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भैंस की पीठ से सत्ता के शीर्ष तक, लालू यादव की शुरुआती कर्मभूमि छपरा, जानिए 6 साल बाद राजद सुप्रीमो को क्यों याद आया सारण

भैंस की पीठ से सत्ता के शीर्ष तक, लालू यादव की शुरुआती कर्मभूमि छपरा, जानिए 6 साल बाद राजद सुप्रीमो को क्यों याद आया सारण

पटना- लालू यादव  का सियासी सफर उतरा चढ़ाव का रहा है. लालू प्रसाद यादव वर्ष 1970 में पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव चुने गए. इसके बाद लालू प्रसाद यादव वर्ष 1973 में छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. इसके बाद वर्ष 1974 में लालू प्रसाद यादव ने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जेपी छात्र आंदोलन में शामिल हुए और अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यकों, पिछड़ी वर्ग के अधिकार के लिए आवाज उठाई. उसके बाद लालू प्रसाद यादव जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्येंद्र नारायण सिन्हा के साथ मिलकर राजनीति में कदम बढ़ाया. लालू प्रसाद यादव वर्ष 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव के लिए छपरा लोकसभा सीट से जनता पार्टी के उम्मीदवार चुने गए,उन्होंने चुनाव लड़ा और जीता. लालू की कर्म भूमि छपरा रही है. वे पहली बार सांसद यहीं से बने थे तो रेल मंत्री रहते हुए भी छपरा लोकसभा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. लालू तबीयत ठीक होने के बाद राजनीतिक रुप से सक्रिय हो गए हैं. इसी क्रम में आरजेडी प्रमुख लालू यादव लगभग 6 साल बाद युवा क्रांति रथ पर सवार होकर  छपरा पहुंचे. छपरा सर्किट हाउस में रथ पहुंचते ही समर्थकों की भारी भीड़ लग गई.,गेट का शीशा भी टूट गया. आरजेडी प्रमुख ने कार्यकर्ताओं और नेताओं से मुलाकात की और उनका हाल जाना. लालू यादव कार्यकर्ताओं से 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा की.छपरा में करीब तीन घंटे रुकने के बाद पटना वापस लौट गए.  छपरा के इस दौरे को लोकसभा चुनाव की तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है. छपरा लोकसभा सीट लालू यादव की कर्म भूमि रही है. लालू यादव ने छपरा से ही राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. लालू यादव पहली बार यहीं से 29 साल की उम्र में सांसद बने थे. यहीं से लोकसभा सदस्य रहते हुए लालू यादव केंद्र में रेल मंत्री बने. हालांकि दो लोकसभा चुनाव में आरजेडी को यहां हार का सामना करना पड़ा.

तबीतय खराब होने की वजह से लालू यादव लंबे समय तक छपरा नहीं आ सके थे. आरजेडी प्रमुख अंतिम बार राबड़ी देवी के चुनाव के वक्त छपरा के सक्रिया राजनीति में आना हुआ था. उसके बाद से ही वे अपने कर्म भूमि से दूर रहे. माना जा रहा है सियासी रणनीति के तहत ही लालू यादव छपरा आये थे. संभव है कि इस बार लालू परिवार का ही कोई सदस्य यहां से चुनाव लड़े.लालू यादव के बाद राबड़ी देवी ने यहां से चुनाव लड़ा था, उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

बता दें लालू गंवाई परिवेश से सियासत में आए ,तो राजनीति में अपने अंदाज को लेकर छा गए .लालू यादव ने 1970 में पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (पुसू) के महासचिव के रूप में छात्र राजनीति में प्रवेश किया और 1973 में अपने अध्यक्ष बने. 1974 में, उन्होंने बिहार आंदोलन, जयप्रकाश नारायण (जेपी) की अगुवाई वाली छात्र आंदोलन में बढ़ोतरी, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ शामिल हो गए. पुसू ने बिहार छात्र संघर्ष समिति का गठन किया था, जिसने लालू प्रसाद को राष्ट्रपति के रूप में आंदोलन दिया था. आंदोलन के दौरान प्रसाद जनवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता के करीब आए और 1977 में लोकसभा चुनाव में छपरा से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नामित हुए, बिहार राज्य के तत्कालीन राष्ट्रपति जनता पार्टी और बिहार के नेता सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने उनके लिए प्रचार किया. जनता पार्टी ने भारत के इतिहास में पहली गैर-कांग्रेस सरकार बनाई और 29 साल की उम्र में, वह उस समय भारतीय संसद के सबसे युवा सदस्यों में से एक बन गए. उन्होंने सफलतापूर्वक 1980 में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा और बिहार विधान सभा के सदस्य बने. 1985 में वह बिहार विधानसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए थे. बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद लालू प्रसाद यादव 1989 में विपक्षी बिहार विधानसभा के नेता बन गए. इसेके अलावा लालू यादव 1990 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1995 में भी भारी बहुमत से विजयी रहे. 1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी बना ली.

राजनीतिक जीवन की बात करें तो उनका राजनीतिक जीवन कई उतार चढ़ाव से भरा पड़ा है. विधायक के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले लालू यादव बिहार के गद्दी पर दो बार बैठे. इसके अलावा एक बार लोकसभा सांसद रहे और एक बार राज्य सभा सांसद, एक बार केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं. करीब-करीब बिहार की राजनीति में तीन दशक से एक प्रमुख चेहरा रह चुके हैं  लालू यादव.लालू प्रसाद यादव यादव 1990 से लेकर 2005 तक अकेले अपने दम पर बिहार के सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे जिसके मुख्य कारण मुस्लिम-यादव के ठोस जनाधार और अन्य पिछड़ी जातियों के सहयोग से अपनी चुनावी रणनीति किसी तरह बनाए रखने में लालू कामयाब होते रहे. आज भी लालू प्रसाद यादव के पास एक मज़बूत जनाधार है बिहार के अंदर जो और किसी दल या नेता के पास नहीं है जिसका उदाहरण 2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में दिखाई दिया है और फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में जब-जब लालू यादव कमज़ोर हुए और फिर खुद को किंगमेकर के रूप में दिखाया के अब भी लालू यादव के पास जनाधार है .

बहरहाल लालू बिहार की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है. अग छह साल बाद उनका छपरा आगमन हुआ तो इसमें दो राय नहीं है कि इसके सियासी मायने हैं.

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