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भारत रत्न : 'हिंदुस्तान भिखारियों का मुल्क’ कहने पर भड़की थी इंदिरा गांधी, एमएस स्वामीनाथन को दी जिम्मेदारी और भारत बना 'भीख के कटोरे' से 'रोटी की टोकरी'

भारत रत्न : 'हिंदुस्तान भिखारियों का मुल्क’ कहने पर भड़की थी इंदिरा गांधी, एमएस स्वामीनाथन को दी जिम्मेदारी और भारत बना 'भीख के कटोरे' से 'रोटी की टोकरी'

DESK. अपने सख्‍त फैसलों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जानी गई. इसमें एक ऐसा फैसला भी रहा जिसने भारत में हरित क्रांति को नई दिशा दी. इसके नायक बने एमएस स्वामीनाथन जिन्हें अब भारत रत्न देने की घोषणा की गई है. दरअसल, आजादी के बाद भारत में भीषण अकाल और भुखमरी एक बड़ी समस्या थी. बात 1966 की है। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब जनवरी 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो उस वक्त देश में खाद्यान्न का भारी संकट था। तब इंदिरा ने खाद्यान्न की मांग के लिए मार्च 1966 में अमेरिका का दौरा किया था। उस वक्त लिंडन बी जॉनसन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। 1965 और 1966 में भारत ने अमेरिका से पब्लिक लोन स्कीम के तहत डेढ़ करोड़ टन गेहूं का आयात किया. इसे PL480 के नाम से जाना जाता है. इस अनाज से करीब 4 करोड हिंदुस्तानियों की भूख मिटाई जा सकी. अमेरिका के कृषि विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत का मजाक उड़ाते हुए लिखा, 'हिंदुस्तान भिखारियों और निराश्रितों का मुल्क है.' भारत के इस अपमान से आहत इंदिरा गांधी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने स्वामीनाथन को देश में हरित क्रांति की पहल की बड़ी जिम्मेदारी दी. स्वामीनाथन ने अपनी दूरदर्शी सोच से कृषि प्रौद्योगिकी में भारत के स्वर्ण युग की शुरुआत की - देश को 'भीख के कटोरे' से 'रोटी की टोकरी' में बदल दिया।

भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ एमएस स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की. वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने भारत में कृषि में बड़े बदलाव को साकार करने में सबसे अहम भूमिका निभाई. कृषि प्रधान भारत में खाद्यान उत्पादन बढ़ाने के लिए की गई उनकी पहल के नतीजे आज सबके सामने हैं जब देश खाद्यान में आत्मनिर्भर है. मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन या एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था. तमिलनाडु के कुंबकोणम में जन्मे स्वामीनाथन ने भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाई. पिछले साल 28 सितंबर को उनका 98 साल की उम्र में निधन हुआ था.

पीएम मोदी ने अमूल्य काम को सराहा : प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा करते हुए लिखा, यह बेहद खुशी की बात है कि भारत सरकार कृषि और किसानों के कल्याण में हमारे देश में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी को भारत रत्न से सम्मानित कर रही है। उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रयास किए। हम एक अन्वेषक और संरक्षक के रूप में और कई छात्रों के बीच सीखने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने वाले उनके अमूल्य काम को भी पहचानते हैं। डॉ. स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व ने न केवल भारतीय कृषि को बदल दिया है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि भी सुनिश्चित की है। वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मैं करीब से जानता था और मैं हमेशा उनकी अंतर्दृष्टि और इनपुट को महत्व देता था।

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की : एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिये व्यापक रूप से पहचाना गया, जो भारतीय कृषि में एक परिवर्तनकारी चरण था जिसने फसल उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की और राष्ट्र के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। अधिक उपज वाली गेहूँ और चावल की किस्मों, विशेष रूप से अर्ध-वामन गेहूँ की किस्मों को विकसित करने में स्वामीनाथन के अभूतपूर्व कार्य ने 1960 एवं 70 के दशक के दौरान भारत में कृषि में क्रांति ला दी। इस परिवर्तन से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया और अकाल का खतरा टल गया।  

'स्वामीनाथन रिपोर्ट': स्वामीनाथन ने किसानों के कल्याण हेतु कृषि उपज के लिये उचित मूल्य और धारणीय कृषि पद्धतियों पर ज़ोर दिया। 'स्वामीनाथन रिपोर्ट' कृषि क्षेत्र में संकट के कारणों का आकलन प्रस्तुत करती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) इस रिपोर्ट की सिफारिशों में से एक है, इसके अनुसार MSP औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिये, यह आज भी पूरे भारत में कृषि संघों की प्राथमिक मांग है। MSP वह कीमत है जिस पर सरकार सीधे किसानों से फसल खरीदती है। उन्हें पद्म श्री (1967), पद्म भूषण (1972) और पद्म विभूषण (1989) से भी सम्मानित किया गया है। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार (1986) सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले. अब भारत रत्न दिया गया है.


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