बिहार में सीट बंटवारे को लेकर इंडिया गठबंधन में फंसा पेंच, क्या कुछ सीटों की कुर्बानी देंगे नीतीश?

साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन में सीटों के बँटवारे पर चर्चा शुरू हो चुकी है. लोकसभा चुनाव 2024 की जैसे जैसे सरगर्मी तेज हो रही है वैसे वैसे सीट शेयरिंग को लेकर इंडिया गठबंधन में आवाज तेज होने लगी है. विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के बीच तरकश में तीर सजाए जाने लगे हैं.बिहार में विपक्ष को साझेदारी के लिए सीटों का बँटवारा करना होगा, यहां राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की महागठंबंधन की सरकार पिछले एक साल से सत्ता में है. इंडिया गठबंधन के बनने में सबसे ज्यादा मेहनत नीतीश कुमार ने किया है. जिस राज्य में जितने ज्यादा दल होंगे सीट शेयरिंग में कठिनाई होगी. सीट शेयरिंग को लेकर लालू नीतीश में सहमति नहीं बन पा रही है. बता दें बिहार में लोकसभा की 40 सीचे हैं, जिनमें अभी 16 सीटों का प्रतिनिधित्व अकेले जदयू करता है.बिहार में सीटों के बँटवारे का काम बेहद जटिल साबित हो सकता है. बिहार में कांग्रेस ने पहले ही 10 सीट पर चुनाव लड़ने का राग आलाप चुकी है. बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह ने कहा था कि कांग्रेस की अपेक्षा यही होगी कि जहाँ हमारा मज़बूत जनाधार है, जहाँ से बड़े नेता चुनाव लड़ते रहे हैं, वो सारी सीटें नीतीश और लालू कांग्रेस के लिए छोड़ें. कांग्रेस इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और हमें उचित जगह मिलनी चाहिए.
वहीं सीटों के शेयरिंग को लेकर सीपीआईएमएल का कहना है कि सीटों का बँटवारा बँटवारा साल 2020 के विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर होना चाहिए. सीपीआईएमएल ने सीटों के बँटवारे को लेकर अपना प्रस्ताव राजद के पास भेज दिया है.
जेडीयू का कहना है कि इंडिया गठबंधन की लड़ाई भाजपा से है.इसलिए सीटों के बंटवारे में कोई परेशानी नहीं होगी और सीटों के बँटवारे में कोई परेशानी नहीं होगी. इंडिया’ गठबंधन के नेता सक्षम हैं. सीटों के बँटवारे के मामले में बिहार रोल मॉडल बनेगा.
बता दें साल 2019 के लोकसभा चुनावों में किशनगंज की मात्र एक सीट पर कांग्रेस का झंड़ा लहराया था.जबकि भाजपा ने 17 सीटों पर अपना परचम लहराया था तो वहीं उस समय की साझेदार जदयू ने 16 सीट अपने कब्जे में किया था तो एलजेपी ने 6 सीटों पर कब्जा जमाया था.
राजद, जदयू और वामपंथी दलों के लिए सीटों के बँटवारे को अपने स्तर पर अंतिम रूप देना आसान नहीं दिखता है. कारण सीतामढ़ी, मधेपुरा, गोपालगंज, सिवान, भागलपुर और बांका लोकसभा सीटों का है, जहां साल 2019 में जेडीयू की जीत हुई थी, जबकि राजद दूसरे नंबर पर थी.दूसरी तरफ पटना साहिब और बेगूसराय जैसी लोकसभा सीटें भी हैं, जिसपर भाजपा ने कब्जा किया था. कोसी-सीमांचल की सुपौल लोकसभा सीट पर साल 2019 में जेडीयू ने 56% वोट के साथ जीत दर्ज की थी. कांग्रेस की रंजीता रंजन ने क़रीब 30% वोट हासिल किए थे. रंजीत रंजन इलाक़े की बड़ी नेताओं में मानी जाती हैं.रंजीता रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सांसद हैं और पहले लोकसभा सांसद रह चुकी हैं. ऐसे में साझेदारी के तहत सुपौल सीट पर किस पार्टी को चुनाव लड़ने का मौक़ा मिलेगा. इंडिया गठबंधन की मुंबई में हुई विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि अपना कुछ नुक़सान करके भी वो इंडिया को जिताएंगे.
नीतीश की कोशिश रंग लाई और इंडिया महागठबंधन बन गया तो हो सकता है नीतीश कुमार कुमार अपने कुछ सीटों की कुर्बानी दे दें . अगर वो अपनी सीटिंग सीट छोड़ते हैं तो इस पर भी राजनीति विरोध होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता.