नीतीश के ‘नाक की बात’ बन चुके शराबबंदी कानून से कितना बदला बिहार, चार लाख लोगों की गिरफ्तारियों से कितना हुआ समाज सुधार

पटना. शराबबंदी कानून मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाक की बात बन चुका है. अप्रैल 2016 से राज्य में शराबबंदी लागू है. पिछले पांच साल से हर साल शराबबंदी कानून को सफल बनाने के लिए सबसे ज्यादा जन जागरूकता कार्यक्रम चलाये गए हैं. वहीं बिहार पुलिस, मद्य निषेध विभाग आदि विभागों की ओर से शराबबंदी को सफल बनाने के लिए लगातार छापेमारी की जा रही है. यहाँ तक कि पिछले महीने से शुरू हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाज सुधार अभियान के दौरान भी वे सबसे ज्यादा शराबबंदी पर बोलते नजर आए हैं. 

हालांकि शराबबंदी की दिशा में इतना ज्यादा प्रयास होने के बाद भी एक स्याह सच यह भी है कि बिहार में सबसे ज्यादा शराब जनित अपराध के मामले उजागर हो रहे हैं. कहा जाए तो शराबबंदी कानून ने एक नए अपराध का रास्ता भी खोल दिया है जिसमें शराब तस्करी, चोरी छिपे शराब पीना आदि शामिल है. बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून अप्रैल 2016 से लागू है और तब से अब तक राज्य में शराबबंदी कानून के उल्लंघन के आरोप में तीन लाख 48 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. इन मामलों में चार लाख से ज्यादा की गिरफ्तारियां हुई हैं. जब्त की गई शराब की बात करें तो पिछले पांच साल में करीब एक करोड़ 93 लाख 75 हजार लीटर से ज्यादा देसी और विदेशी शराब की जब्ती हुई है. वहीं 2016 से नवंबर 2021 तक शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने के मामलों में साढ़े 61 हजार वाहन जब्त किए गए. 

पिछले वर्ष ही जब सितम्बर-अक्टूबर 2021 में राज्य में शराब जनित कई हादसे उजागर हुए तो नीतीश कुमार ने कड़क आईएएस ऑफिसर के के पाठक के हाथों में मद्य निषेध विभाग की कमान सौंपी. 1990 बैच के आईएएस ऑफिसर के के पाठक को 17 नवम्बर को कमान सौंपी गई और उन्होंने आते ही एक्शन दिखाया. लोगों को शराब सम्बंधी शिकायत दर्ज कराने के लिए अपना मोबाइल नम्बर जारी कर दिया. के के पाठक के कमान संभालने के बाद पिछले एक महीने में करीब छह हजार शिकायतें मिली हैं. इसमें सबसे ज्यादा 590 लोगों ने गया जिले में शिकायत दर्ज कराई. वहीं पटना जिले में 580 शिकायतें दर्ज हुई. 


हालाँकि इतनी सख्ती के बाद में बिहार में शराब का सेवन करने वालों की एक बड़ी संख्या है. नवम्बर 2021 में तो जहरीली शराब से 41 लोगों की मौत हुई थी. वहीं माना जाता है कि राज्य में पिछले साल 70 से ज्यादा लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई. यह शराब तस्करों पर लगाम कसने की सरकार और प्रशासन की कोशिशों पर भी सवाल उठाता है. 

दरअसल इन आंकड़ों पर गौर करना इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि शराबबंदी कानून की सफलता को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं. पिछले महीने ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा था कि शराब के मामलों में गरीब लोग पिस रहे हैं. सबसे ज्यादा गरीब लोग इस कानून के उल्लंघन में पिस रहे हैं. इसी तरह बिहार के नेता प्रतिपक्ष भी परोक्ष रूप से जीतन राम मांझी की बातों का समर्थन कर चुके हैं. हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भी नीतीश कुमार के शराबबंदी कानून को अदूरदर्शी निर्णय कह दिया था. 

वहीं उपर्युक्त आंकडें भी कहते हैं बिहार में शराबबंदी कानून के बाद से पुलिस के सामने नई चुनौतियाँ आई हैं. विशेषकर अब तक हुई 4 लाख लोगों की गिरफ्तारी और 1 करोड़ 93 लाख लीटर शराब की जब्ती यह दर्शाता है कि राज्य का एक बड़ा वर्ग इस कानून को चुनौती देते हुए नए अपराध में लिप्त हो रहा है. यही नहीं नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट ने 2020 में कहा था कि बिहार में शराबबंदी कानून के बाद भी राज्य के 15 प्रतिशत लोग शराब पी रहे हैं. इसमें राज्य के  शहरी इलाकों में 14 और ग्रामीण इलाकों में 15 फीसदी लोग शराब का सेवन कर रहे हैं. इतना ही नहीं हालिया रिपोर्टों में कहा गया है कि बिहार में 2016 के बाद से अन्य प्रकार के मादक पदार्थ जैसे गांजा, अफीम और चरस आदि  का सेवन करने वालों की संख्या अप्रत्याशित तरीके से बढ़ी है.