न्यूज4नेशन डेस्क- बिहार की सियासत में बाहुबलियों की दास्तान पुरानी है. बाहुबल के जरिए सत्ता के गलियारे तक पहुंचने का किस्सा किसी से छिपा नहीं है. बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं की पैठ शुरुआती दौर में ही हो गई, लेकिन 80 के दशक से वह परवान चढऩे लगी.
अपने बाहुबल और इलाके में दहशत की वजह से कई बाहुबली विधानसभा से लेकर लोकसभा तक पहुंच गए. अदालत ने इंसाफ किया तो पत्नी और बच्चों को विरासत सौंप दी. इस बार भी लोकसभा के चुनाव में ऐसे कई चेहरे हैं तो या तो खुद या फिर अपनी पत्नी या बच्चों के जरिए सिसासी हनक को कायम रखने में जुटे हैं.इस बार डॉ. सुरेंद्र यादव जहानाबाद से राजद के प्रत्याशी हैं. वे अभी विधायक हैं। उनका इतिहास बताने की जरूरत नहीं। तिहाड़ जेल में बंद पूर्व सांसद शहाबुद्दीन ने पत्नी हिना शहाब को सीवान से चुनावी मैदान में उतारा है.
शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को टक्कर देने के लिए जदयू भी बाहुबलियों पर भरोसा करने में पीछे नहीं हटी है. जदयू ने भी बाहुबली अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह को सीवान से हिना शहाब के मुकाबले खड़ा किया है. कविता सिंह जदयू की विधायक भी हैं.
महाराजगंज में भी यही हाल है. महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह हाजरीबाग जेल में हैं लेकिन उनकी विरासत संभलाने के लिए उन्होंने अपने बेटे रणधीर को महाराजगंज से चुनावी समर में उतारा है.नवादा में भी इस बार सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह को चुनावी समर में उतारा गया है. सूरजभान सिंह के बैकग्राउंड को कौन नहीं जानता. सूरजभान सिंह लोजपा के नेता भी हैं. वहीं मुंगेर से अनंत सिंह की पत्नी भी चुनावी मैदान में हैं. खैर देखना है कि इस बार बदलत दौर में बाहुबलियों वाला ट्रेंड कितना कारगर साबित होता है.