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नवाज शरीफ की बातों में कितनी शराफत? कंगाली से घिरने पर आई भारत की याद! 'शरीफ' की 'शराफत' पर भारत भरोसा करे भी तो कैसे?

नवाज शरीफ की बातों में कितनी शराफत? कंगाली से घिरने पर आई भारत की याद! 'शरीफ' की 'शराफत' पर भारत भरोसा करे भी तो कैसे?

डेस्क-  नवाज शरीफ पाकिस्तान लौट आए हैं. दुनियाभर में कंगाल देश के नाते कुख्यात हुए भारत के पड़ोसी इस्लामी देश की सुर बदले से दिख रहे हैं. भूखमरी के कगार पर पहुंची अधिकांश गरीब जनता के दुख को  दूर करने में नाकाम रहे पाकिस्‍तान के अरबपति नेताओं के बोल अचानक नरम कैसे पड़ गए? पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अब भारत के साथ बातचीत की इच्‍छा क्यों जताने लगे? यहीं नहीं नवाज शरीफ के बाई और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भी इस्लामाबाद में शरीफ ने ‘विकास’ की चिंता करते हुए, भारत के साथ बात करने की इच्छा जताई हैं. साल 2019 से दोनों देशों के बीच बंद पड़ी कैसी भी बातचीत के लिए शरीफ की बातों में आखिर शराफत कितनी है? वहीं  चौतरफा बदहाली का त्रास झेल रहे पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की वापसी के गहरे निहितार्थ हैं. जेल की सजा काट रहे नवाज इलाज के लिये ब्रिटेन गये थे और चार साल आत्मनिर्वासन में रहने के बाद पाकिस्तान लौटे हैं. ऐसे में पाकिस्तान  में इमरान खान के प्रभाव को कम करने के लिये उनकी वापसी सेना को मुफीद लगती है, जिनका उपयोग जनवरी में पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव में इमरान खान का प्रभाव कम करने के लिये किया जा सकता है.

पाकिस्तान के मौजूदा हालात अच्छे नहीं हैं,आटे-चावल जैसी खाद् वस्तुओं के लेने को चौतरफा भगदड़ मची हुई है. कायदे से देखें तो ये देन पाकिस्तान की मौजूदा और पूववर्ती हुकूमतों के गलत फैसलों और बदले की भावनाओं से लबरेज विभाजनकारी नीतियों की है. हिंदुस्तान को परेशान करने के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया, चीन से मोटा कर्ज लिया, भारत को नीचा दिखाने के लिए, उनसे हाथ मिलाया, नेपाल को हमारे प्रति भड़काया, अन्य पड़ोसी मुल्कों से भी मुखालफतें की, इन सबको करने में उनका अच्छा खासा धन भी खर्च हुआ.

बता दें नवाज शरीफ 14 साल की सजा काटते हुए चिकित्सा उपचार हेतु 2019 में लंदन चले गये थे. अब पाकिस्तान मुस्लिम लीग सुप्रीमो 73 वर्षीय अनुभवी राजनेता नवाज शरीफ को उम्मीद है कि वे किसी तरह प्रधानमंत्री के रूप में चौथी पारी खेल सकें. उनके आत्मविश्वास की वजह है कि पाकिस्तान की राजनीति का पर्दे के पीछे संचालन करने वाली सेना से फिलहाल उनके रिश्ते सौहार्दपूर्ण हैं. सेना के जनरलों से उनके रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ जब पिछले चुनाव में उन्होंने सेना पर अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी इमरान खान का समर्थन करने का आरोप लगाया था लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि सेना से टकराव के चलते इमरान खान इन दिनों जेल में हैं.पाकिस्तान में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ी है. इमरान की लोकप्रियता कम करने के लिये ही लंदन से नवाज शरीफ को पाकिस्तान वापस बुलाया गया है. उन्हें अब कोर्ट से भी राहत मिल गई है. इमरान सरकार गिरने के बाद 2022 से इस साल की शुरुआत तक प्रधानमंत्री के रूप में काम करने वाले शहबाज शरीफ को अनुभवी राजनेता नवाज शरीफ की वापसी के बाद आम चुनाव में कुछ बढ़त जरूर मिलेगी.

गृहमंत्रालय के अधिकारियों की माने तो पाकिस्तानी हुकूमत घुटनों पर है. गिड़गिड़ा अभी शुरू हुआ, आगे और गति बढ़ेगी. पड़ोसी एक बात अच्छे से समझ गए हैं कि भारत से पंगा लेने का मतलब है पूरी दुनिया से बैर-बुराई कर लेना, और भारत से संबंध अच्छे रखने का मतलब है दुनिया के देशों के साथ खुश रहना. तभी, शहबाज शरीफ भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहते हैं. वरना, वो इतने शरीफ नहीं हैं कि भारत के सामने खुद को छुकाएं. हालांकि, भारत उनके झांसे में एकाएक तो नहीं आएगा.रही बात बातचीत करने की, तो रास्ते बंद कभी थे ही नहीं? दरवाजे पहले भी खुले थे, आज भी खुले हैं.

हालाकि पाकिस्तान अपने हरकतों से बाज नहीं आ रहा. उसने यूएनओ में दो तीन दिन पहले हीं काश्मीर राग अलापा तो भारत ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उसकी यूएनओ में काफी छिछालेदर हुई थी.

 पाकिस्तान को सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है जिसके मूल में पर्दे के पीछे से खेली जाने वाली पाकिस्तान सेना के जनरलों की बड़ी भूमिका भी रही है. जनरल अय्यूब खान से लेकर जनरल जिया उल हक और जनरल मुशर्रफ जैसे सेना के नायक लोकतंत्र को बेदखल कर बाकायदा सत्ता सुख भोगते रहे. बढ़ते कर्ज के दबाव व रिकॉर्ड तोड़ महंगाई से जूझते पाकिस्तान को राहत देने के लिये नवाज शरीफ ने भारत को लेकर जो बयान दिया है उसके गहरे निहितार्थ हैं. उन्हें इस बात का अहसास है कि भारत एक पड़ोसी के रूप में मददगार हो सकता है. तभी भारत को लेकर परोक्ष रूप से उन्होंने कहा कि कोई भी देश अपने पड़ोसियों से लड़ते हुए प्रगति नहीं कर सकता.

पहले के अनुभवों के मद्देनजर भारत एक सतर्क प्रतिक्रिया ही देगा. लेकिन यह बात तय है कि भारत की सीमाओं पर आतंकवादियों की सक्रियता और नशे की जहर की खेप भेजने की साजिश बंद किये बिना दोनों देशों के संबंध सामान्य होना मुश्किल ही है. इसकी वजह यह है कि जब भी पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकारों ने भारत के साथ संबंध बेहतर बनाने की कोशिश की, सेना को यह रास नहीं आया.पूर्ववर्ती निजामों ने भी हिंदुस्तान की हस्ती को मिटाने के लिए बम-बारूद बनाते-बनाते कंगाल हो गए.उन्होंने बजट का अधिकांश पैसा इसी में खर्च किया और आवाम को छोड़ दिया भुखमरी के लिए सकड़ों पर? लोग भूख से कराह रहे हैं, दाने-दाने को तरस रहे हैं. चारों ओर से बर्बाद होते देख पाकिस्तान को, तब उनके पूर्व प्रधानमंत्री को अक्ल आई हैं कि अब भी समय है भारत के समक्ष सरेंडर कर दो. 

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