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विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पहले विजय सिन्हा ने सीएम नीतीश को खूब सुनाया, अंतिम प्रहार से सब अवाक

विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पहले विजय सिन्हा ने सीएम नीतीश को खूब सुनाया, अंतिम प्रहार से सब अवाक

पटना. विधानसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने के पूर्व विजय कुमार सिन्हा ने सदन के पटल पर अपने अंतिम भाषण में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जमकर सुनाया. उन्होंने अपने पूरे भाषण में कई प्रकार से सीएम नीतीश को निशाने पर लेते हुए बताया कि कैसे अध्यक्ष पद की गरिमा का उन्होंने सम्मान बढ़ाया. वहीं दूसरी और किस तरह से सीएम नीतीश सहित उनके विधायकों ने अध्यक्ष की कुर्सी का सम्मान नही किया. अपने अंतिम संबोधन में उन्होंने सीएम नीतीश को यह भी याद दिलाया कि कैसे उन्होंने अध्यक्ष की कुर्सी पर ऊँगली दिखाई थी. 

उन्होंने कहा, लोकतंत्र में परिस्थितियाँ और समय दोनों परिवर्तनशील हैं। डॉ० राधाकृष्णन ने अपने एक लेख में लोकतंत्र के बारे में लिखा है कि "लोकतंत्र की व्यवस्था के अनुसार राजव्यवस्था में बहुमत या अल्पमत की निहित अधिकार का रक्षण नहीं होकर सभी के अधिकारों का संरक्षण होता है । लोकतंत्रीय व्यवस्था में यदि किसी भी अल्पमत को हतोत्साहित या चुप करने का बलात प्रयत्न दिखलायी दिया तो यह अनाचारी व्यवस्था बन जाती है ।" और हमेशा यह ध्यान में रहे कि अनाचारी व्यवस्था शासन तंत्र को अत्याचार, व्याभिचार तथा भ्रष्टाचार के पथ पर अग्रसर करता है, जिसका परिणाम बिहार के लोगों ने देखा है, जिसका इतिहास गवाह है ।

हम सभी मा० सदस्यों से आग्रह करेंगे कि आपकी भावनाओं के अनुरूप आसन की मर्यादा का ध्यान रखकर हम अवश्य निर्णय लेते लेकिन मुझे अफसोस है कि ऐसा करने का मुझे अवसर ही नहीं दिया गया। सरकार का नौ अगस्त को इस्तीफा देना और 10 अगस्त को नई सरकार गठन का प्रस्ताव देना- लोकतंत्र में बहुमत के हिसाब से ये परंपरा नैतिकता को छोड़कर सिद्धांतविहीन राजनीति की खूबसूरती को दर्शाता है । 

नई सरकार के गठनोपरांत मैं स्वतः अपने पद का परित्याग कर देता, लेकिन इसी बीच प्रेस मीडिया और अखबारों से मालूम हुआ कि 09 अगस्त को लोगों ने मेरे खिलाफ सचिव को अविश्वास प्रस्ताव की सूचना भेजी है उस दिन सार्वजनिक अवकाश था । पुनः 10 अगस्त को सरकार गठन के पूर्व ही लोगों ने अविश्वास प्रस्ताव सचिवीय कार्यालय में जाकर दिया । इस परिस्थिति में उनके अविश्वास के आरोप का सही जवाब देना हमारी नैतिक जिम्मेवारी बन गयी क्योंकि यदि हम इस्तीफा दे देते तो उनके आरोप का जवाब उन्हें नहीं मिल पाता ।


मा० सदस्यगण, आप सभी बिहार में लोकतंत्र के इस सबसे बड़ी संस्था, सबसे बड़े मंदिर के पुजारी हैं। मैं आप सभी को यह बताना चाहता हूँ कि आपने जो अविश्वास प्रस्ताव लाया है, वह अस्पष्ट है। नौ मा० सदस्यों का पत्र मिला, जिसमें से 8 लोगों का प्रस्ताव नियमानुकूल नहीं है एक मा० सदस्य श्री ललित यादव जी द्वारा दिया गया है, जो अब मा० मंत्री हैं, जिसमें यह वर्णित है कि आप विश्वासमत खो चुके हैं, यह मुझे सही लगा। लेकिन मुझ पर अन्य आरोप जो कुछ मा० सदस्यों द्वारा लगाया गया है। मनमानी करने का, कार्यशैली और व्यवहार अलोकतांत्रिक रखने और तानाशाही का, मा० सदस्य श्री चंद्रशेखर जी जो अब मा० शिक्षा मंत्री हैं, ने कहा है कि मुझसे गौरवशाली परंपरा शर्मसार हुई है ।

माननीय सदस्यगण, 20 माह के बहुत छोटे से मेरे कार्यकाल में सदन में शत-प्रतिशत प्रश्नों के उत्तर आना, कुछेक दिन छोड़कर लगभग शत-प्रतिशत सदन का चलना, पक्ष और प्रतिपक्ष में भेद नहीं करना, दोनों पक्षों से सदन चलाने में सकारात्मक सहयोग मिलना, मा० सदस्यों को पूरक प्रश्नों का अवसर ज्यादा देना, शून्यकाल की संख्या बढ़ाना, सदन को डिजिटल प्लेटफार्म से जोड़ना, सदन की कार्यवाहियों को Youtube से Live करना, उसे सुदूर गाँवों तक पहुँचाना, मा० सदस्यों तथा उनके पी.ए. को डिजीटल वातावरण से जोड़कर उसका लाभ पहुँचाने का कार्य करना, मा० सदस्यों के मान-सम्मान के लिए अभ्यावेदन एवं प्रोटोकॉल समिति का गठन करना, विभागों के द्वारा गलत उत्तर आने पर संबंधित विभागों से स्पष्टीकरण लेना, क्या ये तानाशाही प्रवृत्ति थी ? क्या यह अलोकतांत्रिक क्रिया थी ? क्या यह सदन की मर्यादा और गरिमा को तार-तार करना था ? क्या यह अध्यक्ष की हैसियत से अलोकतांत्रिक और स्थापित परम्पराओं के विरूद्ध था ?

बिहार विधान सभा भवन शताब्दी वर्ष समारोह में मा० मुख्यमंत्री की उपस्थिति में तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा सामाजिक नैतिक संकल्प अभियान की शुरूआत करना, विधान सभा परिसर में शताब्दी स्मृति स्तंभ की आधारशिला रखना, बोधिवृक्ष के शिशु पौधे का रोपण, सत्रहवीं विधान सभा के मा० सदस्यों को लोकसभा के मा० अध्यक्ष आदरणीय श्री ओम बिरला जी का मार्गदर्शन मिलना, देश की आजादी के बाद पहली बार देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का विधान सभा परिसर में आना और लोक सभा तथा इसके सेंट्रल हॉल में लगे बिहार के प्रतीक चिन्ह को दर्शाते हुए ऐतिहासिक शताब्दी स्मृति स्तंभ का लोकार्पण कराना, बिहार विधान सभा के सौ वर्षों के सफरनामा से संबंधित विधान सभा संग्रहालय का शिलान्यास तथा विधान सभा के अतिथियों के लिए अत्याधुनिक गेस्ट हाउस का शिलान्यास प्रधानमंत्री जी से कराना, शताब्दी औषधीय उद्यान में उनके कर कमलों से कल्पतरू पौधे का रोपण कर एक सकारात्मक उर्जा संचार के लिए रचनात्मक वातावरण बनाना, इन सब कार्यों से सदन की गरिमा और विधायिका इन सब कार्यों से सदन की गरिमा और विधायिका की प्रतिष्ठा घटी है या बढ़ी है ? मैं इन सब कार्यों का मूल्यांकन की जिम्मेवारी बिहार की जनता पर छोड़ता हूँ इस सदन में संविधान के ज्ञाता के व्यवहार को बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश ने देखा है और इतिहास बहुत बड़ा समालोचक है, वही इसका निर्णय करेगा । जनता ही लोकतंत्र में मालिक है, अंतिम निर्णय उसी का होता है ।


• माननीय मुख्यमंत्री जी आसन के प्रति जो आपका सम्मान था वह सबको दिखा आपके द्वारा चलते सदन में जिस तरह से आसन की गरिमा को तार-तार किया गया, वह पूरा देश देखा है । उत्कृष्ट विधायक और उत्कृष्ट विधान सभा पर जब हमने बहस कराने का प्रस्ताव रखा तो इसमें आपही के विधायकों द्वारा बहिष्कार कर बिहारवासियों के सम्मान को तार-तार किया गया है।

हमने लोभ और भय से मुक्त होकर इस आसन की मर्यादा और गरिमा के अनुरूप सभी को सम्मान दिया और अपने दायित्वों का निष्पक्ष निर्वहन कर सदन की प्रतिष्ठा बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । विधायिका की गरिमा बढ़े, उसका सम्मान बढ़े, प्रशासनिक अराजकता पर अंकुश लगे, सरकार की नीति, घोषणा, कार्यक्रमों और खासकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति, न्याय के साथ विकास, न बचाते हैं और न फंसाते हैं, के सिद्धांतों को इस सदन के माध्यम से भी लागू कराने का ईमानदारी से प्रयास किया । इसमें कुछ लोगों की परेशानी बढ़ी, जिसकी चिंता हमने कभी नहीं की ।

मैं सदन को यह अवगत कराना चाहता हूँ कि आज मेरे उपर कोई भी मुकदमा या आपराधिक मामला नहीं है और कई ऐसे मा० सदस्य सदन में बैंठे हैं जो इसी तरह के स्वच्छ छवि के हैं, लेकिन उनकी छवि को बचाने की जिम्मेवारी हम सबों की है। दुर्भाग्य से जो आरोपित और कलंकित हैं, वह स्वच्छ छवि को भी कलंकित करने का प्रयास करते हैं। यह उनके नजरियें में स्वभावत: शामिल रहता है । आज डिजिटल युग । बदलते समय में लोग सबके बारे में आसानी से जान लेते हैं । छोटे हृदय से बड़ा सपना पूरा नहीं होता और बिना विकारों से मुक्त हुये सामाजिक सद्भाव और भ्रष्टाचार मुक्त विकास कभी नहीं हो सकता है. हमारी कथनी-करनी में जबतक अंतर रहेगा, तबतक लोगों का विश्वास और उनकी श्रद्धा के पात्र हम नहीं बन सकते हैं ।

माननीय सदस्यगण, इस भवन के और विधान सभा के सौ साल पूरे हो चुके हैं। अबतक कितने लोग इस मंदिर के पुजारी बन कर आये और विदा हो गये। लोग आये गये, यह सिलसिला समय के साथ जारी है और आगे भी रहेगा, लेकिन इस सदन की मर्यादा और गरिमा को अक्षुण्ण रखने में जिन्होंने अपने महती भूमिका निभायी है, इतिहास ने उन्हें बड़े आदर से स्थान दिया है। हमें यह बात याद रखनी होगी कि यह सदन हमसे जरूर है, लेकिन यह सदन हम सबसे सर्वोपरि है और आसन तो पंच परमेश्वर जैसा है । आप सबों ने आसन पर अविश्वास जताकर क्या संदेश देना चाहा है, यह जनता तय करेगी । हमें इसकी गरिमा को बढ़ाना है और यही काम मैंने अपने छोटे से कार्यकाल में किया है अंत में मैं कहना चाहूँगा कि अपने 20 माह के संक्षिप्त कार्यकाल में हम संपूर्ण सदन का चालक बन कर इसे और ऊँचाई पर ले जाने पर लगे रहे, कभी चालाक बनने का प्रयास नहीं किये। अपने जिम्मेदारियों को स्थापित नियमों और परंपराओं के तहत निष्पक्ष हो बिना राग-द्वेष और लोभ-लालच-मोह के निभाया । 

और यही आग्रह आप सबसे है कि लोकतंत्र में जनता के द्वारा दिये गये अधिकार का आप भी सही दिशा में उपयोग कर उनका विश्वास जीतें तथा लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करें और मैं आपकी भावनाओं के अनुकूल अपनी बात को समाप्त करते हुए, ..इसलिए हमने कहा था कि सदन की बात सदन में होगी. बाद में उन्होंने इस्तीफा देने की घोषणा की. 



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