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महागठबंधन को लेकर सियासत तेज, मुख्यमंत्री की दावेदारी पर दरार के संकेत

महागठबंधन को लेकर सियासत तेज, मुख्यमंत्री की दावेदारी पर दरार के संकेत

Patna: कोरोना संक्रमण के बीच बिहार में विधानसभा के चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गयी है. बिहार की हर राजनीतिक पार्टियां अपने  हिसाब से तैयारी में जुट गयी है। बिहार में एक तरह NDA का गठबंधन है तो दूसरी तरफ महागठबंधन.  एक तरफ जहां NDA एकजुट दिख रही है वहीं महागठबंधन में गांठ ही गांठ नजर आ रही है। महागठबंधन के घटक दलों में ही आपस में ही खींचातानी  देखने को मिल रही है। हर नेता अपनी डफली ,अपनी राग अलाप रहे  हैं आख़िर इसके पीछे क्या वजह है जानिये इस रिपोर्ट में.

महागठबंधन में सबसे बड़ी भूमिका में आरजेडी है। उसके बाद कांग्रेस, रालोसपा, हम और वीआईपी है। छोटे सहयोगी दल राजद पर अभी से दबाव बनाना शुरु कर दिया है. जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी जैसे नेताओं ने तेजस्वी  के राजनीति की हवा निकलने की सोच ली है. मांझी ने तो खुल कर तेजस्वी पर सवाल खड़े किये हैं वहीं उपेंद्र कुशवाहा, कांग्रेस और मुकेश सहनी भी अंदर ही अंदर  राजद पर दबाव डाल  रही है। हालांकि अभी बिहार विधानसभा चुनाव में समय है लिहाजा कोई भी पार्टी अभी जल्दीबाजी नहीं करना चाह रही है लेकिन महागठबंधन  के  राजनेताओं की बेचैनी साफ़ नजर आ रही है। बीजेपी का नीतीश  कुमार के नेतृत्व में  चुनाव में उतरना तय है. वहीं दूसरी ओर महागठबन्धन का चेहरा कौन होगा इस पर अभी भी एकमत नहीं है. राजद जहां तेजस्वी यादव को मुख्यमत्री कैंडिडेट घोषित कर चुका है वहीं महागठबंधन में चुनाव के नेतृत्व को लेकर और  सीट शेयरिंग को लेकर तनातनी है।

आपको बता दें कि 2015 विधानसभा चुनाव के  कुल 243 सीटों में आरजेडी  ने 101 सीटों पर, जेडीयू  ने भी 101 सीटों पर और कांग्रेस ने करीब 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार जेडीयू के महागठबंधन छोड़ने से चुनावी समीकरणों में बदलाव देखने को मिल रहा है जिसका  नतीजा है कि महागठबंधन टूटने की आशंका जताई जा रही है. अब जेडीयू के छोड़ने के बाद 101 सीटों को लेकर जद्दोजहद हो रही है. खबरें आ रही है कि 2020 विधानसभा चुनाव में आरजेडी  करीब 150  सीटों पर, कांग्रेस भी करीब 50  सीटों  पर अपनी दावेदारी पेश कर रही है  और अन्य दलों को बाकी बचे 40 सीटों में ही संतुष्ट होना पड़ेगा. इसी को लेकर महागठबंधन के सहयोगी  पार्टी  नाखुश नजर आ रही है. यही एक वजह है कि महागठबंधन की बिखरने की आशंका जताई जा रही है.


आपको बता दे कि इस बार आने वाले अक्टूबर और नवंबर में  बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसको लेकर सभी राजनैतिक पार्टियां एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति करने में लगी  है।  वहीं  दूसरी ओर कोरोना के चलते राज्य में गहमा गहमी का माहौल बनते जा रहा है. अब ऐसे में प्रवासी मजदूर और गोपालगंज वारदात ने विपक्ष को एक मुद्दा दे दिया है  जिसको लेकर तेजस्वी सरकार को घेर रहे हैं लेकिन नीतीश सरकार  का कहना है की विपक्ष जात और लाश की राजनीति कर रही है. आरोपों प्रत्यारोपों के दौरान बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर घोषणा की है कि वो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी वहीं महागठबंधन की ओर से ऐसी कोई बात सामने नहीं आये हैं लेकिन सूत्रों के हवाले से जो खबरें आ रही उससे ये जाहिर है की महागठबंधन की तरफ से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ी जायेगी.

बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव को गंभीरता से लेते हुई चुनावी रैलियां और जनता के बीच संपर्क साधने का सिलसिला तेज कर दिया है. बीजेपी की तरफ से एलान  किया गया है की गृह मंत्री अमित शाह 7 जून को आगामी चुनाव को लेकर जनता से वर्चुअल रैली के जरिये जुड़ेंगे. ऐसे में विपक्ष बौखला गया है और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा है की  हम 7 जून को गरीब मजदूर दिवस मनाएंगे और थाली चमच भी पीटेंगे ताकि सोई हुए सत्ता पक्ष को जगाया जा सके. 


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