PATNA: बिहार में भ्रष्टाचार कैसे रूके, बड़े भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कैसे हो, इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी चिंतित थे. उन्होंने अपनी चिंता से डीजीपी को रूबरू कराया. और एक माह में हो गया था विशेष निगरानी इकाई की स्थापना. पर विडंबना यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग को लड़ने वाले अधिकतर सैनिक स्वयं भ्रष्ट पदाधिकारी होते हैं. तत्कालीन डीजीपी ने वो पुरानी बातें ताजा कर दी हैं.
अभयानंद ने पुरानी यादें ताजा कर दीं
तेजतर्रार रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी व बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने विशेष निगरानी इकाई को लेकर पुरानी बातें याद की हैं. वे सोशल मीडिया पर लिखते हैं,'' तिथि तो स्मरण नहीं है पर संभवतः 01 अगस्त 2006 होगा, जब मुख्यमंत्री चिंता की मुद्रा में अपनी व्यथा मुझे अकेले में बता रहे थे। "मेरा पूरा प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।" मैंने उतनी ही गंभीर स्वर में जवाब दिया, "आप अगर बहुत सीरियस हैं, तो इसका इलाज है।" उन्होंने कौतूहल वश मुझसे जानना चाहा। मेरी बुद्धि में तत्काल कौंधा "SAP" के तर्ज पर CBI के सेवानिवृत्त वरीय अनुसन्धानकों की टोली बनाई जाए और उन्हें "मिशन" दिया जाए -
सिर्फ दो मिशन दिया जाय...
1. केवल आय से अधिक संपत्ति अथवा "क्लीन ट्रैप", यही दो प्रकार के केस लिए जाएंगे
2. केवल विभाग के प्रमुख स्तर के पदाधिकारी पर ही अनुसंधान होगा.
पूर्व डीजीपी अभयानंद आगे लिखते हैं कि अनौपचारिक सहमति हुई। कागज़ पर कोई प्रस्ताव नहीं आया। मुख्यमंत्री ने तय किया कि वह इसका ऐलान गाँधी मैदान में करेंगे। मैंने सलाह भी दी कि विधान सभा बेहतर जगह होगा। उनकी भावना थी कि विपक्ष "वॉक आउट" करता रहता है तो आम जनता के बीच ही किया जाए। मुख्यमंत्री की "स्पीच" में इस बात का उल्लेख नहीं था, क्योंकि सरकार के पास कोई भी दस्तावेज़ था ही नहीं। उन्होंने अलग से लिख कर रख लिया था और 15 अगस्त को इसे गाँधी मैदान में पढ़ दिया। आम आदमी की गैलरी से हर्ष की करताल ध्वनि से इस उद्घोषणा का स्वागत किया गया। वरीय पदाधिकारियों के खेमे में रुकी हुई सांस की शांति छा गई। घर लौटते ही उनका फोन आया, "मैंने तो आपके सुझाव पर घोषणा कर दी, अब आगे कैसे बढ़ेगा यह देखिए।
भ्रष्टाचार के जंग को लड़ने वाले सैनिक अधिकांश भ्रष्ट अफसर
अभयानंद ने आगे बताय़ा कि मैंने एक माह में, दौड़-भाग कर, विशेष निगरानी इकाई को ज़मीन पर उतार दिया। उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जब भी जंग होती है, तो आम आदमी में स्वाभाविक रूप से खुशी की लहर दौड़ जाती है। विडंबना है कि इस जंग को लड़ने वाले सैनिक अधिकतर स्वयं भ्रष्ट पदाधिकारी होते हैं। कुल मिलाकर, यह प्रयास समय के साथ एक "सेल्फ़ डिफीटिंग" प्रक्रिया होकर रह जाती है।