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बेतिया में मिट्टी से बने देशी फ्रिज का बजा डंका, 48 घंटे तक ठंडा रहता है पानी, आज आर्डर किए तो एक साल बाद मिलेगा

बेतिया में मिट्टी से बने देशी फ्रिज का बजा डंका, 48 घंटे तक ठंडा रहता है पानी, आज आर्डर किए तो एक साल बाद मिलेगा

BETTIAH : जिले के बगहा एक प्रखंड के बनचहरी निवासी 40 वर्षीय हरि पंडित की मिट्टी से पानी को ठंढा रखने के लिए बनाई हुई जार की मांग स्थानीय स्तर से लेकर राज्य की राजधानी पटना तक हो रही है। चुकी बगैर बिजली की खपत यह जार पानी को 48 घन्टे तक फ्रिज के जैसे पानी को चिल्ड रखता है। वैसे तो मिट्टी के मटके में पानी रखने से पानी को ठंढा रहते हुए तो देखा गया है। लेकिन पहली बार हरि ने फ्रिज के समकक्ष मिट्टी से पानी के जार को तैयार कर एक अनोखी मिसाल पेश की है। जिसकी चर्चा बहुत दूर तक है। 


सालभर का आर्डर 

बता दें कि बगहा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी सह समाजसेवी जय मंगल सिंह को यहां के हरि पंडित के द्वारा भेंट के रूप में देसी फ्रिज दिया गया। जब उन्होंने इस देसी फ्रिज का मटका इस्तेमाल किया तो इसमें 48 घंटे तक पानी एकदम ठंडा था। उन्होंने इस मटका की प्रशंसा करते हुए इसकी तस्वीर सोशल साइट पर डाल दिए। उसके बाद सोशल साइट के माध्यम से पश्चिम चंपारण जिला पधाधिकारी कुंदन कुमार ने इसको संज्ञान में लिया। उन्होंने भी इस देसी फ्रिज का काफी गुणगान किया और कहा की आज पूरे बिहार में बनचहरी गांव के देसी फ्रिज का नाम हो रहा है। पूरा परिवार एक साथ मिलकर काम को करते हैं। एक दिन में ही एक ही देसी फ्रिज बनकर तैयार हो पाता है। अब इनके पास साल भर का ऑर्डर है जिसे पूरा करने में हरि पंडित का पूरा परिवार जुट गया है। साथ ही पूरा परिवार देश के प्रधानमंत्री का सपना लोकल फॉर भोकल का सपना भी पूरा कर रहा है। इस काम को बढ़ावा देने के लिए समाजसेवी सह बगहा विधानसभा के पूर्व कौंग्रेस प्रत्याशी जय मंगल सिंह ने भी बढ़ावा देने मे काफी सहयोग किया है। 

प्रधानमंत्री से मिली प्रेरणा 

इस संबंध मे मुख्य कारीगर हरि पंडित ने बताया की उनका यह पुश्तैनी कारोबार है। जिसे उनके दादा परदादा करते चले आ रहे हैं। उन्हें भी यह कारोबार पसंद आया और ये करने लगे। उन्होंने बताया की मै भी आम दिनों की तरह मिट्टी के दीये, मटका, घड़ा, पतुकी, ग्लास वगैरह बना कर बेचा करता था। लेकिन इन बर्तनों के समकक्ष बाजार में आये कागज एवं प्लास्टिक के बर्तनों के आ जाने से मिट्टी के बर्तनों की डिमांड घटती जा रही है। चुकी परिवार के पालन पोषण का यहीं एक मात्र जरिया है। बाजार में मिट्टी के बने बर्तनों की कम होते डिमांड को देखते हुए प्रधानमंत्री के आत्म निर्भर भारत को आत्मसात करते हुए मैंने निर्णय लिया की क्यों न मिट्टी के किसी ऐसे बर्तन का निर्माण किया जाय। जो अपने आप में अजूबा हो। वहीँ आम आदमी से लेकर सब के लिए फायदे मंद और सस्ता हो। बस पानी को ठंढा करने के लिए मिट्टी के जार के निर्माण की बात सोची और काफी प्रयास के बाद आप के सामने है। हरि ने बताया की इस जार की खासियत है की इसमें रखा हुआ पानी 48 घन्टे तक फ्रिज में रखे पानी की तरह बिल्कुल चिल्ड (ठंढा) होता है। पानी खराब नहीं होता। तथा मिट्टी के इस जार में पानी को रखने के बाद पानी का स्वाद भी बदल जाता है। इससे आम आदमी को बिजली और फ्रिज की आवश्यकता नहीं होती है। जिससे आर्थिक बचत होती है। 

छांव में सुखाया जाता है

साथ ही उन्होंने यह भी बताया की यह जार साधारण मिट्टी से हीं बनाया जाता है। लेकिन इसके लिए मिट्टी के गुथने का तरीका अलग है। इसके निर्माण की मिट्टी को गुथने में और के वनिस्पत अधिक समय लगता है। पूरे एक दिन में एक हीं जार तैयार हो पाता है। लेकिन इसे पूर्ण तैयारी में 15 दिन का समय लगता है। चुकी निर्माण के बाद 14 दिनों तक सिर्फ छांव में सुखाया जाता है। इसे न आग में पकाया जाता है और न हीं धूप में सुखाया जाता है। काफी सावधानी पूर्वक देखरेख में छांव में सुखाने का काम किया जाता है। तब इसका रंग रोगन किया जाता है। जार में पानी डालने के लिए ऊपर एक ढक्कन होता है। तथा पानी निकालने के लिए नीचे में एक नल भी लगाया जाता है। ताकि जार को बगैर हिलाए डुलाए पानी को आसानी से निकाल लिया जाय।

350 रुपये की आती है लागत

वे बताते हैं की मिट्टी और मेहनत को देखा जाय तो एक जार के निर्माण में 350 रुपये की लागत आती है। और इसे बाजार में उनके द्वारा 500 रुपये में बेचा जाता है। उन्होंने बताया की पहले उन्होंने स्वयं इसे बनाकर इसमे पानी रख इस पर एक्सपेरिमेंट किया। तब बाजार में उतारा। अभी मुश्किल से डेढ़ माह हुए इसको बनाते हुए। अभी तक 25 से ज्यादा जार वे बेच चुके हैं। जो राज्य की राजधानी पटना तक के लोग ले गए हैं। तथा पटना से हीं 150 जार बनाने के और ऑर्डर मिले हैं। जिसकी तैयारी में वे लगे हुए हैं। इनका कहना है की अगरज्यादा संख्या में ऑर्डर मिलता है तो मांग के अनुसार और अधिक मजदूर की भी आवश्यकता होगी। इससे कुछ लोगो को रोजगार भी मिलेगा। जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अहम मदद करेगा।

बेतिया से आशीष कुमार की रिपोर्ट 

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