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आरक्षण खत्म करो,देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा-एक बार जिसे आरक्षण का लाभ मिल चुका है उसे दोबार लाभ ना दिया जाय

आरक्षण खत्म करो,देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा-एक बार जिसे आरक्षण का लाभ मिल चुका है उसे दोबार लाभ ना दिया जाय

Delhi: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली ,न्यायमूर्ति बी आर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की  संविधान पीठ ने कहा है कि पिछड़ी जातियों में जो लोग आरक्षण के पात्र थे और इससे लाभ उठा चुके हैं , उन्हें अब आरक्षित कैटेगरी से बाहर निकलना चाहिए. संविधान पीठ ने कहा कि उन्हें अधिक पिछड़ों के लिए रास्ता बनाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को इस कानूनी प्रश्न की समीक्षा शुरू कर दी कि क्या राज्य सरकार को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है?’

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली ,न्यायमूर्ति बी आर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की  संविधान पीठ ने सुनवाई के पहले दिन कहा कि वह 2004 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की वैधता की समीक्षा करेगा, जिसमें कहा गया था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आगे उप-वर्गीकृत करने का अधिकार नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट उन 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दे दी गई है. इसमें पंजाब सरकार की मुख्य अपील भी शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ अब इस सवाल की जांच कर रही है कि क्या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की तरह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के अंदर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए और क्या राज्य विधानसभाएं इस अभ्यास को करने के लिए राज्यों को सशक्त बनाने वाले कानून पेश करने में सक्षम हैं. 

 मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान दो कानूनी प्रश्नों  की पहचान करते हुए कहा कि ‘इस पर पंजाब सरकार को ध्यान देना चाहिए. पहला, यह कि क्या वास्तविक समानता की धारणा राज्य को आरक्षण का लाभ देने के लिए पिछड़े वर्गों के भीतर व्यक्तियों के अपेक्षाकृत पिछड़े वर्ग की पहचान करने की अनुमति देती है. दूसरा, यह कि क्या संघीय ढांचा, जहां संसद ने पूरे देश के लिए जातियों और जनजातियों को नामित किया है, यह राज्यों पर छोड़ देता है कि वे अपने क्षेत्र के भीतर अपेक्षाकृत हाशिए पर रहने वाले समुदायों को कल्याणकारी लाभ के लिए नामित करें.’

इस मामले में, 27 अगस्त, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने चिन्नैया मामले में 2004 में पारित 5 जजों के फैसले से असहमति जताई थी और इस मामले को सात सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेज दिया था.


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