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दूसरे देश के मंत्रियों से नहीं मिलने वाले रुस के राष्ट्रपति पुतिन ने विदेश मंत्री जयशंकर से की मुलाकात, पुतिन और जयशंकर की बैठक की इस कारण हो रही है इतनी चर्चा

दूसरे देश के मंत्रियों से नहीं मिलने वाले रुस के राष्ट्रपति पुतिन ने विदेश मंत्री जयशंकर से की मुलाकात, पुतिन और जयशंकर की बैठक की इस कारण हो रही है इतनी चर्चा

DELHI- विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पांच दिवसीय रूस यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण रही क्योंकि 25 से 29 दिसम्बर के बीच दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए और भारत विश्व को यह संदेश देने में सफल रहा कि वह अपने संबंध जिससे एक बार स्थापित करता है, उससे तोड़ता नहीं और जल्दबाजी में किसी से संबंध जोड़ता नहीं.भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर रूस के पाँच दिवसीय दौरे पर हैं. इस दौरे में बुधवार को उनकी मुलाक़ात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई. पुतिन सामान्य तौर पर अपने समकक्षों से ही मुलाक़ात करते हैं लेकिन इस परंपरा को तोड़ उन्होंने भारत के विदेश मंत्री से मुलाक़ात की.जयशंकर से पुतिन की मुलाक़ात को इसीलिए ख़ास माना जा रहा है.पुतिन आम तौर पर दूसरे देशों के मंत्रियों के साथ नहीं मिलते हैं लेकिन पिछले समय में उन्होंने अपवाद दिखाए हैं.इसी साल फ़रवरी में रूस में 'अफ़ग़ानिस्तान पर सुरक्षा वार्ता' हुई थी, जिसमें कई देशों के अधिकारियों के साथ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी शामिल हुए थे. इस बैठक के बाद निजी तौर पर भी डोभाल और पुतिन की मुलाक़ात हुई थी.अब पुतिन का जयशंकर के साथ मिलना भी उसी परंपरा के टूटने का हिस्सा है.जेएनयू के चांसलर और पूर्व विदेश सचिव कंवल सिबल ने एक ट्वीट में कहा, "ये अच्छा है. पुतिन कभी कभार ही विदेश मंत्रियों से मिलते हैं. ये सोच समझकर उठाया गया क़दम है और ये दिखाता है कि नए भूराजनितिक परिदृश्य में भारत रूस को कितना महत्व देता है.जयशंकर के लिए रूस कोई अनजाना मुल्क नहीं है. वह रूस में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं.पुतिन ने एस जयशंकर से मुलाक़ात के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को रूस आने का निमंत्रण दिया.

बैठक के दौरान दोनों ही नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के बीच भारत-रूस संबंध, कारोबार और यूक्रेन के मुद्दे पर भारत के रुख़ की चर्चा हुई.रूस ने इस बात पर जोर दिया है कि दोनों देशों के बीच कारोबार केवल तेल, कोयला और ऊर्जा से संबंधित उत्पादों तक ही सीमित नहीं है बल्कि हाइटेक मामलों में भी संबंध आगे बढ़ रहे हैं.पुतिन ने कहा, "हमें ये बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि मौजूदा समय में दुनिया में चल रही अशांति के बीच एशिया में हमारे पारंपरिक दोस्त भारत और भारत के लोगों के साथ संबंधों का विस्तार हो रहा है."प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच व्यक्तिगत संबंध भी अच्छे हैं. भारत ने भी अमेरिकी दबाव को नकारते हुए रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम ख़रीदा था.

जयशंकर ने पीएम मोदी की लिखी चिट्टी पुतिन को सौंपी. दोनों ही नेताओं ने भारत-रूस के बीच संबंधों को मजबूत करने पर बात की. इस दौरान पुतिन ने भी जवाब में पीएम मोदी को रूस आने के लिए आमंत्रित किया। इन समझौतों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वुडनवुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट को लेकर हुआ समझौता किन्तु फार्मास्युटिकल्स और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुए समझौते भी समयानुसार काफी अहम हैं। दोनों देशों के अपने-अपने राष्ट्रीय हित हैं और इसलिए दोनों के बीच हुए समझौतों से दोनों के हित सुरक्षित एवं संवर्धित होंगे। अभी पिछले वुछ वर्षो तक जब भी कोईं विदेश मंत्री रूस का दौरा करता था तो सिर्प यही माना जाता था कि वह रक्षा समझौतों एवं वुछ वूटनीतिक सापेक्षता समीकरण साधने मास्को पहुंचा है। किन्तु अब यह धारणा पूरी तरह बदल गईं है। अब भारत के प्राधानमंत्री या विदेश मंत्री जब रूस की यात्रा पर जाते हैं तो रक्षा संबंधी सौदे के लिए ही नहीं बल्कि अपनी बात कहने और उनकी बात सुनने जाते हैं। हमारे नेता मात्र वुछ लेने के लिए ही नहीं जाते बल्कि उन्हें देने भी जाते हैं। भारत की प्राथमिकता है कि वह ज्यादा से ज्यादा सैन्य साजोसामान खुद बनाए और खरीदना पड़े तो तकनीक सहित उस देश से ले जो चीन को निर्यांत नहीं करते। 

भारत अपने स्पष्टवादी प्रावृत्ति के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। जब नईं दिल्ली अमेरिका या रूस विरोधी यूरोपीय देशों से बात करता है तो वह रूस की नाराजगी की परवाह नहीं करता। यह दूसरी बात है कि भारत कभी भी अपने मित्र देश के हितों के प्रातिवूल किसी अन्य देश से कोईं समझौता नहीं करता। ठीक उसी तरह भारत अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी या इटली की नाराजगी की कोईं परवाह नहीं करता जब वह रूस से कोईं समझौता करता है। दोनों पक्षों को यह पता है कि यदि भारत उनके विरोधी देश से समझौता करता है तो उसमें उनका कोईं अहित नहीं है। ऐसा सिर्प भारत ही कर सकता है क्योंकि उसे विरोधी राष्ट्रों के साथ संबंधों में संतुलन रखने का कौशल हासिल है।

जयशंकर ने कहा कि उम्मीद है कि जनवरी में वाइब्रेंट गुजरात बैठक में सुदूर पूर्व से एक प्रतिनिधिमंडल भाग लेगा. उन्होंने कहा कि हमने दीर्घकालिक व्यवस्थाओं पर चर्चा की. हम ऊर्जा, उर्वरक और भोजन पकाने में इस्तेमाल होने वाले कोयले के लिए व्यापक व्यापार कर रहे हैं. हम इस संबंध में दीर्घकालिक व्यवस्थाओं तक कैसे पहुंच सकते हैं, इसपर व्यापक चर्चा हुई. हमने द्विपक्षीय निवेश और द्विपक्षीय निवेश संधि की जरूरत पर बात की. 

इससे पहले बैठक की शुरुआत में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समय समय पर एक-दूसरे से बात करते रहे हैं. जयशंकर ने कहा कि हमारे संबंध बेहद मजबूत, बेहद स्थिर हैं. मुझे लगता है कि हम एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी पर खरे उतरे हैं. इस साल हम पहले ही छह बार मिल चुके हैं और यह सातवीं बैठक है. उन्होंने कहा कि आज की बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया, इसे बदलती परिस्थितियों और मांगों के अनुसार समायोजित किया. जयशंकर ने कहा कि इस साल दोनों पक्ष सहयोग की अलग-अलग अभिव्यक्तियों के गवाह बने. उन्होंने कहा कि मैं बैठकों में व्लादिवोस्तोक में सुदूर पूर्वी आर्थिक मंच पर सेंट पीटर्सबर्ग अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच में हमारी उपस्थिति का भी उल्लेख करूंगा. 

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