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इस मंदिर में बीड़ी का चढ़ावा चढ़ाते हैं भक्त, नहीं किया ऐसा तो भुगतना पड़ता है गंभीर परिणाम, जानिए कब से चली आ रही है यह प्रथा

इस मंदिर में बीड़ी का चढ़ावा चढ़ाते हैं भक्त, नहीं किया ऐसा तो भुगतना पड़ता है गंभीर परिणाम, जानिए कब से चली आ रही है यह प्रथा

KAIMUR : आम तौर पर मंदिर में भक्त फल-फूल का चढ़ावा चढ़ाते हैं. लेकिन बिहार का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां चढ़ावे में बीड़ी चढ़ाने की प्रथा है। यह परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है। बड़ी बात यह है कि इस मंदिर में सिर्फ बिहार के ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य यूपी, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से भी लोग पहुंचते हैं और यहां बीड़ी चढ़ाते हैं।

बीड़ी चढ़ाकर पूजा की परंपरा वाला यह अनोखा मंदिर है कैमूर जिले में, जहां के भगवानपुर प्रखंड में 1400 फीट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है मुसहरवा बाबा मंदिर (Musharwa Baba Temple)। जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर 1400 फिट ऊंची पहाड़ी पर भभुआ अधौरा मुख्य मार्ग पर यह मंदिर स्थित है। लोगों की मान्यता है कि पहाड़ी घाटी चढ़ने से पहले और चढ़ने के बाद मुसहरवा बाबा को बीड़ी (Bidi Baba In Bihar) चढ़ाना जरूरी है. इससे उनके रास्ता में आने वाले हर प्रकार के विघ्न बाधा दूर हो जाता है और लोग अपनी यात्रा सुरक्षित करते हैं. जिनके पास बीड़ी चढ़ाने के लिए नहीं होता है, वह मुसहरवा बाबा के दान पेटी में बीड़ी चढ़ाने के लिए पैसा डालते हैं फिर आगे बढ़ते हैं।

दो दशक से अधिक समय से चल रही है परंपरा

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मुसहरवा बाबा के मंदिर में 22 सालों से पूजा-अर्चना किया जा रहा है. पुजारी ने बताया कि जो लोग चढ़ावा नहीं चढ़ा पाते हैं वे बाबा का प्रसाद लेकर और रुक कर ही जाते हैं. ऐसा नहीं करने वालों के साथ अमंगल होता है. इसलिए क्या आम क्या खास सभी बीड़ी चढ़ा कर ही या मत्था टेक कर ही आगे बढ़ते हैं, जिससे रास्ते मे कोई अनहोनी घटना ना हो।

आनेवाले लोगों में भी है दिखती है आस्था

पुजारी की बातों को यहां आनेवाले लोग भी पुष्टी करते हैं। एक व्यक्ति कि हम लोगों का प्रतिदिन इधर से आना जाना होता है. जब भी हम लोग पहाड़ की घाटी चढ़कर ऊपर आते हैं तो बाबा को बीड़ी चढ़ाकर थोड़ी देर रुक कर ही अपने कार्य के लिए जाते हैं। बीड़ी चढ़ाने से दिन अच्छा व्यतीत होता है. किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती है. अगर आगे कोई बाधा आने की स्थिति भी होती है तो वह यहीं पर समाप्त हो जाता है. यह काफी पुराना प्रचलन है


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