छुपाना नहीं...दिखाना है! बड़े दल ने बता दिया- हमने बदल लिया अपना पूरा 'चेहरा', पार्टी दफ्तर वाली तस्वीर के बाद पॉलिटिकल गपशप तेज

PATNA: अब छुपाने से क्या....लिहाजा बिहार की बड़ी पार्टी ने दिखाना शुरू कर दिया है। नेतृत्व से हरी झंड़ी के बाद प्रदेश यूनिट चेहरे को सार्वजनिक करने में जुटा है। कहा जाता है कि पार्टी के भीतर बदलाव की बयार तो कई सालों से बह रही थी, नेताओं को अहसास भी हो रहा था पर अब उसे जनमानस में ले जाने की पूरी प्लानिंग कर ली गई है। पार्टी ने ठान लिया है कि कोर साथियों के रूठने की परवाह नहीं। हमें तो बिहार के वोटरों की बड़ी जमात को बताना है कि हमने अपना चेहरा पूरी तरह से बदल लिया है। पुराने चेहरों से हमने पूरी तरह से पीछा छुड़ा लिया है। मंगलवार को दफ्तर में आयोजित कार्यक्रम के समय की जो तस्वीर सामने आई, उसके बाद यह चर्चा शुरू है। न सिर्फ दल के भीतर बल्कि बाहर भी। 

पटना के कार्यक्रम में दिखा वो चेहरा

मंगलवार को पटना में पार्टी की तरफ से कार्यक्रम आयोजित की गई थी। कार्यक्रम में दल में वर्तमान के सभी चेहरे मौजूद थे। यानि कप्तान के साथ-साथ दोनों डिप्टी व हस्तिनापुर वाले वजीर साहब भी मौजूद थे। इसके अलावे एक वजीर साहब जो जनप्रतिनिधि वाले विभाग का जिम्मा संभाल रहे वो भी तस्वीर में दिख रहे। कार्यक्रम में 'नवचयनित' को सम्मानित किया जा रहा था। इस दौरान सामूहिक फोटोग्राफी हुई। इसके बाद कार्यक्रम की जो तस्वीर सामने आई उसी के बाद से राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। तस्वीर देखने के बाद दल के भीतरी गलियारे में भी गपशप तेज है। नेता चर्चा कर रहे कि पहले कम से कम कोरम तो पूरा किया जा रहा था। बेमन से और पर्दे के बाहर ही सही पुराने जमात(कोर वोटरों) के वर्ग के नेताओं को आगली कतार में रखा जाता था। पर अब सबकुछ बदल गया है। नेतृत्व ने यह मान लिया है कि अब हमने जो बदलाव किया है वो दिखना भी चाहिए। लिहाजा अब उसे दिखाया और प्रचारित किया जा रहा। प्रचारित करने में अब कोई परेशानी भी नहीं। वैसे, पूर्व वाले जमात को भी अब यह मान लेना चाहिए कि अब उन्हें अगली कतार में जगह नहीं दी जा सकती। ऐसा इसलिए क्यों कि लोकतंत्र में वोट के इर्द-गिर्द ही राजनीति की सूई केंद्रित रहती है। 

वैसे 'चेहरा' वोट ट्रांसफऱ कराने में रहा है विफल 

वैसे भी, पार्टी छोटी-छोटी जातियों को पाले में लाने में जुटी है। दरअसल, इस बड़ी पार्टी का मानना है कि बिहार में राजनीतिक रूप से कमजोर जाति के वोटरों का झुकाव कहीं न कहीं सहयोगी दल की तरफ अधिक है। लिहाजा नेतृत्व की तरफ से लगातार इस पर काम किया जा रहा है। सबसे पहले बिहार में चेहरा व नेता में बदलाव किया गया, फिर शासन में। हालांकि वो चेहरा कितना कारगर हो रहा, यह दल के लोग भी समझ रहे। जानकार तो यह भी बताते हैं कि बड़ी पार्टी बिहार में जिस नेता के इर्द-गिर्द घूम रही वो अपने समाज का मुट्ठी भर वोट भी दल में ट्रांसफऱ कराने में विफल रहे हैं।