DESK: रामविलास पासवान के निधन के बाद से लोजपा दो भाग में बंट गई है। कोरोनाकाल में चिराग पासवान जब गायब थे, तब उनके चाचा पशुपति पारस ने बड़ी चाल चलते हुए एक तरीके से पार्टी पर अपना कब्जा कर लिया और चिराग को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद चिराग ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए जनता से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक गुहार लगा दी। इसी बीच चुनाव आयोग में भी यह सियासी लड़ाई लंबित है। इसी बीच चुनाव आयोग के विश्वस्त सूत्रों की ओर से एक बड़ी खबर आ रही है, जिससे लोजपा के बंगले को मालिक मिल सकता है।
चुनाव आयोग के सूत्रों से बड़ी खबर यह है कि लोजपा अब भी चिराग पासवान की है। ऐसा तब है जबसांसद पशुपति पारस की तरफ से अपने आप को लोकसभा में संसदीय दल का नेता घोषित कर दिया है। यही नहीं पारस ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन कर खुद को अध्यक्षभी घोषित किया हुआ है। बावजूद इसके चुनाव आयोग से जो खबर सामने आ रही है उसके अनुसार आज की तारीख में एलजेपी अब भी चिराग पासवान की ही है। चुनाव आयोग के सूत्रों ने जो जानकारीदी है उसके अनुसार अभी तक पारस गुट की तरफ से लोक जनशक्ति पार्टी पर या फिर लोजपाके चुनाव चिन्ह बंगले पर कोई दावा नहीं किया गया है। ऐसे में चुनाव आयोग लोजपा पर किसी दूसरे गुट की तरफ से बिना दावा किए ही कैसे उसका अधिकार मान सकता है। हालांकि पारस गुट की तरफ से किये गए फैसलों की जानकारी जरूर चुनाव आयोग को दी गई है, लेकिन ये जानकारी किसी पार्टी पर अधिकार या दावे पर सुनवाई के लिये काफी नहीं है।
पशुपति पारस गुट की तरफ से किए गए तमाम फैसलों की जानकारी तो चुनाव को जरूर दी गई, लेकिन अब तक कोई भी प्रतिनिधिमंडल पारस गुट की तरफ से चुनाव आयोग से न तो मिला है और न ही पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी पर दावे को लेकर चुनाव आयोग से सुनवाई की मांग की गई है। दूसरी तरफ एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान चुनाव आयोग से पहले ही मिल चुके हैं औरआयोग से गुहार भी लगा चुके हैं कि अगर किसी की तरफ से एलजेपी पर दावा किया जाता है तो उसे प्रथम दृष्टया खारिज किया जाए। अगर चुनाव को कोई फैसला भी करना है तो पहले चिराग पासवान का पक्ष सुना जाए। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है औऱ बंगला किसके नाम होता है।