे उन नायकों में शामिल हैं, जो शुरू से ही उपेक्षित रहे। इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिली। उनके शौर्य को प्रेरणाश्रोत बनाने के प्रयास नहीं हुए। जबकि कुंवर सिंह का नायकत्व दूसरे कई योद्धाओं से कहीं अलग और महान था। कुंवर सिंह राजपूतों के नेता नहीं थे। उनके पक्ष में जो जन समर्थन था, उसकी एक खास बात यह है कि इसमें विभिन्न जातियों ने एकजुटता तो दिखाई ही थी, हिंदू-मुस्लिम एकता भी बिना द्वेष के कायम थी। अंग्रेजों की नीति थी फूट डालो और राज करो। कुंवर सिंह ने इसी नीति को भारतीय जनमानस से निकाल कर स्वतंत्रता का पहला आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि कुंवर सिंह का संघर्ष बताता है कि लड़ने, जीतने, सफल होने और जुल्म के प्रतिकार के लिए संसाधन नहीं आत्मबल होना चाहिए। वहीं वक़्ता मोहित सिंह ने कहा कि महापुरुषों की जाति नहीं होती। भारत अभी जिस स्थिति में खड़ा है, उसमें आगे भी वीर कुंवर सिंह की जरूरत है। हमारे समाज मे ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने ज्ञान, तप की पराकाष्ठा तोड़ दी।

छपरा से शशि सिंह की रिपोर्ट

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