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महावीर मन्दिर की पत्रिका ‘धर्मायण’ के ‘शक्ति-विमर्श विशेषांकʼ का हुआ डिजिटल लोकार्पण

महावीर मन्दिर की पत्रिका ‘धर्मायण’ के ‘शक्ति-विमर्श विशेषांकʼ का हुआ डिजिटल लोकार्पण

धर्मायण अंक संख्या 106, (वैशाख 2078 वि.सं., 28 अप्रैल से 26 मई, 2021ई.), शक्ति-विमर्श विशेषांक

PATNA : वैशाख मास जगज्जननी जानकी का आविर्भाव का मास है। वैशाख शुक्ल नवमी के दिन यह जन्मोत्सव मनाया जाता है। यह अंक श्रीराम की शक्ति माता सीता को समर्पित करते हुए शक्ति-विमर्श विशेषांक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वर्तमान कोविड-19 की दूसरी भयंकर लहर को देखते हुए इसका डिजिटल प्रकाशन किया जा रहा है। स्थिति सामान्य होने पर सभी अंकों का प्रकाशन किया जायेगा। तत्कल इसे https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/dharmayan-vol-106-shakti-vimarsha-ank/ पर निःशुल्क पढ़ा जा सकता है तथा डाउनलोड कर वितरित भी किया जा सकता है। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों के लेखकों ने अपने आलेख दिये हैं। इस प्रकार यह पत्रिका राष्ट्रीय-स्तर की हो गयी है।

इस अंक का केन्द्रीय विषय है कि शक्ति-उपासना के स्तर पर काश्मीर से कन्याकुमारी तक की परम्परा और दर्शन में एकता का भाव है जो अखंड भारत की अखंड सनातन-परम्परा का संकेत करता है। इस अंक में माता सीता एवं श्रीराम के समन्वय पर श्री महेश प्रसाद, श्री राजीव नन्दन मिश्र ‘नन्हेंʼ के आलेख हैं। आचार्य सीताराम चतुर्वेदी लिखित अद्भुत रामायण की रामकथा में भी सीता-तत्त्व पर विशेष विमर्श हुआ है। साथ ही, पर्यटन-सूचना के विशिष्ट लेखक श्री रवि संगम ने जनकपुर-परिक्रमा पर विस्तार से विवेचन किया है। दक्षिण भारत के 18वीं शती के कवि वेंकट की कृति ‘सुन्दरेश्वरजाये’ का विवेचन करते हुए श्री रवि ओझा ने दिखाया है कि इनकी रचना में उत्तर एवं दक्षिण भारत की एकता पर विशेष बल दिया गया है। बंगलूरु के लेखक श्री जगन्नाथ करंजे ने दक्षिण भारत की वीरशैव परम्परा में शिव और शक्ति के स्वरूप पर विवेचन किया है। 

पटना के डा. सुदर्शन शाण्डिल्य ने भगवती-तत्व पर दार्शनिक तथा व्यावहारिक आलेख लिखा है। दिल्ली के शंकर शिक्षायतन में दार्शनिक के रूप में सेवा देने वाले डा. लक्ष्मीकान्त विमल का आलेख दुर्गा-सप्तशती में शक्ति का दार्शनिक स्वरूप प्रकाशित किया गया है। धर्मायण के पूर्व अंक में श्रीरामपट्टाभिषेक का प्रथम बार सम्पादित पाठ प्रकाशित हुआ था। दक्षिण भारत की अभिषेक विधि का विवेचन करते हुए पं. मार्कण्डेय शारदेय ने यह सिद्ध किया है कि कर्मकाण्ड के स्तर पर भी आर्य एवं द्राविड़ संस्कृति में अद्भुत एकता है। दोनों परम्पराएँ अपने मूल रूप में एक ही है। अब हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि हमारा सनातन धर्म आसेतु-हिमालय एक है। इसके अतिरिक्त शक्ति-विमर्श पर धर्मायण में पूर्वप्रकाशित 3 आलेख पुनः संकलित किये गये हैं। महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज लिखित ‘महाशक्ति श्री श्री माँ’,  कुमारी ममता का आलेख शक्तिपूजा: मातृशक्ति का भावात्मक आधार तथा डा. भुवनेश्वर प्रसाद गुरुमैताजी का आलेख “भारतीय साहित्य में शक्ति की अभिव्यंजना।” डा. गुरुमैताजी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का प्रकाशन भी वेबसाइट पर किया गया है।

वैशाख मास में महत्त्वपूर्ण तिथि अक्षय तृतीया होती है, जो भगवान् परशुराम का आविर्भाव दिवस है। इस उपलक्ष्य में ‘धर्मायण’ के प्रस्तुत अंक में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के पिता गोपालचन्द्र, जो गिरिधर दास के नाम से लिखते थे, की कृति ‘परशुरामकथामृतʼ का सम्पादन किया है तथा लल्लू लाल द्वारा रचित ‘प्रेमसागरʼ से भी भगवान् परशुराम की कथा संकलित है। पत्रिका के स्थायी-स्तम्भों में महावीर मन्दिर के द्वारा इस कोरोना-संकट में किये गये लोकोपकारी कार्यों का विवरण दिया गया है। श्री सुलभ अग्निहोत्री की पुस्तक पूर्वपीठिका की समीक्षा श्री आनन्दक कुमार ने की है। साथ ही वैशाख मास के व्रत-पर्वों का विवरण भी प्रकाशत किया गया है।



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