जातीय गणना पर SC में सुनवाई:पटना हाईकोर्ट ने हटाई थी रोक, कुछ देर में कोर्ट सरकार रखेगी अपनाा पक्ष

दिल्ली- जातीय गणना पर सुप्रीम कोर्ट में  सोमवार को सुनवाई होगी.  इससे पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के फैसला पर रोक लगाने से मना कर दिया था.  सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातीय गणना का काम 80 फीसदी पूरा हो चुका है. हाईकोर्ट से फैसले के बाद सरकार ने जातीय गणना का बचा काम पूरा करने के आदेश दिए थे. जातीय जनगणा को बचा हुआ काम काम पूरा हो चुका है. 

पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार चाहे तो गणना करा सकती है, इसके बाद नीतीश सरकार ने सभी डीएम को आदेश दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में जातीय गणना के बचे काम पूरा करें. 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहना है कि बिहार सरकार जातीय गणना नहीं, सिर्फ सिर्फ लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से संबंधित जानकारी लेना चाहती है, ताकी उनके लिए योजना बनाई जा सके.बिहार में जातीय गणना की शुरुआत सात जनवरी से हुई थी. पहले चरण का सर्वेक्षण पुरा हो  गया . दूसरे फेज का काम 15 अप्रैल से शुरू किया गया था. 

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बिहार के राजनीतिक हालात को देखें तो जेडीयू को आरजेडी से पिछड़ने का डर सता रहा है क्योंकि पिछड़ों की सियासत करनेवाली आरजेडी इस मसले पर शुरू से मुखर है. नीतीश ने भले ही अति पिछड़ों के बीच पकड़ बनाने की कोशिश की लेकिन वहां भी बीजेपी की नजर है. पिछले 2 दशकों से सियासत में ओबीसी का दबदबा बढ़ा है. बिहार में ओबीसी के बीच आरजेडी का प्रभाव अच्छा खासा रहा है, नीतीश के लिए जातीय जनगणना की मांग उठाना राजनीतिक मजबूरी भी है.     

देश में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी. उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे. तब देश आबादी 30 करोड़ के करीब थी  अब तक उसी आधार पर यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं. 1951 में जातीय जनगणना के प्रस्ताव को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि इससे देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है.

 आजाद भारत में 1951 से 2011 तक की हर जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े ही जारी किए गए. मंडल आयोग ने भी 1931 के आंकड़ों पर यही अनुमान लगाया कि ओबीसी आबादी 52% है. आज भी उसी आधार पर देश में आरक्षण की व्यवस्था  है. जिसके तहत ओबीसी को 27 फीसदी , अनुसूचित जाति को 15 फीसदी तो अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी आरक्षण मिलता है