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पूर्णिया में नाव से जान हथेली पर रखकर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं शिक्षक, हादसे की जताई आशंका

पूर्णिया में नाव से जान हथेली पर रखकर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं शिक्षक, हादसे की जताई आशंका

PURNEA : पूर्णिया के अमौर में शिक्षकों को जान हथेली पर रखकर विद्यालय जाना पड़ रहा है। कनकई नदी के कारण अमौर प्रखंड मुख्यालय से लगे हिस्से एक तरफ जबकि इसके 10 से अधिक पंचायत नदी के दूसरी तरफ हैं। इन पंचायतों में 12 के करीब प्राइमरी , मिडिल और हाईस्कूल भी हैं। अमौर के इन पंचायतों में बसे सरकारी विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों की स्थिति जिंदगी  संघर्षपूर्ण और खतरे से भरी है। अमौर के इन पंचायतों में बसे विद्यालयों तक जाने के लिए शिक्षकों को रोजाना खतरे से भरे नाव का सफर पूरा करना पड़ता है। घंटे भर के इंतेजार के बाद नाव का सफर शुरू होता है। शिक्षक नाव पर बैठकर कनकई नदी की तेज लहरों को पार करते हुए नदी के उस पार खाड़ी बसौल गांव पहुंचते हैं। 

शिक्षक बताते हैं कि नदी को देखते हुए 2011 में खाड़ी पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया था। मगर आज तक नहीं बनाया जा सका। ऐसे में कनकई की तेज लहरों को पार करने क्या कोई दूसरा विकल्प न होने की वजह से नाव ही नदी के उस पार बसे पंचायतों के विद्यालयों तक पहुंचने का एक मात्र सहारा है। शिक्षक बताते हैं की  जब तक नाव का सफर पूरा नहीं हो जाता, उन्हें अपनी जान का खतरा सताता रहता है। आने जाने का कोई दूसरा साधन न होने की वजह से नाव की सवारी करते हुए उन जैसे सभी शिक्षकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

शिक्षक कहते हैं कि बीते दिनों ही पटना के दानापुर में BPSC पास शिक्षक गंगा नदी में बह गए। किसी भी वक्त उनके साथ इस तरह की  घटना हो सकती है। वे बताते हैं कि कई बार नाव दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। 2 साल पहले कनकई नदी की तेज धार के कारण नाव ने अपना संतुलन खो दिया था, जिसके बाद वो खाड़ी पुल से जा टकराई थी। उस रोज बाल -बाल लोगों की जान बच गई। वहीं दो महीने पहले ही एक शिक्षिका नाव से उतरते वक्त नदी में बहने लगी थी। जिसे बाद में दूसरे शिक्षकों ने जान पर खेलकर बचाया था। वहीं कनकई नदी का पानी बढ़ जाने पर शिक्षको को पहाड़ीनुमा अप्रोच पथ की चढ़ाई कर मुख्य मार्ग तक जाना होता है। इनके लिए ये सबकुछ बेहद संघर्षपूर्ण और चुनौतियों से भरा है।

शिक्षक बताते हैं कि उन्हें अपने विद्यालयों तक पहुंचने के लिए घंटे भर पहले निकलना पड़ता है। वहीं नाव के सफाई के लिए एक घंटे का इंतेजार करना पड़ता है। नाव की सवारी के कारण थोड़ी सी देरी पर अनुपस्थिति दर्ज हो जाती है। इस तरह की स्थिति अक्सर ही उनके सामने आती रहती है। सैलरी तक कट जाती है। इस तरह की तकलीफों का सामना उन्हें अक्सर ही करना पड़ता है।

पूर्णिया से अंकित कुमार झा की रिपोर्ट

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