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अपनी- अपनी सहूलियतों के बीच बड़ा पेचीदा होगा गठबंधन की गाठों को सुलझाना

अपनी- अपनी सहूलियतों के बीच बड़ा पेचीदा होगा गठबंधन की गाठों को सुलझाना

PATNA. जिस बिहार राज्य से गैर- कांग्रेसवाद नारा 1974 में गूंजा था उसी बिहार की भूमि से गैर- भाजपा गठबंधन की गाठों को और मजबूत करने की कवायद पटना में की जायेगी. इसके लिए पटना में विपक्षी पार्टियों की सर्वदलीय बैठक करने की इच्छा प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव की उपस्थिति में जताई.

लेकिन कुछ दिनों पूर्व ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की मुलाकात ने गैर- कांग्रेसी विपक्षी एकता की बात कर इस मुहीम के शुरू होने के पूर्व ही उसपर पानी फेर दिया था. इस विकट राजनीति परिस्थिति से निबटने के लिए ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नए उत्साह और जोश के साथ कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहीम पर निकल चुके हैं.

वे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे से मिल चुके हैं. नीतीश कुमार को यह विश्वास है कि कांग्रेस के बिना समूचे विपक्ष को एक छतरी के नीचे नहीं लाया जा सकता है. वे सशंकित हैं कि अगर कांग्रेस विपक्षी खेमे से बाहर रहती है तो 2024 का लोकसभा चुनाव त्रिकोणात्मक हो जाएगा जिसका सीधा- सीधा फायदा एनडीए गठबंधन उठा ले जाएगा. चुनावी संघर्ष दो धूरी पर ही लड़ी जाए इसके लिए जरुरी है कि कांग्रेस को भी विपक्षी खेमे में रखा जाए.

इसी क्रम में नीतीश कुमार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी.

उधर समाजवादी पार्टी प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी ममता बनर्जी से मुलाकात का देश की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा कर चुके हैं. इसी क्रम में ममता बनर्जी ने कुछ दिन पहले अपने ओडिशा दौरे के दौरान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात की थी. उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. स्टालिन के साथ आने वाले चुनावों में एनडीए के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा संख्या में विपक्षी दलों की एकजुटता सुनश्चिति करने की संभावनाओं को लेकर चर्चा की है.

ममता और अखिलेश की गैर- कांग्रेसी विपक्ष की कवायद, उसपर पैबंद टाकने की कोशिश में लगे नीतीश कुमार की कांग्रेस रहित विपक्षी एकता के प्रयास के बीच गठबंधन की गाठें इतनी जल्दी सुलझती नहीं दिख रहीं.

संसद का बजट सत्र समाप्त होते ही अडानी मुद्दे पर जो बात विपक्ष के बड़े नेता शरद पवार ने कहीं उससे समूचा विपक्ष बिलकू बैक- फुट पर आ गया. जिस मुद्दे को लेकर पूरा बजट सत्र ठप्प कर दिया गया उसी मुद्दे पर वह विपक्ष अपने ही साथी के बयान से बेपानी हो गया. विपक्षी एकता की इस मुहीम को इस कड़ी में भी देखा जा सकता है. कहा जा सकता है कि इस मुहीम को फिर से प्रासंगिक बनाने और विपक्षी एकता की अपनी- अपनी साख बचाने की मुहीम शुरू कर दी है. गौरतलब है कि बजट सत्र के ठीक बाद एनसीपी के बड़े नेता शरद पवार ने अडानी मुद्दे पर विपक्ष के संयुक्त संसदीय दल (जेपीसी) के द्वारा जांच की मांग को नाकारा था और कहा था कि जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति इसकी जांच कर रही है तब जेपीसी से जांच कराने का कोई औचित्य नहीं है.

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