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चार साल के बाद की चिंता न करो! तुम हो बिहारी, सब पर भारी, सेना की नौकरी शुरू करो

चार साल के बाद की चिंता न करो! तुम हो बिहारी, सब पर भारी, सेना की नौकरी शुरू करो

PATNA : सेना में बहाली के नए नियम का विरोध सबसे ज्यादा बिहार में हो रहा है। यहां के हर जिले में पिछले चार दिनों से युवा सड़क पर हैं। कोई नए नियम को लेकर अपना गुस्सा जाहिर कर रहा है, कोई सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहा है। इन छात्रों को इस बात का डर है कि नए नियम के लागू होने के बाद उनके सेना में जाने के रास्ते बंद हो जाएंगे। उन्हें डर है कि चार साल के बाद जब उन्हें सेना के असली अग्निवीर बनने का मौका मिलेगा तो उन्हें वापस न लौटना पड़े। जबकि एक बिहारी होने के नाते उनका यह डर कहीं से भी सही नहीं लगता है। क्योंकि बात जब सेना में जाकर देश सेवा की बात होती है तो बिहारियों ने हर बार अपनी वीरता का प्रमाण दिया है। बिहार  उन राज्यों में से है, जहां से सबसे अधिक बच्चे सेना में जाते हैं। 

गलवान घाटी में दिखाई थी बिहारी रेजिमेंट ने अपनी काबिलियत

सेना में बिहारियों की बहादुरी का सभी लोहा मानते हैं। दो साल पहले गलवान घाटी में बिहारियों ने यह साबित कर दिया था कि वह कुछ भी कर सकते हैं। गलवान में जब चीनी सेना गुपचुप तरीके से भारत की सीमा में घुसकर कब्जा करने की कोशिश कर रही थी। तब उस समय बिहार रेजिमेंट के जवानों ने अपनी जान पर खेलकर न सिर्फ चीन की नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया था। बल्कि चीन के इतने सैनिकों को मार गिराया था कि आज भी वह गलवान घाटी पर चर्चा करने से अपने मुंह फेर लेता है। 


मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का भी संबंध बिहार रेजिमेंट से

हाल ही में मुंबई हमले में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की जिंदगी पर आधारित फिल्म 'मेजर' की खूब चर्चा हो रही है। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का परिवार भले ही कर्नाटक का हो। लेकिन सेना में बिहार रेजिमेंट का प्रतिनिधित्व करते थे। बिहार रेजिमेंट के साथ काम करते हुए उन्होंने अपनी योग्यता का परिचय दिया और एनएसजी तक अपना सफर तय किया और बहादुरी से लड़ते ताज हमले को नाकाम साबित किया। 

उरी हमले में 15 जवान हुए शहीद

2016 में भी जब पाकिस्तानी आतंकियों ने कायरतापूर्ण तरीके से उरी सैन्य बेस पर हमला किया था। उस समय भी बिहारियों ने ही उनसे लड़ाई लड़ी थी. जिसमें बिहार के जवानों ने वीरता का परिचय दिया था और 15 बिहारी जवानों ने देश के लिए अपनी जान दी थी।

करगिल युद्ध में 19 जवान शहीद

1999 में कारगिल में बिहार रेजिमेंट के जवानों ने अदम्य साहस व वीरता को दिखाते हुए पाक सैनिकों को घुटनों पर ला लिया था। इस युद्ध में हर मोर्च पर बिहारी जवानों ने पाकिस्तान को अपने कदम पीछे करने के लिए मजबूर कर दिया था।

विश्व युद्ध के लिए बना बिहार रेजिमेंट

भारतीय सेना में बिहार रेजिमेंट  का वर्तमान जितना शानदार रहा है। उतना ही गर्व इसके इतिहास पर भी कर सकते हैं।  15 सितंबर 1941 को अंग्रेजी सेना के मेजर जे. आरएच ट्वीड (मेडल आफ ब्रिटिश एक्सीलेंस मिलिट्री क्रास) के द्वारा प्रथम बिहार बटालियन का गठन किया गया। वहीं एक स्वतंत्र बिहारी रेजिमेंट की स्थापना एक नवंबर 1945 को आगरा में लेफ्टीनेंट कर्नल आरसी म्यूरलर ने की थी। जिसके बाद बिहार रेजिमेंट ने लगातार देश की सेवा की है। हालांकि इसके बाद इसे बिहार के गया और फिर 1949 में गया से दानापुर स्थानांतरित कर दिया गया था।

बिहार रेजिमेंट के योद्धाओं ने द्वितीय विश्व युद्ध, 1971 के बांग्लादेश की आजादी में अपनी वीरता का परचम लहराया है. इसके अलावा सोमालिया में सयुंक्त राष्ट्र को शांति सेना के रूप में जवानों ने अपना शौर्य दिखाया है।

गिन चुने राज्यों का है अलग रेजिमेंट

भारतीय सेना में जहां कई दूसरे राज्यों की एक अलग बटालियन तक नहीं है, वहीं बिहार की गिनती उन राज्यों में होती है, जिसके नाम पर एक अलग रेजिमेंट है। ऐसे में बिहार के युवाओं को इस बात की चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए कि बात जब अग्निपथ योजना में चार साल बाद जब नियमित होने की बारी आएगी तो उनका मुकाबला कोई और कर पाएगा। यह बात यहां के दूसरे प्रतियोगी परीक्षाओं ने भी साबित की है, जिसमें सबसे ज्यादा चयन बिहार के युवाओं का होता है। इसलिए विरोध नहीं अपने काबिलियत पर विश्वास करने की जरुरत है। 


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