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प. बंगाल में ममता का तुष्टीकरण कार्ड,कांग्रेस पर ममता के हमले के पीछे मुस्लिम वोट बंटने का डर,इंडी गठबंधन में बढ़ गयी खाई

प. बंगाल में ममता का तुष्टीकरण कार्ड,कांग्रेस पर ममता के हमले के पीछे मुस्लिम वोट बंटने का डर,इंडी गठबंधन में बढ़ गयी खाई

पटना- इंडी गठबंधन में लगातार दरार पड़ने की खबरों के बीच पश्चिम बंगाल में टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कांग्रेस को आंख दिखाना शुरू कर दिया है. 22 जनवरी 2024 को एक तरफ अयोध्या में राम लला की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा हो रहा था तो दूसरी तरफ बंगला में ममता बनर्जी सर्व विश्वास रैली को संबोधित कर रही थीं. उन्होंने इस रैली में जमकर कांग्रेस पर हमला किया था. दरअसल राज्य में ममता बनर्जी को अल्पसंख्यकों का समर्थन मिलता रहा है, जिसे ममता बनर्जी खोना नहीं चाहती है. रैली में टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने महत्वपूर्ण मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने का प्रयास किया. कांग्रेस पर हमला करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि मैंने कांग्रेस से 300 सीटों पर लड़ने और बाकी को इंडी गठबंधन  के लिए छोड़ने के लिए कहा है. लेकिन वे नहीं माने. अब वे राज्य में मुस्लिम मतदाताओं के बीच दरार पैदा कर रहे हैं. ममता ने कहा कि भाजपा हिंदू वोटरों में को अपने पक्ष में एकीकृत करने में जुटी है तो हम जैसे सेक्युलर दल क्या करेंगे?उन्होंने कहा कि  मुझे नहीं पता कि कांग्रेस अगर 300 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो 40 सीटें भी जीत पाएगी या नहीं.

ममता बनर्जी ने घोषणा कर दिया है कि  टीएमसी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी. टीएमसी  पच बंगाल में अल्पसंख्यक वोटों का विभाजन नहीं चाहती है. 22 जनवरी को टीएमसी की सर्व-विश्वास रैली में ममता ने मुस्लिम वोटरों से टीएमसी के अलावा किसी अन्य पार्टी का समर्थन करके अपना वोट बर्बाद न करने का आग्रह करके स्पष्ट संकेत दे दिया था कि वे अल्पसंख्यक मतों को एकीकृत रखने के लिए इंडी गठबंधन से अलग रास्ता अख्तियार कर सकती हैं.

प.बंगाल में ममता बनर्जी से पहले वामपंथी मोर्चा सरकार को मुस्लिम समुदाय का वोट मिलता रहा. साल 2006 और साल 2008 के बीच नंदीग्राम और सिंगूर भूमि आंदोलन में टीएमसी ने वामपंथी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया  जिससे मुस्लिमों को झुकाव टीएमसी की तरफ हो गया. साल 2011 में प. बंगाल में ममता की सरकार बनी तो ममता बनर्जी ने इमामों के लिए भत्ते, मुस्लिम छात्रों के लिए छात्रवृत्ति, कल्याण बोर्ड के निर्माण और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मदरसों के लिए 50 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा करके अल्पसंख्यक वोटों को और मजबूत किया. ऐसी नीतियों का पालन करते हुए उनकी पार्टी बंगाल में चुनाव दर चुनाव जीतती रही. 

 साल 2021 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन बनाने के बावजूद कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों 294 विधानसभा सीटों में से एक भी जीतने में सफल नहीं रहे. साल 2023 में टीएमसी ने 2021 के चुनावों के बाद राज्य में टीएमसी को तब हार का सामना करना पड़ा जब वाम समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार बायरन बिस्वास ने फरवरी 2023 में सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव जीता. यह जीत मिली मुर्शिदाबाद जिले में जहां प. बंगाल में सबसे अधिक 66.28 फिसदी मुस्लिम आबादी है. इसे टीएमसी के घटते अल्पसंख्यक वोट बैंक के संकेत के रूप में देखा गया. हार के बाद ममता ने कई बदलाव किया.

बहरहाल प. बंगाल में ममता के अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से सूबे में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बन रही है. 

भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति से लड़ने के लिए टीएमसी  मुस्लिम समुदाय के वोट के बिखराव को रोकने की जुगत में लगी है. बता दें प. बंगाल की आबादी का 27 फिसदी अल्पसंख्यकों का है. प. बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 7 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और अन्य 6 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक वोट निर्णायक माने जाते हैं.

बहरहाल शनिवार को बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने ममता पर पलटवार करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी भाजपा से डर गई हैं और यही कारण है कि वह हर दिन अपना रुख बदल रही हैं.


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