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इस्तीफा लिखना शुरु किया तो छलक उठे आंसू और छूट गया 32 वर्षों का साथ...

इस्तीफा लिखना शुरु किया तो छलक उठे आंसू और छूट गया 32 वर्षों का साथ...

DESK: जब रघुवंश प्रसाद सिंह इस्तीफा लिखने के लिए कलम उठाई तो उनके हाथ कांपने लगे. पेपर पर जैसे ही लिखना शुरु किया तो आंखों से आंसू छलक उठे. आंसू का एक एक बूंद कागज पर ऐसे गिरा जिसने पूरे कागज को गीला कर दिया. यह बातें शिवहर राजद के ज़िलाध्यक्ष ठाकुर धर्मेंद्र सिंह ने बताई है. जिनके माध्यम से रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपना इस्तीफा सौंपा. 

यहां समझना यह जरुरी है कि पार्टी से इस्तीफा देना कोई बड़ी बात तो है नहीं और रघुवंश प्रसाद सिंह कोई पहले नेता तो हैं नहीं जो ऐसा कर रहे हैं. कई सारे नेता चुनाव के पहले ऐसा करते हैं और खुशी-खुशी दूसरे पार्टी में जाते हैं और पुरानी पार्टी पर ऐसे शब्दों के बाण छोड़ते हैं मानों उस पार्टी से उनका कभी कोई नाता रहा ही न हो. मन में यह सवाल जरुर उठ रहे होंगे कि रघुवंश प्रसाद सिंह ने उन लोगों से कुछ सीखा नहीं क्या?

इसके लिए आपको रघुवंश प्रसाद सिंह के बार में जानना होगा. आज जब रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफे की खबर आई थी तो इसे बिग ब्रेकिंग करके मैने भी पढ़ा क्योंकि यह बिहार की सियासत की सबसे बड़ी खबर थी. एक-एक करके जब इस पर अपडेट आ रहा था तभी मैने कुछ ऐसा पढ़ा जिससे मुझे लगा कि इसपर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए. रघुवंश प्रसाद सिंह राजद से तब जुड़े थे जब लालू यादव कुछ नहीं थे और तब तक रहे जब लालू यादव कुछ नहीं हैं. मतलब यह कि जब लालू यादव राजद पार्टी की स्थापना कर रहे थे तब से दोनों की दोस्ती हुई. लालू सत्ता के शीर्ष पर रहे तब भी रघुवंश उनके साथ थे, लालू चारा घोटाला में दोषी पाए गए जेल गए तब भी रघुवंश साथ रहे, जब लालू की पार्टी को देखने वाला, मजबूत करने वाला कोई नहीं था तो एक सच्चे सिपाही की तरह रघुवंश, तेजस्वी यादव के साथ रहे लेकिन इसके बदले में उन्हें क्या मिला.

पार्टी में हाशिये पर जा चुके रघुवंश प्रसाद सिंह को हमेशा इग्नोंर किया गया. उन्हें उम्रदराज व्यक्ति कहा गया, उनके बयानों को तबज्जों नहीं दिया गया. राज्यसभा जाने के उम्मीद में बैठे रघुवंश प्रसाद को पार्टी ने धोखा दिया, उनके बजाय किसी और को भेजा गया. यहां तक को तब भी ठीक था फिर राजद में रघुवंश के घुर विरोधी रामा को शामिल करने की बात हुई. जब उन्होंने विरोध किया यहां ध्यान देने वाली बात एक और कि रामा सिंह एक अपराधिक छवि वाले व्यक्ति हैं जिसके खिलाफ रघुवंश बाबू ने आवाज उठाया. पार्टी के हित के हिसाब से देखे तो इसमें कोई गलत बात नहीं है. लेकिन फिर भी उनकी बातों को नजरअंदाज किया गया. जिससे गुस्सा होकर रघुवंश प्रसाद ने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. फिर भी रामा सिंह एंट्री रोकने पर बात नहीं हुई बल्कि रघुवंश प्रसाद सिंह को ही समझाया जाने लगा. हद तो तब हो गई जब तेजप्रताप ने रघुवंश बाबू का अपमान कर दिया यह कहकर कि राजद एक समुद्र है और रघुवंश एक लोटा पानी.

बताया जाता है कि इन सब चीजों से काफी आहत हुए रघुवंश बाबू. यू कह सकते हैं कि उन्हें सदमा लगा है. जिससे नाराज रघुवंश बाबू ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया. रघुवंश बाबू राजद में एकलौते ऐसे नेता जो साफ सुथरी की छवि वाले हैं. उन्होंने पार्टी के लिए हर वक्त काम किया, हर स्तर से काम किया राजद के दूसरे दगाबाज नेता की तरह पार्टी का साथ नहीं छोड़ा. कभी पाला नहीं बदला और आज भी जब वो पार्टी छोड़ने कि लिए इस्तीफा लिख रहे थे तो भावुक थे. ऐसा सच्चा सिपाही या ऐसा समर्पित नेता कभी-कभी ही देखने को मिलते है. 

कहते हैं राजनीति सहुलियत के लिए की जाती है. मतलब यह कि जब कोई सत्ता में होता तो उसके साथ कई सारे लोग होते लेकिन जैसे ही सत्ता हाथ से जाती है वो लोग भी छोड़ कर चले जाते हैं. ऐसे नेताओं की भरमार है, आपने हर जगह ऐसे नेताओं के बारे में सूना होगा. नैतिकता के आधार पर देखें तो यह गलत हैं लेकिन रघुवंश बाबू को देखकर ऐसा लगता है कि शायद ऐसे ही लोगों के लिए सियासत है क्योंकि सच्चे और इमानदार नेता को मिलता ही क्या है. उदाहरण के तौर पर रघुवंश बाबू को ही देख लीजिए. इतना कुछ करने के बाद कुछ मिला क्या और जो मिला क्या मिलना चाहिए था.

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