DESK : मुजफ्फरपुर की लीची अपने स्वाद के लिए पूरे देश और दुनिया में मशहूर है लेकिन इस साल की लीची को एक तो प्रकृति का मार झेलना पड़ रहा है और बाकी किसानों को कमर तोड़ने की कसर कोरोना ने पूरी कर दी| आलम यह है की बाहर के व्यवसायियों ने लीची के बाग नहीं खरीदे है ,उनका कहना है की वे दानों (फलों) के और पुष्ट और आकार लेने का इंतजार कर रहे हैं।
जिले में तकरीबन 12 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। करीब 400 करोड़ का कारोबार होता है। बिहार के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और नेपाल की मंडियों में इसकी खपत होती है। फसल अच्छी होने पर 15 हजार टन तक उत्पादन होता है। पिछले साल 10 हजार टन ही उत्पादन हुआ था। इस बार भी फसल कमजोर है। बीते साल काफी बारिश और जलजमाव के चलते 50 फीसद पेड़ों में मंजर नहीं आए हैं। जिन पेड़ों में दाने आ रहे, उन्हें प्रतिकूल होते मौसम में बचाना मुश्किल हो रहा है। इस कारण साढ़े सात से आठ हजार टन ही उत्पादन होने की उम्मीद है। दूसरी ओर, अब तक बागों की बिक्री नहीं होने से लीची उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ गई है। कोरोना की दूसरी लहर के कारण कारोबार प्रभावित होने की आशंका है।
बीते साल करीब 200 करोड़ का हुआ था नुकसान
लीची उत्पादक को बीते साल करीब 200 करोड़ का नुकसान हुआ था क्यूंकि कोरोना और लॉकडाउन के चलते 75 फीसद किसानों के लीची के बाग नहीं बिके थे।इस बार 25 फीसद उत्पादन तो वैसे ही प्रभावित होगा। शेष 75 फीसद उत्पादन संभल भी जाता है तो कितने का कारोबार होगा, कहना मुश्किल है। वैसे भी शाही लीची की फसल तैयार होने में अधिकतम एक माह का समय है, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बीच व्यवसायियों द्वारा रुचि नहीं दिखाने से नुकसान की आशंका और बढ़ गई है। कोरोना के चलते बाहर के व्यवसायी लीची के बाग़ का विडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके मुआयना ले रहे है|फ़िलहाल इस समय लीची बागों की मुख्य समस्या समय से पहले तेज धूप और उच्च तापमान है जिससे दानों के गिरने और अविकसित होने का खतरा है| यह किसानों की चिंता का मुख्य कारण बनकर उभरा है |