मोदी से नफरत,अटल से अटूट मुहब्बत,नीतीश के इस सियासी खेल के पीछे छिपे हैं कई राज,यह राजनीतिक चाल है या फिर कुछ और.?.पढ़िए इनसाइड स्टोरी

पटना- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पांचवी पुण्यतिथि पर उनके समाधि स्थल सदैव अटल जा कर श्रद्धांजलि अर्पित की. सियासी हलकों में चर्चा होने लगी है कि नरेंद्र मोदी से दूरी और अटल को श्रद्धांजलि देने नीतीश के दिल्ली जाने का कारण क्या है.पांच साल में पहली बार नीतीश श्रद्धासुमन अर्पति करने दिल्ली पहुंचे तो राजनीतिक कयास भी लगाए जाने लगे.नीतीश को अटल बिहारी वाजपेयी के याद आने का कारण क्या है.
जब पहली बार सीएम बने नीतीश
जब जार्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर नीतीश ने 1994 में समता पार्टी बनाई. 1996 में लोकसभा पहुंचे और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने . 2003 में अपनी पार्टी को जेडीयू को मर्ज कर दिया. साल 2000 याद कीजिए...अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, नीतीश अटल सरकार में कृषि मंत्री. अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर भाजपा के समर्थन से समता पार्टी के नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने. बहुमत परीक्षण से पहले ही नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों को हो नीतीश ने दोहराया था. उन्होंने कहा था कि वह जोड़-तोड़ से सरकार नहीं बनाना चाहते हैं. नीतीश ने 324 सदस्यीय सदन में 151 विधायकों के समर्थन का दावा किया था. आडवाणी, जॉर्ज और राज्यपाल विनोद चंद्र पांडे पर सवाल खड़े हुए.आखिर में राज्यपाल ने नीतीश से विश्वास मत हासिल करने को कहा. 10 मार्च को नीतीश को लगा कि वह लालू को सत्ता के खेल में शिकस्त नहीं दे पाएंगे तो उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा देने का फैसला किया.
अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश को निराश नहीं किया
नीतीश को दिल्ली लौटना पड़ा लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश को निराश नहीं किया. उन्हें कृषि मंत्री बनाया और बाद में रेल मंत्री भी. साल 2005 में नीतीश को बिहार की सत्ता मिली तब से कुछ काल खंड को छोड़ दें तो मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए हैं. सहयोगी बदल गए पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हीं रहे.
क्यों पीएम मोदी के सामने जाने से कतराते हैं नीतीश
बिहार से निकलकर नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को शिकस्त देने के इरादे से विपक्षी एकता के लिए प्रयास कर रहे हैं. इस सब के बीच नीतीश कुमार और उनकी पार्टी बिहार में महागठबंधन की सरकार के गठन के बाद से ही भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी की खिलाफत कर रही है. बता दें कि नीतीश कुमार विपक्षी एकता के चक्कर में पीएम नरेंद्र मोदी के सामने जाने से भी अपने आप को रोक रहे हैं. वह एक तरफ तो पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा नई संसद भवन के उद्घाटन में जाने से मना कर चुके हैं वहीं दूसरी तरफ आज नीति आयोग की बैठक जिसकी अध्यक्षता पीएम नरेंद्र मोदी कर रहे थे उसमें भी शामिल नहीं हुए. प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम से नीतीश की दूरी कोई नई बात नहीं है वह जब-जब एनडीए से अलग हुए हैं और बिहार में सत्तासीन हुए हैं. सबसे पहले पीएम मोदी के कार्यक्रमों से ही दूरी बनाते हैं. कोलकाता में इससे पहले 2022 के अगस्त के महीने में नीति आयोग की तरफ से आयोजित बैठक में भी नीतीश नहीं पहुंचे थे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथग्रहण समारोह से भी नीतीश ने दूरी बना ली थी. भाजपा का कहना था कि नीतीश ने दो बार पार्टी को धोखा दिया है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वह नजरें मिला नहीं पा रहे हैं. सुशील मोदी तो साफ कह रहे हैं कि कम विधायक होने के बाद भी जिसने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया उसको धोखा देने के बाद अब वह नजरें मिलाने से बच रहे हैं. वहीं राजनीतिक पंडितों का कहना है कि नीतीश कुमार पहले मोदी के काम की तारीफ करते रहे हैं और अब विपक्षी खेमे के साथ जाने की वजह से उन्हें हर बात पर मोदी का विरोध करना पड़ रहा है ऐसे में वह मोदी के सामने आने से बचते हैं.
शायद ही कभी ऐसा हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो मिनट से ज्यादा मीडिया से बात करें और पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की चर्चा न करें. पिछली बार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ जनादेश लेने के बाद जब भाजपा में आए, तब भी उनका नाम लिया. जब भाजपा के साथ सरकार चलाने के लिए जनादेश लेने के बाद अचानक वापस राजद के साथ जाकर महागठबंधन सरकार के मुखिया बने, तब भी उनका नाम लिया. जब-जब वह भाजपा की बात करते हैं तो यह जरूर कहते हैं कि वह पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत मानते हैं और अटलजी भी उन्हें बहुत मानते थे. मंगलवार 15 अगस्त को गांधी मैदान में स्वतंत्रता दिवस समारोह के मंच से भी उनका नाम लेना नहीं भूले. बुधवार को दिल्ली पहुंचने पर भी नीतीश ने अटलजी से अपने रिश्तों की बात कही. विपक्षी एकता की बेंगलुरु बैठक से लौटने के बाद जब उनके गुस्सा होने की बात आ रही थी तो भी नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने आने पर अटलजी का नाम लिया था. तब भी उन्होंने कहा था कि अटलजी वाली भाजपा नहीं रही. सीएम नीतीश कुमार ने पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती पर पटना में उनकी आदमकद प्रतिमा का 2019 में अनावरण किया था.
नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं
वहीं राजनीति के पंडितों का कहना है कि नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं वह कोई भी बात बिना किसी वजह के नहीं करते हैं. नीतीश कुमार जब अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफों में पुल बांध रहे हैं तो इसके पीछे की वजह उनका भाजपा के साथ लंबे समय तक बिताए वक्त को कहीं ना कहीं औचित्य सिद्ध करने की कोशिश है. वह यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो अटल जी के युग वाली भाजपा में थे जहां सहयोगियों का सम्मान था. तब वहां हिन्दू-मुस्लिम नहीं होता था. ये अलग बात है कि वह नरेंद्र मोदी काल वाली भाजपा के साथ भी हाल के दिनों तक थे.वहीं नीतीश कुमार विपक्षी एकता की कवायद में लगे हैं. वह विपक्षी एकता के सूत्रधार बनना चाहते हैं. वह विपक्षी दलों को बताना चाहते हैं कि उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से सहयोगी दलों को साथ कैसे लेकर चलना है यह सीखा है.यही वजह है कि नीतीश कुमार बार-बार यह कहते हैं कि अटल जी उन्हें बहुत मानते थे, उन्हें सम्मान देते थे. मतलब नीतीश कुमार भाजपा नेता का गुणगान कर भाजपा विरोधी दलों को एक करने की कोशिश कर रहे हैं.
भाजपा में विभाजन करने का प्रयास करते हैं नीतीश-सुशील मोदी
वहीं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार ने नीतीश कुमार पर बड़ा हमला करते हुए कहा कि नीतीश कुमार आज जो भी हैं अटल बिहारी वाजपेयी के कारण ही हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में लंबे समय तक मंत्री रहे. नीतीश कुमार जब आडवाणी और अटल बिहार वाजपेयी की प्रशंसा करते हैं तो इनके मन में श्रद्धा भाव कम होता है और भाजपा में विभाजन करने का प्रयास करते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के बाद सुशील मोदी मीडिया से कहा कि नीतीश कुमार कभी नरेंद्र मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी की तुलना करते हैं तो कभी नरेंद्र मोदी बनाम लाल कृष्ण आडवाणी. इसमें वो कभी सफल नहीं होंगे क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरा को नरेंद्र मोदी आगे बढ़ा रहे हैं. अगर आप अटल बिहारी वाजपेयी का समर्थन करते हैं तो नरेंद्र मोदी का भी करना होगा. नरेंद्र मोदी कोई अलग नहीं हैं.नीतीश कुमार पर हमला करते हुए सुशील मोदी ने कहा कि जब आडवाणी जी को एनडीए का प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया तो नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने इस फैसले के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. आज सबसे बड़े समर्थक बन गए.