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ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर ब्लैक होल की नई दृष्टि, ‘ब्लैक होल’ के रहस्यों से उठेगा परदा, जल्‍द सुलझ सकते हैं कई रहस्‍य

ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर ब्लैक होल की नई दृष्टि, ‘ब्लैक होल’ के रहस्यों से उठेगा परदा, जल्‍द सुलझ सकते हैं कई रहस्‍य

वाशिंगटन डीसी -भारतीय वेद-पुराणों में ब्रह्मांड के उत्पत्ति की अवधारणा इस चर्चा के साथ शुरू होती है कि सृष्टि के आरंभ में शून्य के सिवा कुछ नहीं था। शून्य में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ था और उसी से विस्तारित होकर सूरज, चांद, तारे और यह धरती बनी, जिस पर आज जीवन मौजूद है। आधुनिक विज्ञान इस धारणा को महाविस्फोट यानी बिगबैंग कहकर संबोधित करता है। हालांकि बिगबैंग से जुड़े कई रहस्य अभी खुलना बाकी है कि महाविस्फोट के बाद यह ब्रह्मांड लगातार क्यों फैल रहा है। लेकिन बिगबैंग अकेला रहस्य नहीं है, ब्लैक होल और डार्क मैटर जैसी गुत्थियों से भी विज्ञान जगत लगातार जूझ रहा है। 

वैज्ञानिकों का मानना रहा है कि हमारी गैलेक्सी में लगभग 10 करोड़ से ज्यादा ब्लैक होल हैं जो अंतरिक्ष में तैर रहे हैं। इनके आस-पास कोई सितारे नहीं होते हैं और ये दिखाई नहीं देते। अभी तक वैज्ञानिकों को ऐसा कोई भी आइसोलेटेड ब्लैक होल नहीं मिला था। लेकिन अब नासा ने एक आइसोलेटेड ब्लैक होल खोज निकाला है। नासा ने बताया कि छह साल तक हबल स्पेस टेलीस्कोप के डेटा के जरिए इंटरस्टेलर स्पेस के माध्यम से बहने वाले अकेले ब्लैक होल का पता लगा है। ये ब्लैक गैलेक्सी में घूम रहा है। 

हम जिस सौरमंडल में रहते हैं, उसके तारे यानी सूर्य के भी अरबों वर्ष बाद एक ब्लैक होल में बदल जाने की कल्पना की गई है। मोटे तौर पर ब्लैक होल के बारे में वैज्ञानिक अवधारणा यह है कि ये अंतरिक्ष में मौजूद ऐसी जगहें हैं, जिनमें जाने के बाद कोई चीज बाहर नहीं आती और उस ब्लैक होल के द्रव्यमान में शामिल हो जाती हैं। यहां तक कि प्रकाश की किरणें भी।यही नहीं, ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण भी इतना अधिक होता है कि वह अपने आसपास की सभी चीजों को अपनी ओर खींचता और अवशोषित करता रहता है। ब्लैक होल हमारे ब्रह्मांड के सृजन और तारों के विनाश के नजरिए से क्यों महत्त्वपूर्ण हैं- इन सवालों पर हो सकता है कि इसरो के नए अभियान से मिली जानकारियां नई रोशनी डालें। माना जाता है कि इस ब्रह्मांड की सभी मंदाकिनियों (गैलेक्सी) के केंद्र में ब्लैक होल हैं। ये असल में वे तारे हैं जो मरने यानी खत्म होने की प्रक्रिया में है। अरबों वर्ष बाद हमारा अपना सूर्य भी अपनी सारी ऊर्जा झोंककर पहले तो श्वेत वामन (वाइट ड्वार्फ) तारे में तब्दील होगा और उसके बाद ब्लैक होल में बदल जाएगा। तब यह सौरमंडल के सारे ग्रहों को अपनी ओर खींचेगा और उन्हें हड़प कर लेगा।

खगोलीय सिद्धांतों के मुताबिक ब्लैक होल अंतरिक्ष की वे जगहें हैं. जहां भौतिकी के नियम काम नहीं करते। इनका गुरुत्वाकर्षण बहुत ज्यादा और ताकतवर होता है। इसके खिंचाव से आसपास की कोई चीज बच नहीं सकती। आइंस्टीन के शब्दों में, ‘ब्लैक होल का शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण उसके आसपास के स्पेस को उसमें लपेट देता है और उसे ‘कर्व’ जैसा आकार दे देता है। असल में जब कोई विशाल तारा अपने अंत की ओर पहुंचता है तो वह अपने ही भीतर सिमटने लगता है। धीरे-धीरे वह ब्लैक होल में तब्दील होकर सब कुछ अपने में समेटने लगता है। अपनी खोज में स्टीफन हाकिंग ने कहा था कि ‘हाकिंग रेडिएशन’ (विकिरण की एक प्रक्रिया) के कारण एक स्थिति ऐसी भी आती है, जब ब्लैक होल पूरी तरह द्रव्यमान से मुक्त होकर ब्रह्मांड से गायब हो जाता है।इस मोड़ पर क्या होता है, हमारा विज्ञान अभी इस रहस्य को बूझ नहीं पाया है। कोई नहीं जानता कि ‘ब्लैक होल’ जब गायब होते हैं तो क्या वे किसी दूसरे ब्रह्मांड में पहुंच जाते हैं या बिल्कुल नए रूप में हमारे सामने होते हैं। हमारे सूरज से 650 करोड़ ज्यादा द्रव्यमान वाले और पृथ्वी से साढ़े पांच करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित जिस ब्लैक होल की एक तस्वीर पहली बार वर्ष 2019 में वैज्ञानिकों ने साझा की थी, उसके बारे में यही सवाल मुख्य तौर पर उठा था कि आखिर इतना बड़ा पिंड अचानक गायब होकर कहां जा सकता है।

यों ब्रह्मांड के जन्म के लिए जिस ‘बिगबैंग’ यानी महाविस्फोट की अवधारणा विज्ञान देता रहा है, उसके अपने रहस्य कम नहीं हैं, पर तारों के मरने की प्रक्रिया उससे भी ज्यादा दिलचस्प और रहस्यमय है। खगोल विज्ञानी बताते हैं कि सूर्य से कई गुना द्रव्यमान वाले बड़े तारों का अंत उनमें हुए प्रचंड विस्फोट यानी सुपरनोवा से शुरू होता है। इस विस्फोट से तारों का ढेर सारा पदार्थ ब्रह्मांड में चारों ओर फैल जाता है।इसके बाद तारे के केंद्र में एक अति-सघन छोटा-सा पिंड बचता है। तारा अगर हमारे सूरज के आकार जितना हुआ, तो विस्फोट के बाद वह श्वेत वामन तारा बन जाता है, जबकि हमारे सूर्य के कई गुना ज्यादा बड़े तारे नष्ट होने की इस प्रक्रिया में न्यूट्रान तारे में बदल जाते हैं। ऐसे तारों के पदार्थ की अति सघनता का अंदाजा इससे लगाया सकता है कि इनके एक चम्मच पदार्थ का वजन कई टन हो सकता है। कुछ तारे जो इनसे भी बड़े होते हैं, उनमें सुपरनोवा विस्फोट के बाद भी बचे सघन पिंड का गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़ना जारी रहता है।

बहरहाल, अपनी मृत्यु की ओर बढ़ते इन सभी तारों में सुपरनोवा विस्फोट के बाद इतनी अधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति आ जाती है कि वे ब्रह्मांड में अपने निकट मौजूद सभी चीजों को अपनी ओर खींचते हैं, यहां तक कि वे प्रकाश भी सोखने लगते हैं। तारों की यही अवस्था ब्लैक होल कहलाती है। ब्लैक होल बन रहे तारों में एक अवस्था ऐसी आती है, जब उनसे प्रकाश के कणों का बाहर निकलना बंद हो जाता है। ऐसा उनके प्रचंड गुरुत्वाकर्षण की वजह से होता है। लेकिन इससे ठीक पहले की अवस्था में उन तारों को महसूस किया जा सकता है।तारों की यह अवस्था ‘इवेंट होराइजन’ कहलाती है। कह सकते हैं कि ‘इवेंट होराइजन’ लगातार संकुचित होते और मरते तारे के अंतिम दर्शन की एक अवस्था है। जब कोई भीतर की ओर सिकुड़ते हुए सब कुछ अपने में समेटने लगता है तो उसके बाहरी किनारे पर क्वांटम प्रभाव के कारण गर्म कण टूट-टूटकर ब्रह्मांड में फैलने लगते हैं। उस दौर में बाहरी हिस्सा ‘इवेंट होराइजन’ कहलाता है, जहां से भीतर जाने पर समय और काल अपना अर्थ खो देते हैं और तब भौतिक विज्ञान का कोई नियम वहां काम नहीं करता है।

दुनिया में पहली बार 10 अप्रैल 2019 को किसी ब्लैक होल की जो तस्वीर बनाकर वैज्ञानिकों ने साझा की थी, उसे वास्तविकता के काफी करीब माना जाता है। इससे पहले ब्लैक होल की जितनी भी तस्वीरें हैं, वे पूरी तरह कल्पना पर आधारित और वैज्ञानिक अनुमानों पर आधारित कलाकार की प्रस्तुति मात्र हैं। खगोलविदों ने पहली बार एम-87 या मिस्सीर-87 नामक आकाशगंगा में उसकी मौजूदगी साबित करते हुए उसकी छाया को पकड़ा और उस छाया में चमकदार सुनहरा रंग भरते हुए उसे दिखने लायक बनाया था। यह तस्वीर आग के गोले या चक्र का आभास देती है, जिसके किनारे भीतर की ओर मुड़े हुए प्रतीत होते हैं।खगोलविदों के मुताबिक चक्र के भीतर ब्लैक होल मौजूद हैं। पृथ्वी से 5.4 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर एम-87 गैलेक्सी में मौजूद स्थित ब्लैक होल के इस चित्र को फ्रांस, हवाई, मैक्सिको, चिली, स्पेन और अंटार्कटिका में लगे आठ टेलीस्कोप (दूरबीनों) के वैश्विक नेटवर्क से 2012 में शुरू की गई परियोजना ‘इवेंट होराइजन टेलीस्कोप’ (ईएचटी) के शोधार्थियों ने जमा किए गए डेटा के आधार पर बनाया था।

इसरो के अनुसार, यह खगोलीय स्रोतों से एक्स-रे उत्सर्जन का अंतरिक्ष आधारित ध्रुवीकरण माप में अध्ययन करने के लिए अंतरिक्ष एजेंसी का पहला समर्पित वैज्ञानिक उपग्रह है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के अलावा अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दिसंबर 2021 में सुपरनोवा विस्फोट के अवशेषों, ब्लैक होल से निकलने वाली कणों की धाराओं और अन्य खगोलीय घटनाओं का ऐसा ही अध्ययन किया था। इसरो ने कहा कि एक्स-रे ध्रुवीकरण का अंतरिक्ष आधारित अध्ययन अंतरराष्ट्रीय रूप से महत्वपूर्ण हो रहा है  


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