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भाजपा की जाति की राजनीति का जवाब है जदयू का भीम संसद... एक साल में BJP ने राजपूत, कायस्थ, भूमिहार, कुशवाहा, यादव को साधा, अब नीतीश का पलटवार

भाजपा की जाति की राजनीति का जवाब है जदयू का भीम संसद... एक साल में BJP ने राजपूत, कायस्थ, भूमिहार, कुशवाहा, यादव को साधा, अब नीतीश का पलटवार

पटना. जाति की राजनीति के लिए बदनाम बिहार में पिछले एक साल से जातीय रैलियों और सम्मेलनों की बाढ़ आई हुई है. बिहार में अपनी सियासी पकड़ को मजबूत करने के लिए भाजपा ने पिछले एक साल में कई ऐसे आयोजन किए हैं जो पूर्ण रूप से जाति केंद्रित रहे हैं. इसमें 23 अप्रैल 2022 को वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव समारोह का आयोजन भोजपुर के जगदीशपुर में हुआ. गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में यहां 77,900 से ज्यादा तिरंगा एक साथ लेकर लोग पहुंचे. इसे एक तरह से भाजपा का राजपूत जाति को अपनी ओर जोड़ने का प्लान देखा गया. 

अक्टूबर 2022 में अमित शाह फिर से लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर सिताबदियारा आए. इसे भी जेपी के बहाने बिहार के कायस्थों को साधने की बीजेपी की रणनीति का हिस्सा देखा गया. भाजपा यहीं नहीं रुकी. फरवरी 2023 में एक बार फिर से पटना में स्वामी सहजानंद की जयंती पर अमित शाह आए. भूमिहारों को अपने पाले में लाने की यह भाजपा की अहम रणनीति रही. एक बार फिर से अप्रैल 2023 को सासाराम में सम्राट अशोक की जयंती पर अमित शाह के आने का कार्यक्रम बना. हालांकि रामनवनी के बाद हुए दंगों के कारण वह कार्यक्रम उस समय टल गया. कुशवाहा जाति को साधने की जुगत के तहत भाजपा की यह सम्राट अशोक की जयंती का कार्यक्रम था. 

राजपूत, कायस्थ, भूमिहार और कुशवाहा के बाद एक बार फिर से नवंबर 2023 में भाजपा ने गोवर्धन पूजा पर यदुवंशी यानी यादवों को साधने के लिए पटना में सम्मेलन किया. वहीं 25 नवंबर को पटना में भाजपा का पान, तांती और बुनकर सम्मेलन है. यानी पिछले एक साल में बिहार में कई जातियों को साधने का आयोजन भाजपा कर चुकी है. ऐसे में भाजपा की इस जाति आधारित आयोजनों का काट निकालने के लिए अब जदयू भी उसी रास्ते पर है. 

26 नम्वबर को पटना में जदयू का भीम संसद है. यानी दलित वर्ग को साधने के लिए जदयू यह आयोजन एक साथ बिहार के 21 प्रतिशत आबादी पर पकड़ मजबूत करने की जुगत है. नीतीश सरकार की जाति सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में एससी 19.65 फीसदी और एसटी 1.68 फीसदी हैं. यानी बिहार में दलित वर्ग की आबादी 21 फीसदी से ज्यादा है. वहीं बिहार में लोकसभा की छह सीटें आरक्षित है यानी दलित वर्ग के लिए है. इसी तरह विधानसभा की 40 सीटें आरक्षित हैं. जदयू अब भीम संसद से दलितों को साधने के साथ ही जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और पशुपति पारस जैसे दलित राजनीति के नेताओं को भी झटका देने की तैयारी में है. 


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