देहरादून- समान नागरिक संहिता पर ड्राफ्ट लाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने मंगलवार को राज्य की विधान सभा में समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 विधेयक (यूसीसी) पेश किया. विधेयक पेश करने से पहले उत्तराखंड के सीएम धामी ने कहा कि जिस संय का लंबे अरसे से इंतजार था, वह पल आ गया है. न केवल प्रदेश की सवा करोड़ जनता, बल्कि पूरी देश की निगाहें उत्तराखंड की ओर बनी हुई हैं. यह कानून महिला उत्थान को मजबूत करने का कदम है, जिसमें हर समुदाय, हर वर्ग, हर धर्म के बारे में विचार किया गया है.
भाजपा एमएलए ने सदन में समान नागरिक संहिता का समर्थन किया. भाजपा एमएलए ने कहा कि विधेयक का किसी को विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें किसी के भी अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया गया है. सभी धर्म, जाति और वर्ग के लोगों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं . सदन की कार्यवाही सात फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई.
समान नागरिक संहिता विधेयक में 400 से ज्यादा प्रावधान किए गए हैं. शादी से लेकर लिव इन रिलेशन तक पर सख्त नियम बनाए गए हैं. हालांकि, समान नागरिक संहिता विधेयक में जो विशेष प्रावधान किए गए हैं, उन्हें लेकर विवाद खड़ा हो सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि मुसलमानों पर कानून थोपने की तरह है. अगर इसे लागू किया जाता है तो मुस्लिमों के कई अधिकार खत्म हो जाएंगे. जैसे- तीन शादियों का अधिकार नहीं रहेगा. शरीयत के हिसाब से संपत्ति का बंटवारा नहीं होगा.
वहीं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को लेकर कहा कि धामी भाजपा नेताओं को खुश करने के लिए इसे लेकर आए हैं. वहीं एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताया है.
बता दें कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक ऐसा कानून है जो सभी नागरिकों के लिए समान होगा, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. इसका मतलब है कि शादी, तलाक, विरासत, और अन्य मामलों के लिए एक ही नियम लागू होंगे. समान नागरिक संहिता कानून के लागू होने का सबसे ज्यादा विरोध मसलमान कर रहे है. उनका कहना है कि ये कानून उनकी स्वतंत्रता पर चोट पहुंचाने वालीाहै. समान नागरिक संहिता कानून बनाना भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में शामिल था. केंद्र सरकार की ओर से भी कहा जा रहा है कि विधि आयोग की रिपोर्ट के बाद इस दिशा में विचार किया जाएगा. देश के 22वें विधि आयोग ने पिछले साल समान नागरिक कानून पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों से अपनी राय देने के लिए कहा था. फिलहाल, देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान 'आपराधिक संहिता' है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत आता है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे. इसी अनुच्छेद का हवाला देकर देश में समान नागरिक कानून लागू करने की मांग उठाई जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस कानून के लागू होने से जनसंख्या वृद्धि रोकने में मदद मिलेगी. वहीं, भाजपा के जो तीन प्रमुख मुद्दे रहे हैं, उनमें दो मुद्दे राम मंदिर का निर्माण और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का वादा पूरा हो गया है. अब सिर्फ यूसीसी ही बाकी रह गया है.
समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड विधानसभा में पेश हो चुका है. समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध किया है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि हम यूसीसी नहीं, बल्कि इसे पेश किए जाने के तरीके के खिलाफ हैंइस विधेयक के लागू होते हीं पति-पत्नी दोनों को समान आधार पर तलाक लेने का अधिकार होगा. साथ हीं बहुविवाह पर रोक लग जाएगी. लड़कियों को लड़कों के बराबर उत्तराधिकार मिलेगा. लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को खुद को घोषित करना होगा, अनुसूचित जनजातियों को यूसीसी से छूट दी गई है.