पटना... बिहार में शराबबंदी लागू हुए अब पांच साल होने जा रहे हैं। शराबबंदी का फैसला एक अप्रैल 2016 से पूरे बिहार में लागू हुआ था। नीतीश सरकार के इस फैसले को लेकर खूब खेमेबंदी हुई। ढेर सारे लोग शराबबंदी के समर्थन में आये तो सरकार को खूब आलोचना भी झेलनी पड़ी। खुद सरकार में शामिल दलों के कई राजनेताओं ने गाहे-बगाहे शराबबंदी कानून (बिहार मद्य निषेद अधिनियम) में बदलाव के लिए जरूरत जताई, लेकिन नए आंकड़ों के मुताबिक एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। ड्राइ स्टेट होने के बावजूद बिहार में सबसे अधिक लोग शराब पीते हैं।
देश में शराब की खपत को लेकर नए आंकड़े जारी किए गए हैं। इसमें कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। इसके अनुसार, महाराष्ट्र की तुलना में बिहार के पुरुष ज्यादा शराब पीते हैं। दिलचस्प है कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू है, इसके बावजूद धड़ल्ले से शराब का सेवन किया जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक, तेलंगाना में पहले की तुलना में लोगों में शराब के सेवन का अनुपात बढ़ा है। तम्बाकू सेवन में पूर्वोत्तर राज्य सूची में सबसे ऊपर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात और जम्मू-कश्मीर के पुरुषों में शराब की खपत कम से कम है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि पिछले सर्वेक्षण के बाद से शराब या तंबाकू की खपत में कोई बदलाव हुआ है या नहीं, क्योंकि दोनों डेटा सेट तुलनीय नहीं हैं. 2015-16 के सर्वेक्षण में, डेटा 15-49 वर्ष आयु वर्ग से संबंधित था, जबकि नए सर्वेक्षण में यह सभी 15 साल से अधिक के लिए है।
कांग्रेस ने शराबबंदी खत्म करने की मांग की
अब कांग्रेस ने बिहार में शराबबंदी को खत्म करने की मांग उठाई है। पार्टी ने इसके पीछे बिहार सरकार को राजस्व के नुकसान का हवाला दिया है। कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजीत शर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर राज्य से शराबबंदी कानून समाप्त किए जाने की मांग की है।
कांग्रेस नेता ने पत्र में लिखा है कि 2016 में जब शराबबंदी लागू हुई तो कांग्रेस ने सदन में भी इसका समर्थन किया था लेकिन साढ़े चार वर्षों में शराबबंदी वस्तुत: लागू नहीं हो पाई। लाइसेंसी दुकानों की जगह अब दोगुनी-तिगुनी कीमत पर घर-घर शराब की डिलीवरी की जा रही। युवा पढ़ाई लिखाई छोड़कर शराब पहुंचाने के पेशे से जुड़ रहे। इसमें पुलिस-प्रशासन और नौकरशाहों के साथ कुछ राजनीतिज्ञ भी शामिल हैं।
राज्य को हर साल करीब पांच हजार करोड़ रुपए का नुकसान
शराबबंदी से राज्य को करीब पांच हजार करोड़ रुपये के राजस्व की भी क्षति हो रही है, जबकि इसकी दोगुनी राशि शराब माफिया से जुड़े लोगों तक पहुंच रही है। ऐसे में शराब की कीमत दोगुनी-तिगुनी कर शराबबंदी समाप्त करें और इससे प्राप्त राशि से कारखाने खोलें। राजकोष में धन आने पर इसका इस्तेमाल युवाओं को रोजगार देने में किया जा सकेगा।