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बोधि वृक्ष की जांच के लिए पहुंचे साइंटिस्ट, लंबी उम्र के लिए इस प्रकार से करते हैं इलाज

बोधि वृक्ष की जांच के लिए पहुंचे साइंटिस्ट, लंबी उम्र के लिए इस प्रकार से करते हैं इलाज

गया। पूरी दुनिया में मौजूद बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए बिहार के गया जिले में स्थित बोधगया सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है। इसी जगह भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ती हुई थी। भगवान बुद्ध ने पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया था। बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद उस पेड़ को बोधि वृक्ष कहा जाने लगा। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए बोधि वृक्ष की बड़ी महत्ता है। श्रद्धालु इस पेड़ से गिरे पत्ते को अपने साथ ले जाते हैं और उसकी पूजा करते हैं।  

बोधि वृक्ष सही सलामत रहे, इसके लिए देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट पेड़ का इलाज करने आते हैं। हर साल इस पेड़ पर पांच लाख रुपए खर्च किए जाते हैं। बोधगया मंदिर प्रबंधक समिति ने पेड़ के इलाज के लिए इंस्टीट्यूट से एग्रीमेंट किया है। इसके देखभाल के लिए अब तक बीटीएमसी ने लाखों रुपए खर्च कर चुके हैं।

साल में चार बार आती है टीम

आपको बता दें कि साइंटिस्ट साल में चार बार यहां आते हैं और इलाज करते हैं। वृक्ष के स्वास्थ्य के अनुसार दवा का छिड़काव, सुखी टहनियों की कटाई और केमिकल लेप लगाते हैं। बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी के सचिव एन दोरजे बताते हैं कि देहरादून से भारतीय वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक इस पेड़ का साल में चार बार इसका चेकअप करने आते हैं उनसे एग्रीमेंट किया गया है इनके खर्च सालाना पांच लाख रूपए किए जाते हैं। 2007 से ही इसकी सेहत का ध्यान रखा जा रहा है इस को छूने पर प्रतिबंध है।वहीं इलाज के लिए पहुंचे देहरादून से साइंटिस्ट का कहना है कि कीटों से बचाने के लिए एक विशेष प्रकार के पदार्थ का छिड़काव होता है। वृक्ष को पोषक तत्व देने के लिए मिनरल्स का लेप चढ़ाते हैं। इसके साथ ही  देखा जाता है कि पेड़ को कोई बीमारी तो नहीं लगी है। पेड़ से अलग हुई टहनियों को मंदिर समिति सुरक्षित रखती है। श्रद्धालु पेड़ से गिरने वाले पत्तों को जमा करते हैं और घर ले जाकर उसकी पूजा करते हैं।

141 साल पुराना वृक्ष

बताया जाता है कि 141 साल पहले यानी साल 1876 में महाबोधि मंदिर के जीर्णोद्धार के समय एलेक्जेंडर कनिंघम ने इस वृक्ष को लगाया था। इस दौरान खुदाई में लकड़ी के कुछ अवशेष भी मिले, जिन्हें संरक्षित कर लिया गया। बाद में 2007 में इस वृक्ष, लकड़ी के अवशेष व सम्राट अशोक द्वारा श्रीलंका (अनुराधापुर) भेजे गए बोधिवृक्ष का डीएनए टेस्ट कराया गया। पता चला कि यह वृक्ष उसी वृक्ष के मूल से निकला है, जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

ऐसी है यहां की सुरक्षा व्यवस्था

बौधगया स्थित इस मंदिर सहित वृक्ष की सुरक्षा में बिहार मिलिट्री पुलिस की चार बटालियन (करीब 360 जवान) तैनात हैं। 4 डोर मेटल डिटेक्टर व 10 हैंड मेटल डिटेक्टर और 50 सीसीटीवी कैमरे से इस पेड़ की निगरानी की जाती है। इसकी टहनियां इतनी विशाल हैं कि लोहे के 12 पिलरों से उन्हें सहारा दिया गया है। इस वृक्ष के दर्शन के लिए हर साल 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। इनमें 1.5 लाख से अधिक विदेशी होते हैं। लेकिन इस साल कोरोना की वजह से विदेशी पर्यटकों का आना कम हो गया है। 




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